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Bhagwant Mann Interview: I.N.D.I.A का मतलब कांग्रेस की सरपरस्ती नहीं, यह गलतफहमी है- CM भगवंत मान

सीएम भगवंत मान ने कहा कि अगर किसी को ऐसा लगता है कि आइएनडीआइए का मतलब कांग्रेस है। यह आपकी गलतफहमी है। पहली और सबसे अहम बात तो यह है कि आईएनडीआईए कांग्रेस ही की नहीं है। 26 दलों के एक गठबंधन का नाम है आइएनडीआइए जिसमें कांग्रेस एक सहयोगी मात्र है। इसमें जितनी अहमियत टीएमसी और ममता बनर्जी की है उतनी ही शरद पवार और उनकी पार्टी की है।

By Jagran NewsEdited By: Rajat MouryaUpdated: Sat, 02 Sep 2023 07:19 PM (IST)
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I.N.D.I.A का मतलब कांग्रेस की सरपरस्ती नहीं- भगवंत मान। फोटो - जागरण
चंडीगढ़। Bhagwant Mann Interview: लगभग 17 महीने पहले पंजाब की राजनीति में बदलाव का नारा देकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के मुख्यमंत्री भगवंत मान का मानना है कि आइएनडीआइए के गठन को लेकर एक गलतफहमी है कि इस गठबंधन का मतलब कांग्रेस की सरपरस्ती से है।

उनका कहना है कि कभी-कभी देश हित को सर्वोच्च रखते हुए आपको तमाम निजी और राजनीतिक हितों को पीछे धकेल कुछ ऐसे “कड़वे घूंट” भी पीने पड़ते हैं, जिसमें एक पार्टी या व्यक्ति विशेष का फायदा या नुकसान नहीं देखा जाता।

भगवंत मान के अनुसार इस गठबंधन को केवल कांग्रेस से जोड़कर देखना ‘राजनीतिक अज्ञानता’ से ज्यादा कुछ नहीं। दैनिक जागरण के पंजाब के स्थानीय संपादक अमित शर्मा से एक विशेष साक्षात्कार में मान ने राज्य और राष्ट्रीय राजनीति से जुड़े अनेक मसलों सहित भ्रष्टाचार और नशे पर विस्तार से चर्चा की। पेश है बातचीत के विशेष अंश:

  • पंजाब में जिस कांग्रेस को भगवंत मान ने सत्ता से बाहर किया, ड्रग्स और माफिया राज का सरगना बताया, अब आइएनडीआइए का हिस्सा बन उसी से गठबंधन की बात, प्रदेश की जनता इसे कितना स्वीकार कर पाएगी?
आपको ऐसा क्यों लगता है कि आइएनडीआइए (I.N.D.I.A.) का मतलब कांग्रेस है... यह आपकी गलतफहमी है। पहली और सबसे अहम बात तो यह है कि आइएनडीआइए कांग्रेस ही की नहीं है। 26 दलों के एक गठबंधन का नाम है आइएनडीआइए जिसमें कांग्रेस एक सहयोगी मात्र है।

इसमें जितनी अहमियत टीएमसी और ममता बनर्जी की है, उतनी ही शरद पवार और उनकी पार्टी की है। स्टालिन जी की भी वही भूमिका है और अखिलेश यादव व अन्य नेताओं की भी। आप (मीडिया) आइएनडीआइए को सिर्फ कांग्रेस की सरपरस्ती वाला गठबंधन क्यों मान रहे हैं?

