एक आइपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) की तिथियां सामने आ चुकी हैं और दूसरी आइपीएल (इंडियन पालीटिकल लीग) यानी भारतीय राजनीति के सबसे बड़े महापर्व
(Lok Sabha Election Date) की तिथियां बहुत जल्द घोषित होने वाली हैं। पंजाब में भी इस सियासी आइपीएल को लेकर मैदान सजने लगे हैं।
चार पार्टियां होंगी मैदान में हैं
चार टीमों (आप, कांग्रेस, शिअद और भाजपा) के बीच 13 मैदानों (लोकसभा सीटों) पर रोचक, रोमांचक मुकाबले की पूरी संभावना है। यह मैच कितने हाइवोल्टेज हो सकते हैं, इसका अंदाजा विधानसभा सत्र के दूसरे दिन की कार्यवाही को देखकर भी लगाया जा सकता है, जहां सत्ता पक्ष और विपक्ष इस तरह आक्रामक हुए कि नौबत हाथापाई के करीब पहुंच गई। जीत दर्ज करने के लिए चारों टीमें अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गई हैं।
कहते हैं राजनीति में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। अभी हम मैदान पर जिन चार टीमों को देख रहे हैं, हो सकता है उनमें से दो टीमें यानी भाजपा और शिअद एक हो जाएं। यह भी हो सकता है कि तमाम मतभेद भुलाकर आप और कांग्रेस (Lok Sabha Election 2024) भी एक-दूसरे का हाथ थाम लें।
चंडीगढ सहित दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में दोनों टीमें साथ में लड़ भी रही हैं। ऐसी स्थिति में मैदान में टीमों की संख्या तीन अथवा दो भी हो सकती है। यदि ऐसा नहीं होता है तो यह पहली बार होगा जब पंजाब में पिछले चुनाव के मुकाबले अधिक टीमें मैदान में एक-दूसरे के सामने होंगी। वर्ष 2014 से पहले तक मुकाबला शिअद-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच आमने-सामने का रहा है। वर्ष 2014 में आम आदमी पार्टी के रूप में एक नई टीम ने मैदान में एंट्री मारी और इस आइपीएल के मुकाबले को त्रिकोणीय बना
(Punjab Lok Sabha Election) दिया। नई टीम ने पहले ही आइपीएल में चार मैदानों पर जीत दर्ज कर सारे समीकरण बदल दिए।
आइए आपको पिछले 25 वर्षों में हुए मुकाबलों (चुनावों) के स्कोर कार्ड से पंजाब में टीमों की स्थिति से अवगत कराते हैं....
कुछ तस्वीर बदल भी गई
वर्ष 2022 में मुख्यमंत्री बनने के बाद भगवंत मान ने संगरूर सीट की संसद सदस्यता छोड़ दी थी। इसके बाद इस सीट पर हुए मैच (उपचुनाव) में शिरोमणि अकाली दल (मान) के सिमरनजीत सिंह मान जीत गए।
वर्ष 2023 में चौधरी संतोख सिंह के निधन के बाद जालंधर लोकसभा सीट पर हुए मैच (उपचुनाव) में आम आदमी पार्टी के सुशील रिंकू चुनाव जीते। रिंकू पहले कांग्रेस की टीम के खिलाड़ी थे।
पहली बार दिखेगा बहुकोणीय मुकाबला
पंजाब में पहली बार बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। पारंपरिक विजेताओं यानी अकाली-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस की बात करें तो इस बार स्थितियां काफी बदली हुई हैं। आमतौर पर पंजाब के मैदानों हुए मैचों के परिणाम बहुत दिलचस्प आते हैं। यानी जो टीम स्टेट प्रीमियर लीग (एसपीएल) यानी विधानसभा चुनाव जीतकर यह दावा करती रही है कि आइपीएल की ट्राफी उसके हाथ ही लगेगी तो उसे हर बार निराशा ही हाथ लगी है।
