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'परिवार का नाम क्यों खराब करना', आखिर लिव-इन में रहने वाले कपल को हाईकोर्ट ने सुरक्षा देने से क्यों किया इनकार?

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने शादीशुदा जोड़े को यह कहकर सुरक्षा देने से इनकार कर दिया कि वे अपने माता-पिता का नाम खराब कर रहे हैं तथा उनके सम्मान के साथ जीने के अधिकार का भी उल्लंघन कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि विवाहित पुरुष और महिला या विवाहित महिला और पुरुष के बीच लिव-इन रिलेशनशिप विवाह के समान नहीं है।

By Dayanand Sharma Edited By: Prince Sharma Updated: Fri, 26 Jul 2024 06:25 PM (IST)
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Chandigarh News: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट (जागरण फाइल फोटो)

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने परिवार के सदस्यों से खतरे की आशंका के कारण पहले से ही विवाहित लिव-इन जोड़ों को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है।

हाईकोर्ट ने कहा कि जो विवाहित जोड़े अपने माता-पिता के घर से भागकर लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं, वे अपने माता-पिता का नाम खराब कर रहे हैं और माता-पिता के सम्मान के साथ जीने के अधिकार का भी उल्लंघन कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि भारत लिव-इन रिलेशनशिप की पश्चिमी संस्कृति को अपना रहा है। यदि वह यह मानता है कि याचिकाकर्ताओं के बीच सम्बंध विवाह की प्रकृति का सम्बंध है, तो यह उस पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय होगा, जिन्होंने उस संबंध का विरोध किया था।

'ऐसी महिलाएं अधिनियम के तहत सुरक्षा की हकदार नहीं'

लिव-इन रिलेशनशिप जोड़ों को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए जस्टिस संदीप मौदगिल ने कहा विवाहित पुरुष और महिला या विवाहित महिला और पुरुष के बीच लिव-इन रिलेशनशिप विवाह के समान नहीं है, क्योंकि यह व्यभिचार और द्विविवाह के बराबर है, जो गैरकानूनी है। इसलिए, ऐसी महिलाएं अधिनियम के तहत किसी भी सुरक्षा की हकदार नहीं हैं।

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हाईकोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता इस तथ्य से पूरी तरह अवगत हैं कि वे दोनों पहले से विवाहित हैं, इसलिए वे लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं आ सकते।

सभी लिव-इन रिलेशनशिप विवाह की प्रकृति के संबंध नहीं होते। इसलिए याचिकाकर्ताओं के संबंध विवाह की प्रकृति के संबंध नहीं हैं।

पहले से विवाहित याचिकाकर्ताओं का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा यदि यह कोर्ट यह मानता है कि याचिकाकर्ता एक और याचिकाकर्ता दो के बीच संबंध विवाह की प्रकृति का संबंध है, तो हम उस संबंध का विरोध करने वाली पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय करेंगे।

'याचिकाओं को अनुमति देकर दिया जा रहा बढ़ावा'

कोर्ट ने कहा कि विवाह में प्रवेश करना एक ऐसे रिश्ते में प्रवेश करना है जिसका सार्वजनिक महत्व भी है। विवाह और परिवार की संस्थाएं महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएं हैं जो सुरक्षा प्रदान करती हैं और बच्चों के पालन-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

जस्टिस मौदगिल ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को शांति, सम्मान और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, इसलिए इस तरह की याचिकाओं को अनुमति देकर हम गलत काम करने वालों को प्रोत्साहित कर रहे हैं और कहीं न कहीं द्विविवाह की प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में सम्मान के साथ जीने का अधिकार शामिल है।

याचिकाकर्ता अपने माता-पिता के घर से भागकर न केवल परिवार को बदनाम कर रहे हैं, बल्कि माता-पिता के सम्मान और सम्मान के साथ जीने के अधिकार का भी उल्लंघन कर रहे हैं।

विवाह एक पवित्र रिश्ता है: हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने ये टिप्पणियां पंजाब एवं हरियाणा से जुड़े तीन जोड़ों की सुरक्षा याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की जो लिव-इन रिलेशनशिप में हैं। याचिकाओं को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा विवाह एक पवित्र रिश्ता है।

हमारा देश, अपनी गहरी सांस्कृतिक जड़ों के साथ, नैतिकता और नैतिक तर्क पर महत्वपूर्ण जोर देता है। हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया, हमने पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर दिया, जो भारतीय संस्कृति से बहुत अलग है।

भारत के एक हिस्से ने आधुनिक जीवनशैली को अपना लिया है, यानी लिव-इन रिलेशनशिप। कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को सुरक्षा दी गई तो समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा।

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