जब हमने या किसी भी अन्य सहयोगी ने अभी तक ऐसी कोई घोषणा ही नहीं की है तो आइएनडीआइए को केवल कांग्रेस से जोड़ कर देखना सही नहीं है।

  • क्या आप को नहीं लगता कि कांग्रेस से पंजाब में समझौता करके आम आदमी पार्टी खुद का नुकसान करने जा रही है?
सकारात्मक राजनीति में सिर्फ अपने या अपनी पार्टी के भविष्य को केंद्र में रख कर ही हमेशा फैसले नहीं लिए जाते हैं। कई बार देश हित के लिए, देश के संविधान को बचाने के लिए भी कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं। यह फैसला भी कुछ वैसा ही है।

इस समय संविधान पर हमला हो रहा है। ऐसे में हमारे सामने निर्णायक सवाल यही है कि अगर देश का संविधान ही नष्ट कर दिया गया, देश ही नहीं रहा तो हम पार्टियों का क्या करेंगे?

सो हमने राजनीतिक सोच को त्याग संविधान को बचाने के लिए देश हित में सोचा। जब देश या संविधान हित में फैसला ले ही लिया तो फायदा क्या और नुकसान क्या।

  • प्रदेश में 92 सीटें जीतने वाली आप लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कितनी सीटें देगी? या अकेले के दम पर पंजाब की सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ेगी?
अभी कांग्रेस से सीटों के बंटवारे को लेकर किसी भी स्तर या फार्मूले पर कोई बात नहीं हुई है। हमने कांग्रेस से केवल दिल्ली आर्डिनेंस के लिए सहयोग मांगा था जो मिला भी। राज्यसभा के इतिहास में पहली बार हुआ है कि किसी बिल के विरोध में विपक्ष को 100 से अधिक वोट पड़े हों।

हमने तो पहले ही सीधी शर्त रख दी थी कि देश के संविधान को तहस-नहस कर चुनी गई सरकारें तोड़ने... अगर छीनने बोलें तो बेहतर है, वालों के खिलाफ हमारी संविधान बचाओ मुहिम का अगर कांग्रेस समर्थन करेगी तभी हम आइएनडीआइए का हिस्सा बनेंगे।

उन्होंने समर्थन किया और हम आइएनडीआइए का हिस्सा बन गए। पंजाब के संदर्भ में सिर्फ एक लाइन की कहानी है कि हम भी अभी तक उसी आइएनडीआइए का हिस्सा हैं जिसका कांग्रेस। बाकी जो हाईकमान तय करेगी, उस पर समय आने पर विचार करेंगे।

  • लेकिन पंजाब के कांग्रेस नेता तो बहुत नाराज हैं। वह तो बिल्कुल नहीं चाहते कि आप से कोई समझौता हो? ऐसा क्यों?
उनके चाहने या नहीं चाहने से क्या होता है। मैंने तो पहले भी कहा था अमरूदों को मेले में कौन पूछता या खरीदता है। कांग्रेस के यही नेता आर्डिनेंस के मुद्दे पर समर्थन नहीं देने की सलाह आलाकमान को बार-बार भेज चुके थे। क्या किसी ने उनकी सुनी? नहीं न... तो बस फिर।

अब अगर उन्हें नाराजगी है, कोई दिक्कत है तो वह अपने हाईकमान से बात करें। अपने प्रधान से बात करें। राहुल गांधी (व्यंग्यात्मक लहजे में) ....बेशक पार्टी के पूर्व महासचिव ही सही, उनसे ही बात करें ..शायद वहां उनकी कुछ सुनवाई हो जाए |

  • पंजाब में आम आदमी पार्टी सरकार ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली सहित कई वादों को पूरा कर दिया है और अब उसी को अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में भुनाने का प्रयास कर रही है। क्या यह रेवड़ी कल्चर सही है?
फ्री या मुफ्त का क्या मतलब... इसे रेवड़ी कल्चर से जोड़ना बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है। पंजाब व दिल्ली में हम कोई कर्ज लेकर बिजली बोर्ड का बकाया नहीं चुका रहे। बिना कर्ज लिए लोगों को न सिर्फ 300 यूनिट मुफ्त बिजली दे रहे हैं बल्कि हमारी सरकार ने तो पिछली सरकारों की बिजली सब्सिडी का 20 हजार करोड़ रुपये भी चुका दिया है।

