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Punjab News: 10 सीटों पर कम मतदान बिगाड़ सकता है जीत-हार का गणित, जानिए पिछले चुनाव में किस पार्टी को मिला था फायदा

पंजाब की 13 में से 10 लोकसभा सीटों पर इस बार कम मतदान हुआ है जो लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की हार-जीत का खेल बिगाड़ सकती है। अहम बात यह है कि इस बार पंजाब में चार पार्टियां सीधे मुकाबले में थीं जबकि कई जगहों पर पांच कोणीय मुकाबला भी बना हुआ था। हालांकि इस मुकाबले के बाद भी मतदाताओं ने कोई खास रुचि नहीं ली।

By Jagran News Edited By: Deepak Saxena Updated: Mon, 03 Jun 2024 10:49 AM (IST)
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10 सीटों पर कम मतदान बिगाड़ सकता है जीत-हार का गणित।

कैलाश नाथ, चंडीगढ़। प्रदेश में 13 लोकसभा सीटों पर हुआ मतदान लोकसभा चुनाव 2019 के आंकड़ों को नहीं छू पाया। पिछली बार की तुलना में 2,29,178 कम लोगों ने मतदान किया, जबकि इस बार मतदाताओं की संख्या 6.80 लाख बढ़ गई थी। राज्य की दस सीटों पर पिछली बार से भी कम मतदान हुआ, जबकि अमृतसर, लुधियाना और फरीदकोट ही मात्र ऐसी सीटें हैं, जहां पर पिछले चुनाव के मुकाबले मतदान में थोड़ी वृद्धि हुई है।

कम हुए मतदान का असर जीत-हार के आंकड़ों पर भी पड़ेगा। अहम बात यह है कि इस बार पंजाब में चार पार्टियां सीधे मुकाबले में थीं, जबकि कई जगहों पर पांच कोणीय मुकाबला भी बना हुआ था। इसके बावजूद मतदाताओं ने मतदान में कोई खास रुचि नहीं दिखाई।

पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में हुआ कम मतदान

चुनाव आयोग की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में मतदान का औसत 62.82 प्रतिशत रहा। वर्ष 2019 में 1.37 करोड़ लोगों ने मतदान किया था, जोकि इस बार घट कर 1.34 करोड़ हो गया है। आंकड़े बतातें हैं कि इस बार 2.29 लाख वोट पिछले बार के मुकाबले कम पड़े हैं। कम मतदान ने प्रत्याशियों की चिंताएं बढ़ा दी है, क्योंकि 2014 के चुनाव में जब मतदान 70.63 प्रतिशत हुआ था, तब सत्तारूढ़ अकाली-भाजपा ने छह सीटें जीती थी और कांग्रेस को तीन सीटों पर जीत मिली थी। यह वहीं वर्ष था जब आम आदमी पार्टी का पंजाब में उदय हुआ था और उसने चार सीटों पर जीत प्राप्त की।

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साल 2019 में कम मतदान का कांग्रेस को मिला था लाभ

साल 2019 में मतदान में लगभग पांच प्रतिशत की गिरावट आई। इसका लाभ सत्तारूढ़ कांग्रेस को मिला। कांग्रेस के आठ प्रत्याशी सांसद बने। यह वह समय था जब शिअद बेअदबी कांड में बुरी तरह उलझा हुआ था और प्रदेश की कमान कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथों में थी। ऐसे में कम मतदान ने राजनीतिक पार्टियों की चिंता बढ़ा दी है।

क्योंकि अनुमान यह लगाया जा रहा था कि चार पार्टियों के बीच मुकाबला होने की वजह से मतदान का औसत बढ़ सकता है। कम मतदान ने चिंता इसलिए भी बढ़ा दी हैं, क्योंकि इससे स्पष्ट है कि जीत हार का अंतर बेहद कम होने वाला है। अहम बात यह है कि कि अमृतसर और लुधियाना जैसी हाट सीटों को छोड़ दे तो बठिंडा, पटियाला, संगरूर जैसी लोकसभा सीटों पर भी कम मतदान हुआ है।

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दांव पर सभी पार्टियों की साख

आम आदमी पार्टी- संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में सभी पार्टियों का कुछ न कुछ दांव पर लगा हुआ है। आप की सरकार में यह पहला चुनाव लड़ा गया है। चुनाव के बीच में ही आबकारी मामले में पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जेल जाना पड़ा। चुनाव का पूरा दारोमदार भगवंत मान पर था। ऐसे में आप पर अपनी लोकप्रियता साबित करने का दबाव है।

कांग्रेस- मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सामने खुद को सही मायने में ‘विपक्ष’ साबित करने का दबाव है। कारण, पंजाब को छोड़कर कांग्रेस का बाकी जगह पर आप के साथ समझौता है। चुनाव के दौरान कांग्रेस ही ऐसी पार्टी थी, जिसमें सबसे अधिक टूट-फूट हुई और उसके नेता पार्टी छोड़ कर चले गए। कांग्रेस के सामने यह साबित करने की चुनौती है कि उसमें दम बरकरार है।

भारतीय जनता पार्टी- राज्य में अपने दम पर पहली बार 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी भाजपा को सबसे ज्यादा किसान संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा। भाजपा चाहकर भी राज्य के सभी गांवों में नहीं जा सकी। विधानसभा चुनाव 2027 भाजपा को अपने दम पर लड़ना है तो उसे इस चुनाव में खुद को साबित ही करना पड़ेगा।

शिरोमणि अकाली दल- इस चुनाव में शिअद ने पंथ और पंजाबियत को मुद्दा बनाया। शिअद के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने पंजाब बचाओ यात्रा निकाली और 80 के करीब विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया। लोकसभा चुनाव में अगर शिअद का प्रदर्शन अच्छा रहता हैं तो बादल परिवार की पार्टी पर पकड़ बनी रहेगी अन्यथा सुखबीर पर उंगली उठ सकती है।

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