Punjab News: राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने विजिलेंस ब्यूरो (रिपील) बिल को दी मंजूरी, एक साल से था लंबित
भगवंत मान सरकार पहली नहीं है जिसने विजिलेंस कमीशन को भंग किया हो। ऐसा पिछली अकाली-भाजपा सरकार ने भी किया था। कैप्टन ने दो बार राज्य की बागडोर संभाली और अपने दोनों कार्यकाल के दौरान उन्होंने विजिलेंस आयोग का गठन किया। पहली बार अक्टूबर 2006 में जिसे बाद में प्रकाश सिंह बादल की सरकार ने मार्च 2007 में भंग कर दिया था।
कैलाश नाथ, चंडीगढ़। राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने एक साल से भी लंबित पड़े विजिलेंस ब्यूरो (रिपील) बिल-2022 को मंजूरी दे दी है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार द्वारा गठित आयोग को भंग करने के लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक अक्टूबर, 2022 को बिल पेश किया था।
इसे उसी साल दस अक्टूबर को राज्यपाल के पास भेजा गया था, लेकिन मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच बिगड़े संबंधों के कारण यह बिल लंबित पड़ा हुआ था। बिल को मंजूरी नहीं मिलने के बाद न्यायाधीश मेहताब सिंह गिल (सेवानिवृत्त) की छुट्टी तय हो गई है।
जस्टिस गिल को पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कमिश्नर लगाया था। राज्यपाल ने यह कहते हुए अपनी सहमति नहीं दी थी कि यह एक मनी बिल है और सरकार ने इसे पेश करने के लिए उनकी पूर्व अनुमति नहीं ली थी। नवंबर की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को राज्यों के विधेयकों को मंजूरी देने का निर्देश दिया था। राज्यपाल ने छह दिसंबर को तीन लंबित बिलों को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेज दिया था।
राष्ट्रपति को भेजे गए तीन बिल विवादास्पद थे। उनमें से एक पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) बिल 2023, राज्य में विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल को हटाने के बारे में था। अन्य दो बिल सिख गुरुद्वारा (संशोधन) बिल, 2023 और पंजाब पुलिस (संशोधन) बिल, 2023 था। राज्यपाल ने चौथे बिल को मंजूरी दे दी है। बिल पेश करते समय भगवंत मान ने कहा था कि राज्य में विजिलेंस कमीशन की जरूरत नहीं है।
भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने के लिए राज्य में विजिलेंस विभाग सहित कई एजेंसियां हैं। इसलिए, ओवरलैपिंग, विरोधाभासी निष्कर्षों, परिणामी देरी और संचार में अंतराल से बचने के लिए पंजाब राज्य विजिलेंस कमीशन अधिनियम 2020 (2020 का पंजाब अधिनियम संख्या 20) को निरस्त करना आवश्यक हो गया है।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि आयोग को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 और भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018 के तहत लोक सेवकों के खिलाफ शिकायतों की जांच करना या जांच शुरू करना अनिवार्य था। हालांकि, यह एक होने के अलावा किसी भी उपयोगी उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा है। इससे राज्य के खजाने पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
पहले भी भंग हुआ है विजिलेंस कमीशन
मान सरकार पहली नहीं है, जिसने विजिलेंस कमीशन को भंग किया हो। ऐसा पिछली अकाली-भाजपा सरकार ने भी किया था। कैप्टन ने दो बार राज्य की बागडोर संभाली और अपने दोनों कार्यकाल के दौरान उन्होंने विजिलेंस आयोग का गठन किया। पहली बार अक्टूबर 2006 में जिसे बाद में प्रकाश सिंह बादल की सरकार ने मार्च 2007 में भंग कर दिया था।
इसके बाद नवंबर 2020 में कैप्टन ने फिर से आयोग का गठन किया गया। अप्रैल, 2021 में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति मेहताब सिंह गिल को आयोग का प्रमुख नियुक्त किया था और उनका कार्यकाल अप्रैल 2026 में समाप्त होना था। राज्यपाल द्वारा बिल को मंजूरी देने के बाद उनका कार्यकाल भी खत्म हो जाएगा।
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