फ्री बिजली योजना के लिए एक पैसा भी हमने न तो किसी अन्य योजना के लिए बजट प्रविधान में कटौती कर जुटाया और न ही कर्जा लेकर। हमारे पास पैसा है, तो हम बिजली मुफ्त दे रहे हैं। हमारे वित्त मंत्री पुरानी दो सरकारों (कांग्रेस और शिअद-भाजपा) में नौ साल तक वित्त मंत्री रहे मनप्रीत बादल की तरह चिल्ला-चिल्ला कर खजाना खाली होने का ढोंग नहीं करते हैं।

वह सारा पैसा जो पिछली दोनों सरकारों के समय कुछ परिवारों को जाता था, वह अब पंजाब के खजाने में आता है। दरअसल हमने भ्रष्टाचार को रोक दिया और खजाने का मुंह लोगों की ओर खोल दिया। अब इसे भी अगर आप रेवड़ी कल्चर कहेंगे तो कहते रहें।

नीयत और नीति के सुमेल से ही चीजें सुधरती हैं। हमारी नीतियां आम जनता के पक्ष में हैं और नीयत ईमानदार। उसी का परिणाम है कि मुफ्त बिजली का माडल अब भाजपा शासित राज्य भी अपना रहे हैं।

  • महिलाओं को एक हजार रुपये प्रतिमाह देने की गारंटी पर पंजाब में अभी तक कुछ हुआ नहीं और आपने इसे पंजाब माडल का नाम देकर यही गारंटी छत्तीसगढ़ में और दे दी, क्या यह सब केवल वोट लेने के लिए?
मैंने पहले भी कहा कि हम कर्ज लेकर चुनावी गारंटी पूरी नहीं करते हैं। जैसे-जैसे सरकार का राजस्व बढ़ता जाएगा, पंजाब सरकार के खजाने का मुंह लोगों की ओर खुलता जाएगा। हमारा जीएसटी 16 से 17 प्रतिशत बढ़ गया है... थोड़ा और बढ़ जाए तो महिलाओं को भी हजार रुपये प्रतिमाह देने की घोषणा कर देंगे।

अगर यह सब वोट लेने के लिए होता तो हम भी मुफ्त बिजली, बेरोजगारी भत्ता या फिर नौकरियां देने की घोषणा अगले विधानसभा चुनाव से एक वर्ष पहले (2026) ही करते।

  • आप दावा करते हैं कि हमने भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टालरेंस की नीति अपनाई है, लेकिन आमजन की धारणा है कि पहले जो भ्रष्ट अधिकारी दस रुपये लेकर काम करते थे, अब 100 लेने लग गए हैं, ऐसी धारणा क्यों?
देखें, भ्रष्टाचार बहुत पुरानी ऐसी बीमारी है जो खून तक पहुंच चुकी है। मैंने तो यह कभी नहीं कहा कि हम इसे जड़ से खत्म कर चुके हैं। हमने इसे बहुत कम जरूर कर दिया है। हमारे पास जो कोई भी शिकायत पहुंचती है, उस पर कार्रवाई जरूर होती है।

इस दिशा में जो हमने किया, आज तक पंजाब में क्या देश में किसी भी पार्टी की सरकार ने नहीं किया। हमने अपने मंत्रियों और विधायकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर तुरंत कार्रवाई की। मंत्री पद से ही नहीं हटाया बल्कि अपने एक विधायक को विजिलेंस के हाथों ट्रैप लगवाकर रंगे हाथ गिरफ्तार करवा दिया।

क्या इतिहास में किसी मुख्यमंत्री ने ऐसा किया है? कभी नहीं। मैं गारंटी देकर कह सकता हूं कि डेढ़ साल में मुझ पर या मेरे करीबी पर एक रुपये का भी आरोप नहीं लगा सका है। एक भी अधिकारी यह नहीं बोल सकता कि डीसी या एसएसपी लगने के लिए मुख्यमंत्री के घर गिफ्ट लेकर गया था, लाबिंग की थी या पार्टी को फंड दिलवाया था।

