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पंजाबी में 'बंदी छोड़ दिवस' के रूप में दीवाली मनाते हैं सिख, जानिए क्या है इसका इतिहास और महत्व

बंदी छोड़ दिवस सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह गुरु हरगोबिंद साहिब के ग्वालियर किले से मुक्त होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन सिख समुदाय के लोग धार्मिक समागमों का आयोजन करते हैं कीर्तन और कथा करते हैं आतिशबाजी करते हैं और गुरुद्वारों में दीप जलाते हैं। सिख भी इस खास दिन को त्योहार के रूप में मनाते हैं।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Thu, 31 Oct 2024 12:53 PM (IST)
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बंदी छोड़ दिवस का क्या है इतिहास और महत्व।
डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। आज दीपावली धूमधाम से मनाया जा रहा है। हिंदुओं का यह खास त्योहार है। लेकिन सिख समुदाय का भी इस त्योहार से संबंध है। सिख समुदाय के लोग दीपावली के त्योहार को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। यह त्योहार सिखों के तीन त्योहारों में से एक है। सिख इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

बंदी छोड़ दिवस का इतिहास

बंदी छोड़ दिवस का इतिहास काफी पुराना है। इसका संबंध मुगलों से है। जानकार बताते हैं कि मुगलों ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर के किले को अपने कब्जे में ले लिया था। इसे जेल में तब्दील कर दिया था। इसमें मुगल सल्तनत के लिए खतरा माने जाने वाले लोगों को कैद करके रखा जाता था।

उस वक्त मुगल सल्तनत के बादशाह जहांगीर थे। उन्होंने इस जेल में 52 राजाओं के साथ 6वें सिख गुरु हरगोबिंद साहिब को कैद रखा था। लेकिन जहांगीर को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्हें गुरु हरगोबिंद साहिब को रिहा करने पर मजबूर होना पड़ा।

कैद से मिली थी मुक्ति

मुगल बादशाह ने हरगोबिंद साहिब को जेल से लौटने का आग्रह किया। गुरु साहिब ने कहा कि वह अकेले नहीं जाएंगे। उन्होंने कैदी राजाओं को भी मुक्त कराने की बात कही। गुरु साहिब के लिए 52 कली का चोला (वस्त्र) सिलवाया गया। 52 राजा जिसकी एक-एक कली पकड़कर किले से बाहर आ गए। इस तरह उन्हें कैद से मुक्ति मिल सकी थी।

गुरु हरगोबिंद साहिब दीवाली के दिन अमृतसर पहुंचे थे। गुरु साहिब ग्वालियर के किले से 52 राजाओं को जहांगीर की कैद से मुक्त कराकर अकाल तख्त साहिब पहुंचे थे। उस वक्त आतिशबाजी के आलावा युद्ध कौशल दिखाया गया था। पूरे अमृतसर शहर को दीयों की रोशनी से सजाया गया था। इस दिन को ‘दाता बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

दीये और आतिशबाजी करते हैं सिख

इस खास दिन पर सिख संगठनों द्वारा धार्मिक समागमों का आयोजन किया जाता है। समागम में कीर्तन और कथा करवाए जाते हैं। इस दिन को ऐतिहासिक महत्व से अवगत कराया जाता है। सिख समुदाय के लोग बड़े स्तर पर आतिशबाजी करते हैं। गुरुद्वारों में दीप जलाए जाते हैं। बंदी दिवस के मौके पर श्रद्धालु गुरुद्वारे में नतमस्तक होने के लिए पहुंचते हैं।

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