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Punjab Bye-Election: शिरोमणि अकाली दल का चुनाव मैदान से हटना ‘मास्टर स्ट्रोक’ या सुसाइड?

पंजाब में 13 नवंबर को चार सीटों पर उपचुनाव होने हैं। नामांकन प्रक्रिया के बीच शिरोमणि अकाली दल ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। कुछ दिन पहले श्री अकाल तख्त द्वारा शिअद के प्रधान सुखबीर सिंह बादल को तनखैया घोषित किया था। जिसके बाद पार्टी ने पंजाब में चार सीटों पर उपचुनाव में हिस्सा न लेने का फैसला किया है।

By Jagran News Edited By: Gurpreet Cheema Updated: Fri, 25 Oct 2024 07:34 PM (IST)
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शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल (सोर्स-सोशल मीडिया, फाइल फोटो)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) का विधानसभा की चार सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला 'मास्टर स्ट्रोक' साबित होगा या सुसाइड यह तो समय बताएगा। हालांकि, शिअद के इस फैसले से कांग्रेस परेशान हो गई है।

कांग्रेस को लग रहा है कि इससे सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी या भारतीय जनता पार्टी को सीधा लाभ मिलेगा। कांग्रेस की चिंता यह है कि अकाली मतदाता भाजपा या आम आदमी पार्टी के हक में तो आ सकता है लेकिन वह कांग्रेस को किसी भी कीमत पर समर्थन नहीं करेगा।

राज्य में जिन चार सीटों पर उपचुनाव हैं, उनमें गिद्दड़बाहा और डेरा बाबा नानक ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर शिअद हमेशा से मजबूत रही है। गिद्दड़बाहा सीट से तो पूर्व मुख्यमंत्री स्व. प्रकाश सिंह बादल पांच बार चुनाव जीते। उनके बाद उनके भतीजे मनप्रीत बादल चार बार यहां से चुनाव जीते।

डेरा बाबा नानक और गिद्दड़बाहा में शिअद मजबूत

मनप्रीत इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। 2022 में गिद्दड़बाहा से अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग भले ही चुनाव जीते थे लेकिन उन्हें शिअद के हरदीप सिंह डिंपी ढिल्लों ने कड़ी टक्कर दी थी। राजा मात्र 1,351 वोटों से यह चुनाव जीते थे।

अब डिंपी ढिल्लो आप के प्रत्याशी हैं। इसी सीट पर राजा वड़िंग की पत्नी अमृता वड़िंग कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ रही हैं। वहीं, गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक विधानसभा सीट में भाजपा के प्रत्याशी रवि किरण काहलों 2022 में शिअद के टिकट पर लड़े थे।

वह कांग्रेस के सुखजिंदर सिंह रंधावा से मात्र 466 वोटों से चुनाव हारे थे। 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए लिया गया। फैसलासूत्र बताते हैं कि वीरवार को शिअद की वर्किंग कमेटी व जिला प्रधानों की बैठक में दो अलग-अलग विचार थे। एक वर्ग का मानना था कि चुनाव लड़ना चाहिए नहीं तो कार्यकर्ता हतोत्साहित हो जाएगा। एक वर्ग का मानना था कि वर्तमान समय पार्टी के अनुकूल नहीं हैं।

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पार्टी के प्रधान को श्री अकाल तख्त ने तनखाइया घोषित किया हुआ है और विधानसभा में भी पार्टी के विधायकों की संख्या मात्र दो रह गई है। लोकसभा में भी शिअद का मात्र एक सांसद है। ऐसे में अगर पार्टी उपचुनाव लड़ती और उन्हें हार का सामना करना पड़ता तो 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का दावा और कमजोर हो जाएगा।

इतिहासकारों ने शिअद के फैसले को बताया गलत

इतिहासकार प्रो. गुरदर्शन सिंह ढिल्लो कहते हैं कि शिअद को चुनाव लड़ना चाहिए था। गुरु साहिब हमेशा रणभूमि में जूझने के लिए प्रेरित करते रहे हैं। इसलिए शिअद को मैदान से भागना नहीं चाहिए था। वहीं, समाजशास्त्री प्रो. मंजीत सिंह का कहना है कि शिरोमणि अकाली दल का फैसला धार्मिक रूप से ठीक हो सकता है पर राजनीतिक रूप में यह शिअद के लिए विध्वंसक बन सकता है। इससे शिअद का काडर निराश होगा।

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