कई डीसी या एसएसपी तो ऐसे थे, जिन्हें उनकी नियुक्ति के बारे में मीडिया या जानकारों से पता चला। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि भ्रष्टाचार अगर ऊपर से बंद कर देंगे तो नीचे भी बंद हो जाएगा। अगर एक करोड़ दिए बिना बड़े पद पर नियुक्ति मिल जाती है तो उसमें चार करोड़ इकट्ठा करने का न तो दुस्साहस होगा और न ही कोई दबाव।

  • यह ठीक है कि लोग मानते हैं कि भगवंत मान या उनके करीबी रिश्वत नहीं लेते हैं, लेकिन आपके कुछ वर्तमान मंत्रियों, विधायकों और पार्टी नेताओं के किस्से तो किसी से छिपे नहीं हैं, उनका क्या?
कई बार विरोधी पार्टियां ऐसे किस्से जानबूझ कर फैलाती हैं। देखो... अपना तो सीधा सा फंडा है कि अगर इंजन ईमानदार है, सही है, आधुनिक है, रफ्तार भी तेज है और प्रदूषण भी नहीं फैलाता, तो सब ठीक है।

अगर एक-दो या चार डिब्बों में कहीं कोई गड़बड़ी होगी भी, कोई दिक्कत आएगी तो अगले स्टेशन पर उन डिब्बों को तुरंत हटा देंगे। कुछ डिब्बे पिछले स्टेशनों पर छोड़े भी हैं।

अगर जरूरत महसूस हुई तो आने वाले समय में कुछ और को छोड़ देंगे, लेकिन गाड़ी को पटरी से उतरने नहीं देंगे।

  • आपके नेताओं पर जब ईडी या सीबीआइ छापामारी करती है तो आप उसे केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा ‘राजनीतिक दमन’ कहते हैं, लेकिन उसी तरह जब राज्य विजिलेंस ब्यूरो विपक्षी पार्टियों के नौ पूर्व मंत्रियों पर हाथ डालता है तो आप उसे भ्रष्टाचार विरोधी अभियान कह कर अपनी पीठ ठोकते हैं, ऐसा दोहरा मापदंड क्यों?
हमने तो कभी किसी का विरोध नहीं किया। कोई गाली-गलौच नहीं किया। आप नेता सत्येन्द्र जैन हों या फिर सिसोदिया जी या कोई अन्य, हमने तो उनकी संभावित गिरफ्तारी के बारे में आशंका जाहिर करते हुए सीधे-सीधे दावा किया था कि जो चाहे कर लो हमारे नेता बेदाग बाहर आएंगे। और हमारे उन दावों की सत्यता तो अदालत की टिप्पणियों में भी सामने आ चुकी है।

अब रही बात पंजाब की तो सबको पता है विजिलेंस जांच के दायरे में आए कांग्रेस नेताओं के साथ मेरा कभी न तो जमीन का कोई विवाद रहा और न ही कभी कोई व्यापारिक सांझ। ऐसे में राजनीतिक या निजी द्वेष का प्रश्न ही नहीं उठता है।

पॉलिटिकल रंगत देने के बजाय इन्हें तो यह बताना चाहिए कि बैंकों में रखी जाने वाली नोट गिनने की पांच-पांच मशीनों का उनके घरों में क्या काम था? क्या इन लोगों के घरों पर नोट गिनने वाली मशीनें मैंने रखवा दी थी?

