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पीजीआइ चंडीगढ़ के डॉक्टरों को हर चुनौती से लड़ने के टिप्स देंगे परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह

परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बन्ना सिंह नए शैक्षणिक सत्र के उद्घाटन के साथ पीजीआइ के डॉक्टरों को मेडिकल क्षेत्र में उनके सामने आने वाले हर नई चुनौती से किस प्रकार लड़ा जाए और उसका सामना किया जाए इस पर भी टिप्स देंगे।

By Ankesh ThakurEdited By: Updated: Sun, 06 Mar 2022 11:35 AM (IST)
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परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह। फाइल फोटो
जागरण संवादाता, चंडीगढ़। भारतीय सेना से रिटायर्ड परमवीर चक्र विजेता और सियाचिन के हीरो कहे जाने वाले कैप्टन बान्ना सिंह पीजीआइ के डाक्टरों को खास टिप्स देंगे। पीजीआइ चंडीगढ़ में नए शैक्षणिक सेशन का शुभारंभ  देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विजेता कैप्टन बाना सिंह करेंगे। सोमवार को पीजीआइ के भार्गव ऑडिटोरियम में सेशन का शुभारंभ होगा। नए शैक्षणिक सत्र समारोह में पीजीआइ में जुलाई 2021 और जनवरी 2022 के लिए नए एंट्रेंस के लिए पिन-अप समारोह आयोजित किया जाएगा। समारोह सुबह 8 बजे शुरू होगा।

कैप्टन बन्ना सिंह नए शैक्षणिक सत्र के उद्घाटन के साथ पीजीआइ के डॉक्टरों को मेडिकल क्षेत्र में उनके सामने आने वाले हर नई चुनौती से किस प्रकार लड़ा जाए और उसका सामना किया जाए, इस पर भी टिप्स देंगे। किस प्रकार मेडिकल क्षेत्र में रहकर डॉक्टर्स मरीजों के इलाज के साथ नए आयाम स्थापित कर सकते हैं। इस पर चर्चा की जाएगी।

तीन लिविंग लीजेंड्स में से एक और देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र विजेता भारतीय सेना में कैप्टन बाना सिंह ने उस टीम का नेतृत्व किया जिसने पाकिस्तानी सेना से कश्मीर में सियाचीन ग्लेशियर पर सबसे ऊंची चोटी का नियंत्रण छीना था। उनकी सफलता के बाद भारत ने उनके सम्मान में चोटी का नाम बदलकर बाना पोस्ट कर दिया। इससे पहले यह चोटी क्वैक पोस्ट नाम से जानी जाती थी।

कुछ ऐसी है कैप्टन बाना सिंह की कहानी

जम्मू-कश्मीर के गांव काद्याल में 6 जनवरी 1949 को बाना सिंह का जन्म हुआ था। आम बच्चों की तरह बाना सिंह ने भी छोटी उम्र से नन्हीं आंखों में कुछ सपने देखे थे। भारतीय सैनिक बनना इन्हीं में से एक था। परिवार के सहयोग से वह 6 जनवरी 1969 को वह इसे पूरा करने में सफल रहे। जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फेंट्री में उनको पहली तैनाती दी गई थी। 26 जून 1987 को जम्मू एवं कश्मीर लाइट इंफेंट्री की आठवीं बटालियन के नायब सूबेदार बाना सिंह ने पाकिस्तान सेना के कब्ज़े वाली कायद चौकी को छुड़ाने का जिम्मा लिया। अपने मिशन के लिए उन्होंने एक जोखिम भरे रास्ते को चुना और सभी विषम परिस्थितियों को पार करते हुए जीत हासिल की। परिणाम स्वरूप उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

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