सन् 1999 से लेकर 2019 तक के मैचों में सिर्फ 2019 ही एक ऐसा अपवाद है, जिसमें एसपीएल जीतने वाली टीम को आइपीएल में भी सफलता मिली है। वर्ष 2002 के एसपीएल का ताज कांग्रेस के सिर पर था, लेकिन 2004 के आइपीएल में उसे महज दो मैदानों पर ही जीत मिली, जबकि शिअद ने आठ और भाजपा ने तीन मैदानों पर जीत का डंका बजाया।
इसी तरह जब वर्ष 2007 के एसपीएल के विजेता का ताज शिअद और भाजपा गठबंधन के सिर था तो 2009 में आइपीएल में कांग्रस ने आठ सीटें झटक लीं, जबकि शिअद को चार और भाजपा को एक मैदान पर जीत से ही संतोष करना पड़ा।वर्ष 2014 के आइपीएल में नई टीम आप ने चार मैच जीते थे, जबकि वर्ष 2012 के एसपीएल की विजेता टीम शिअद ने चार मैच जीते थे। कांग्रेस ने तीन और भाजपा ने दो मैच जीते थे। वर्ष 2017 में स्टेट प्रीमियर लीग की विजेता कांग्रेस टीम ने वर्ष 2019 के आइपीएल में सर्वाधिक आठ मैच जीते थे, जबकि शिअद व भाजपा ने दो-दो और आप ने सिर्फ एक मैदान पर जीत दर्ज की थी।
टीमों में आया है बदलाव
इस बार थोड़ा बदलाव भी है। टीमें टूट गई हैं। पिछले अढ़ाई दशक तक साथ साथ मिलकर मैदान में उतरने वाली शिअद और भाजपा अब अलग हो गई हैं। दोनों ने अब अपनी-अपनी टीम बना ली है। दोनों का वोट बैंक बिल्कुल अलग-अलग है। शिअद का जहां ग्रामीण क्षेत्रों में दबदबा है, वहीं भाजपा की टीम में ज्यादातर शहरी खिलाड़ी ही रहे हैं। इससे दोनों को सफलता मिलती रही है, लेकिन अब वोट बैंक अलग-अलग होने से दोनों को ही दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
यह भी पढ़ें- Lok Sabha Election को लेकर पंजाब में अलर्ट, आचार संहिता लागू होने से पहले पहुंचनी शुरू हुई केंद्रीय सुरक्षा बलउनके लिए आशा की किरण सिर्फ यही है कि दोनों के पास ही अपना-अपना काडर है और सामने होने वाली टीमों यानी आप और कांग्रेस का भी गठजोड़ नहीं हुआ है। यानी दोनों पार्टियों के पास मौका है कि यदि वे अपने-अपने काडर को बूथ पर ले आएं तो संभवत: कुछ मैचों में उन्हें जीत हासिल हो जाए। शिअद की सबसे बड़ी समस्या यह कि उसके साथ अब अनुभवी कोच (मार्गदर्शक) प्रकाश सिंह बादल भी नहीं हैं। टीम को निर्देशित करने की सारी जिम्मेदारी कैप्टन सुखबीर बादल पर आ गई है।
कांग्रेस के बाद क्या आप भी तोड़ पाएगी परंपरा
जैसा कि हमने चर्चा की है कि विधानसभा में जीत दर्ज करनी वाली पार्टी को अक्सर संसदीय चुनाव में सफलता नहीं मिलती है, अगर यह परंपरा बरकरार रहती है तो सत्तारूढ़ आप के लिए मुश्किलें भी खड़ी हो सकती हैं। उसके पास दिग्गज खिलाड़ियों की भी कमी है। या तो चुनाव से पहले उसे दूसरी पार्टियों के खिलाड़ी अपनी टीम में शामिल कर मैदान में उतरना होगा या फिर अपने पुराने खिलाड़ियों (मंत्रियों) को मैदान में उतारना पड़ेगा।कांग्रेस की बात की जाए तो इसके दो प्रमुख खिलाड़ी कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुनील जाखड़ अब भाजपा की टीम में शामिल हो गए हैं। इसके अलावा कांग्रेस की टीम के खिलाड़ियों में ही काफी फूट नजर आ रही है। पार्टी के पास नवजोत सिद्धू, प्रताप सिंह बाजवा, राजा वड़िंग और सुखजिंदर सिंह रंधावा जैसे धुरंधर खिलाड़ी हैं, लेकिन इनमें से कई खुद मैदान में उतरने के बजाय अपनी पत्नियों को उतारना चाह रहे हैं।
यह भी पढ़ें- Punjab News: पीएम मोदी ने किया न्यू खन्ना रेलवे स्टेशन का उद्घाटन, राज्यपाल बनवारी लाल बोले- यह उपलब्धि छोटी नहीं