आप जरा एक बार जाकर इनके घरों और अन्य प्रापर्टी को नाप कर तो देखो। नोट गिनने वाली मशीनें रखने का राज और तथाकथित राजनीतिक द्वेष की कहानी का सच सामने आ जाएगा।

  • सत्ता बदलने पर पिछली सरकारों में भी पूर्व मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के केस दर्ज हुए, लेकिन आज तक एक मंत्री को छोड़ कर सभी बरी हुए हैं। अब आपके कार्यकाल में सजा होगी, इसकी क्या गारंटी है?
पूरी गारंटी है (मेज ठोकते हुए...) बस आप देखते रहिए। हमने किसी भी स्तर पर कोई कसर नहीं छोड़ी है। जांच की बात हो या फिर कोर्ट में वकीलों द्वारा की जाने वाली पैरवी। पिछली सरकारों में माननीयों और रसूखदारों के खिलाफ सरकारी वकीलों को पैरवी करने की जगह केस कमजोर करने का जिम्मा दिया जाता था।

हमनें उन्हें केवल जीत का लक्ष्य दिया है। किसी भी सांसद या विधायक के खिलाफ भ्रष्टाचार या आपराधिक मामले में दर्ज केसपांच साल (सरकार के कार्यकाल) से अधिक लंबित नहीं रहना चाहिए। हम प्रयास कर रहे हैं कि उनके मामलों की सुनवाई के लिए विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएं और प्रत्येक मामले के निपटारे को समयबद्ध किया जाए।

मैं खुद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इस संबंध में निवेदन करने वाला हूं, जिससे कि हम भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर वही एमपी व एमएलए कोर्ट बना पाएं जिसने गैंगस्टर मुख्तार अंसारी को पंजाब से वापस भेजे जाने के बाद कुछ ही समय में सजा सुना दी।

इसके लिए हमारे स्तर पर कोई भी सहयोग चाहिए होगा, वह हम देंगे और कुछ महीनों में सुनवाई पूरी करवा कर भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाकर इतिहास रचेंगे। जिस तरह हमने जांच की है, हमें विश्वास है कि सुबूतों के आधार पर उन्हें सजा जरूर मिलेगी।

  • नशे की समस्या को लेकर चुनाव से पहले चार हफ्ते में इसका समाधान करने की बात करते हुए आप और अरविंद केजरीवाल हर भाषण में कहते थे कि एक महीने के लिए पुलिस हमारी कमांड में आ जाए तो समस्या जड़ से मिटा देंगे। अब तो एक साल से ज्यादा ...?
(सवाल रोक बीच में टोकते हुए)... यह तो विपक्ष की भाषा बोल रहे हैं आप... क्या आपको एक साल में कोई फर्क महसूस नहीं हुआ? मेरे जवाब के लिए आपको पहले इसका उत्तर देना होगा कि क्या पिछले एक साल में आपको पंजाब में कोई ऐसा मामला संज्ञान में आया जिसमें हमारे द्वारा लगाए गए किसी भी जिले के एसएसपी, एसपी, डीसी या अन्य अधिकारी पर ड्रग माफिया को संरक्षण देने या उन पर कार्रवाई में ढील बरतने का आरोप लगा हो। नहीं न ..!

जबकि पिछली सरकारों में मंत्रियों और विधायकों के साथ ऐसे लोगों के रिश्ते तो आम बात थी। उस समय तो अधिकारियों के साथ नशा तस्करों की संपत्ति में सांझ के दस्तावेज और पार्टियों की तस्वीरें वायरल हो जाती थीं। मार्च 2022 के बाद सब बदल गया...कैसे?

जब इस बात पर कोई ध्यान देगा तो आपके सवाल का जवाब अपने आप मिल जाएगा। हमने सख्ती दिखाई तो एक वर्ष में 12,171 केस दर्ज कर 2316 बड़े तस्करों सहित 16,798 नशा सप्लायरों को गिरफ्तार किया। 13 करोड़ से अधिक की ड्रग मनी भी बरामद की।

