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बूटा सिंह को मास्टर तारा सिंह ने उतारा था राजनीति में, विवादों से रहा हमेशा नाता

वयोवृद्ध कांग्रेस नेता बूटा सिंह (Buta Singh) का लंबी बीमारी के बाद शनिवार को नई दिल्ली में निधन हो गया। बूटा सिंह राजनीतिक जीवन विवादों भरा रहा। उन्होंने अकाली दल से राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी ।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Sat, 02 Jan 2021 03:22 PM (IST)
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कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता बूटा सिंह की फाइल फोटो।
चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। कांग्रेस के वयोवृद्ध और दलितों के मसीहा कहे जाने नेता बूटा सिंह नहीं रहे। वह पिछले तीन-चार महीनों से काफी बीमार थे। वह कुल आठ बार सांसद रहे और जितनी बार पंजाब से जीते हैं उतनी ही बार राजस्थान की जालौर सीट से भी जीते हैं। लेकिन, बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत शिरोमणि अकाली दल से की थी।

बूटा सिंह मुंबई के खालसा कालेज में एमए करने के बाद वहीं पढ़ाने लगे थे, लेकिन जब वह सिखों के शीर्ष नेता मास्टर तारा सिंह के संपर्क में आए तो वह उन्हें राजनीति में ले आए। उन्हें 1962 में मोगा से चुनाव के मैदान में शिअद के टिकट पर उतारा गया, जहां से वह पहली बार सांसद बने थे। वह अकाली दल में ज्यादा देर टिक नहीं सके और कांग्रेस में शामिल हो गए।

कांग्रेस ने उन्हें 1967 में रोपड़ संसदीय हलके से उतारा, जहां से उन्होंने तीन बार 1971 और 1980 में चुनाव जीता। 1984 में हुए आपरेशन ब्लूस्टार के लिए राजी होने वाले वह एकमात्र सिख नेता माने जाते थे। आपरेशन ब्लूस्टार में श्री अकाल तख्त साहिब की इमारत को सेना ने टैंकों से उड़ा दिया था। इससे सिखों में मन गुस्से और नफरत से भर गए।

बूटा सिंह ने इस गुस्से को कम करने के लिए तलवंडी साबो के निहंग संता सिंह की मदद से श्री अकाल तख्त साहिब का पुनर्निर्माण करवाया, लेकिन गुस्साई संगत ने इसे सरकारी निर्माण कहते हुए ढहा दिया। बाद में इस इमारत को कार सेवा के जरिए एसजीपीसी ने तैयार करवाया। यह उनके साथ जुड़ा पहला विवाद था। बूटा सिंह को सिख पंथ से निष्कासित करने का हुक्मनामा जारी हो गया। चूंकि पंजाब में उनके प्रति काफी नफरत भर चुकी थी इसलिए पार्टी ने उन्हें रोपड़ के बजाय राजस्थान के जालौर हलके से लड़वाया।

जब पंजाब में राजनीतिक माहौल में बदलाव आया तो बूटा सिंह ने श्री अकाल तख्त साहिब से माफी मांगी। उन्हें फिर से पंथ में शामिल कर लिया गया। 1991 जेएमएम रिश्वत कांड के मामले में उनका नाम भी आया। जब कांग्रेस ने उन्हें जालौर से टिकट नहीं दिया तो वह आजाद उम्मीदवार के तौर पर खड़े हो गए और जीत गए।

वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में टेलीकम्युनिकेशंस मंत्री भी रहे, लेकिन जेएमएम कांड उजागर होने के चलते उन्हें वाजपेयी ने मंत्रिमंडल से हटा दिया गया। बूटा सिंह फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए। 2004 में जब डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो उन्हें बिहार का राज्यपाल बना दिया गया, लेकिन यहां भी उन्होंने सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश करके नया विवाद खड़ा कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद 2006 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

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