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तलाक के बाद पति-पत्नी को गलती का अहसास, हाईकोर्ट से आदेश को रद्द करने के लिए की अपील; अदालत ने दिया झटका

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक गजब का मामला देखने को मिला है। दरअसल एक तलाकशुदा पति-पत्नी को तलाक के बाद अपनी गलती का अहसास हुआ जिसके बाद उन्होंने फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करने के लिए याचिका दायर की थी जिसको हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर साथ रहना चाहते हैं तो दोबारा शादी करने पड़ेगी।

By Jagran News Edited By: Nitish Kumar Kushwaha Updated: Wed, 07 Aug 2024 08:58 AM (IST)
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तलाक के आदेश को रद्द करने वाले याचिका को हाईकोर्ट ने किया खारिज। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पति-पत्नी ने वैवाहिक विवाद के चलते फैमिली कोर्ट में आपसी सहमति से तलाक ले लिया था, लेकिन बाद में उनको अपनी गलती का अहसास हुआ।

इसके बाद उन्होंने साथ रहने के रहने के लिए फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को रद्द करने की पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट से गुहार लगाई। हाईकोर्ट ने उनकी अपील को खारिज करते हुए कहा कि वे दोबारा विवाह कर सकते हैं, लेकिन तलाक का आदेश रद्द नहीं हो सकता।

कोर्ट ने इस वजह से खारिज किया अपील

हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत आपसी सहमति से विवाह विच्छेद के खिलाफ अपील इस आधार पर स्वीकार्य नहीं होगी कि युगल फिर से पति-पत्नी के रूप में साथ रहना चाहता है।

जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कहा कि पक्षकारों को बाद में अपने शपथ पत्र वापस लेने और सुलह की इच्छा जताने की अनुमति देना, यह कहकर कि उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया है और अब वे साथ रहना चाहते हैं, कोर्ट की अवमानना और झूठी गवाही के बराबर होगा। इसके अतिरिक्त यह व्यवहार कोर्ट के अधिकार को कमजोर करेगा।

पीठ ने कहा कि चूंकि अब पक्षों को अपनी गलती का अहसास हो गया है और वे साथ रहना चाहते हैं, इसलिए अधिनियम की धारा 15 के अनुसार उन्हें फिर से विवाह करने की अनुमति है। अधिनियम में उन पक्षों के पुनर्विवाह पर कोई रोक नहीं है, जिन्होंने तलाक लिया है।

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तलाक के बाद गलती का हुआ अहसास

हाईकोर्ट संगरूर के तलाकशुदा पति-पत्नी की अपील पर सुनवाई कर रहा था। दोनों ने संगरूर फैमिली कोर्ट द्वारा उनकी आपसी सहमति से दिए गए तलाक को रद्द करने की हाईकोर्ट से अपील की थी।

नाबालिग बेटी की अभिरक्षा पत्नी को दी गई थी। तलाक की डिक्री में कहा गया था कि पक्षकार कोर्ट में दिए गए अपने बयानों से बंधे रहेंगे। अपीलकर्ताओं (दंपत्ती) के वकील ने दलील दी कि सहमति से तलाक की डिक्री प्राप्त करने के पश्चात अपीलकर्ताओं को गलती का अहसास हो गया है।

अब वे नाबालिग बच्चे के कल्याण के लिए साथ रहना चाहते हैं, क्योंकि तलाक ने नाबालिग बच्चे को सबसे अधिक प्रभावित किया है।

फिर से कर सकते हैं विवाह

कोर्ट ने इस प्रश्न पर विचार किया कि क्या अधिनियम की धारा 13-बी के अंतर्गत आपसी सहमति से विवाह को समाप्त करने के विरुद्ध अपील की जा सकेगी, जबकि तलाक सहमति से है। सीपीसी की धारा 96(3) के तहत पक्षों की सहमति से न्यायालय द्वारा पारित तलाक के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती।

हाईकोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 15 के प्रविधान के अनुसार, जब विवाह तलाक की डिक्री द्वारा विघटित हो जाता है और डिक्री के खिलाफ अपील का कोई अधिकार नहीं होता है या अपील प्रस्तुत की गई है, लेकिन खारिज कर दी गई है तो किसी भी पक्ष के लिए फिर से विवाह करना वैध होगा।

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