  • कुंडली बार्डर पर केंद्र के खिलाफ जिन किसान संगठनों को आम आदमी पार्टी ने पूरा सहयोग देकर जीवंत किया, वही किसान संगठन अब पंजाब में भगवंत मान के गले की फांस बन गए हैं। हर दिन धरना, प्रदर्शन और आंदोलन की चेतावनी। यह सब तो रोजमर्रा का हिस्सा हो गया है। क्या कहेंगे?
हमारी सरकार के लिए किसान कभी कोई परेशानी नहीं बने हैं। हम किसानों की मांगों के साथ आज भी खड़े हैं। पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। यहां किसानी खत्म होने का मतलब पंजाब का वजूद खत्म होना है। लोकतंत्र में अपनी मांगों या अपनी आवाज उठाने के लिए प्रदर्शन करना सभी का अधिकार है।

पंजाब में आप की सरकार बनने के बाद न तो कभी मैंने इनके धरने का विरोध किया और न ही कभी हमारे किसी मंत्री ने। हम सभी तो सचिवालय छोड़ खुद उनके धरने वाले स्थान पर बातचीत के लिए पहुंच जाते हैं।

हां, अगर कभी कभार मैंने कोई नाराजगी जाहिर की भी तो उसकी वजह उनकी मांगें नहीं बल्कि उस धरने की वजह से आम जनता को हो रही पेरशानी होती है। उन्हें समझना चाहिए कि जब वह ऐसा करते हैं तो उससे सरकार को कम और उनके आसपास के लोगों को अधिक परेशानी होती है।

केंद्र की नीतियों के खिलाफ वह धरना लगाते हैं, टोल प्लाजा पर यह मानकर कि टोल केंद्र सरकार का है लेकिन भूल जाते हैं कि परेशान होने वाले तो ज्यादातर स्थानीय लोग हैं। इसी तरह रेल जिसे वह रोकते हैं, वह केंद्र की हो सकती है लेकिन उसमें यात्रा कर रहे लोग तो पंजाब के ही हैं।

  • राज्यपाल और आपके बीच संबंध इस कदर बिगड़ गए हैं कि राज्यपाल ने तो सीधे-सीधे राष्ट्रपति शासन की धमकी दे डाली है। यह लड़ाई आखिर कब थमेगी?
राज्यपाल यह सब उसके इशारे पर कर रहे हैं जिस भाजपा सरकार ने केंद्र में रहते हुए दिल्ली को लेकर संविधान और सुप्रीम कोर्ट तक के फैसलों को छींके पर टांग दिया। दरअसल राज्यपाल भी सत्ता की बागडोर अपने हाथ में लेने के लिए साजिश रच रहे हैं।

कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि वह पंजाब के राज्यपाल नहीं हरियाणा के हकों के अधिवक्ता हैं। मसला हरियाणा के कालेजों को पंजाब यूनिवर्सिटी और चंडीगढ़ के साथ जोड़ने का हो या चंडीगढ़ में तैनात पंजाब काडर के अधिकारियों की तैनाती का।

माननीय राज्यपाल पंजाब की जगह हरियाणा के हक में खड़े हो जाते हैं। जब केंद्र सरकार द्वारा फंड रोकने के विरोध में पंजाब के लिए आवाज उठाने की बात हो तो राज्यपाल मौन साध लेते हैं। दरअसल जहां गैर भाजपा राज है, वहां राज्यपाल का मुख्यमंत्रियों से विवाद है।

रही बात इस विवाद के अंत की तो मैं तो यही कहता हूं कि चुनी गई सरकार ने जो बिल विधानसभा में पास किया, उन्हें (राज्यपाल) उस पर हस्ताक्षर तो करने ही पड़ेंगे। मैं उनका पूरा सम्मान करता हूं। मेरे लिए वह बहुत वरिष्ठ हैं लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि वह हमारे हर फैसले पर किंतु-परंतु करते रहेंगे।

मैं चुनी हुई बहुमत की सरकार का मुखिया हूं। अगर मैं किसी दागी को भी अपने मंत्रिमंडल में जगह देता हूं तो जाहिर है कि उसका राजनीतिक खामियाजा पांच साल बाद मुझे ही भुगतना पड़ेगा। लोग मुझे नकार देंगे। मेरे मंत्रिमंडल में भला राज्यपाल की दखलंदाजी क्यों?

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