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Maharaja Ranjit Singh Death Anniversary: 'लैला' के लिए 'मजनूं' बने थे महाराजा रणजीत सिंह, घोड़ी के लिए बिछा दी थीं लाशें, बेहद दिलचस्प है कहानी

Ranjeet Singh Death Anniversary महाराजा रणजीत सिंह का जन्म गुजरांवाला में हुआ था। यह इलाका अब पाकिस्तान में चला गया। महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब पर कई सालों तक राज किया। उनकी दहाड़ से दुश्मन थर्रा जाते थे। घोड़ी लैला से उनका प्रेम काफी फेमस है। उन्होंने लैला को पाने के लिए कोई भी कीमत देने को तैयार थे। आखिरकार उन्होंने लैला को पा ही लिया।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Published: Thu, 27 Jun 2024 12:39 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2024 12:39 PM (IST)
Ranjit Singh Death Anniversary: लैला के दीवाना बने थे महाराजा रणजीत सिंह।

सुशील कुमार, चंडीगढ़। Maharaja Ranjeet Singh Death Anniversary, Maharaja Ranjit Singh: शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह की आज पुण्यतिथि है। उनकी पुण्यतिथि पर लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। अपने जीवनकाल में उन्होंने कई बड़े युद्ध किए। वे खालसा साम्राज्य के पहले महाराजा थे। उनकी दहाड़ से अंग्रेज भी थर्रा उठते थे। महाराजा रणजीत सिंह बहुत प्रेम व्यक्ति थे।

महाराजा रणजीत सिंह घोड़ी लैला से बहुत प्यार करते थे। लैला के लिए वे 'मजनूं' बन गए थे। लैला को वे किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहते थे। इस घोड़ के लिए कत्ल-ए-आम तक भी हो गया। इस घोड़े को पाना रणजीत सिंह का सपना था। आखिरकार उन्होंने इसे पा ही लिया।

अस्तबल में 12 हजार घोड़े

दरअसल रणजीत सिंह को घोड़ों का बहुत शौक था। उन्हें घुड़सवारी करने में बड़ा मजा आता था। उनके अस्तबल में सैकड़ों में नहीं बल्कि, हजारों की संख्या में घोड़े थे। कुल 12 हजार घोड़े थे। वे मेहमानों से घोड़ों पर बहुत चर्चा करते थे। वे अपने घोड़ों को रूही, नसीम और गौहर जैसे शायराना नाम से पुकारते थे।

लेकिन लैला की बात ही अलग थी। लैला के लिए वे कुछ भी कर सकते थे। घोड़े के लिए वे कोई भी कीमत देने को तैयार रहते थे। अगर कोई बेचने या देने से इनकार करते थे तो महाराजा रणजीत सिंह युद्ध करके घोड़ा छीन लेते थे।

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लैला के पीछे महाराजा दीवाना

लैला घोड़ी की खूबसूरती का किस्सा अफगानिस्तान से फारस तक होती थी। यह पेशावर के शासक यार मोहम्मद की थी। 1823 में महाराजा रणजीत सिंह को घोड़ी के बारे में पता चला। उन्होंने लैला का पता लगवाने के लिए कई टीमें बना दी थीं। जानकारी होने पर यार मोहम्मद लैला को काबुल भिजवा दिया।

लैला के लिए रोए महाराजा

यार मोहम्मद किसी भी कीमत पर लैला को रणजीत सिंह के हवाले नहीं करना चाहता था। घोड़ी देने से मना करने पर कत्ल-ए-आम शुरू हुआ। तमाम कोशिशों के बाद आखिरकार एक दिन लैला मिल गई। उसे देखते हुए महाराज रणजीत सिंह बच्चे की तरह तेज आवाज में रोए।

लैला का पूरा नामा अस्प-ए-लैला था। लैला के सिख राजधानी पहुंचने पर चारों तरफ जश्न का महौल था क्योंकि लैला को पाना महाराजा सपना था जो पूरा हो गया था।

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