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Raja Warring Interview: 'कांग्रेस जीते या आप; हारेंगे तो मोदी ही', राजा वड़िंग बोले- कभी मुख्यमंत्री बनने की मेरी भी इच्छा...

पंजाब में आखिरी चरण में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। इससे पहले दैनिक जागरण ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग (Raja Warring Interview) से खास बातचीत की है। इस दौरान उन्होंने एक सवाल का जवाब देते हुए पंजाब का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा भी जाहिर की है। साथ ही कहा है कि कांग्रेस जीते या आप हारेंगे तो मोदी ही।

By Jagran News Edited By: Gurpreet Cheema Updated: Thu, 30 May 2024 10:46 AM (IST)
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दैनिक जागरण के साथ पंजाब के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजा वड़िंग का खास इंटरव्यू
पंजाब में कांग्रेस को गर्दिश से निकालकर नई जान फूंकने वाले प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग अपनों के विरोध के बावजूद लड़ने से पीछे नहीं हटे। यही कारण है कि कांग्रेस हाईकमान ने उन पर भरोसा रखा और उनके कहने पर पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) से गठबंधन नहीं किया, जबकि अन्य सभी राज्यों में दोनों पार्टियां गठबंधन के तहत लड़ रही हैं।

प्रदेश अध्यक्ष कहते हैं कि ये लड़ाई संविधान बचाने की है और पंजाब में चाहे कांग्रेस जीते चाहे आप, हार तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और एनडीए गठबंधन की ही होनी है। प्रदेश में चाहे आप की कुछ गलत नीतियों के कारण कुछ मतभेद हैं, लेकिन उनसे कोई लड़ाई नहीं है। हमारे सीनियर चीफ रिपोर्टर भूपेंदर सिंह भाटिया ने प्रदेश अध्यक्ष से राजनीति और अन्य मसलों पर कई सवाल पूछे, जिनका राजा वड़िंग ने दिल खोलकर जवाब दिया। प्रस्तुत हैं इसके प्रमुख अंश:

1. कांग्रेस की मुख्य लड़ाई किस पार्टी से है और राज्य में कांग्रेस कितनी सीटें जीत रही है?

कांग्रेस की लड़ाई किसी के भी साथ नहीं है। जहां तक सीटें जीतने की बात है, मैं भगवंत मान जी की तरह 13-0 की बात तो नहीं करूंगा। इतना जरूर कहूंगा कि पिछली बार के मुकाबले अच्छा परिणाम रहेगा।

2. पिछली बार कांग्रेस ने आठ सीटें जीती थीं। अब नए समीकरण में क्या संभावनाएं नजर आ रही हैं?

पिछली बार के मुकाबले इस बार समीकरण काफी अलग हैं। इस बार एकतरफा चुनाव है। सिर्फ नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव है। हमारा वोट प्रतिशत अन्य सभी पार्टियों से अधिक होगा। कारण यह है कि लोग जानते हैं कि कांग्रेस ने ही देश का विकास किया है।

3. पंजाब में आम आदमी पार्टी से चुनावी गठबंधन के खिलाफ आपने डट कर आवाज बुलंद की थी और यहां समझौता हुआ भी नहीं। अलग-अलग चुनाव लड़ने का फायदा होता दिख रहा है या नुकसान?

यहां किसी फायदे या नुकसान की बात नहीं है। यह तो स्पष्ट है कि अगर हम आम आदमी पार्टी से समझौता करते तो हमें फायदा होता और सीटें बढ़तीं। लेकिन यहां बात ही अलग थी। आप सरकार ने हमारे साथ यहां काफी बुरा बर्ताव किया। हमारे नेताओं को बेवजह परेशान किया गया और जेलों में भी बंद कर दिया गया। ऐसे में हम उस पार्टी के साथ कैसे लड़ सकते थे। यही काम तो देश में भाजपा हमारे साथ कर रही है। यही कारण था कि हमने दिल्ली में हाईकमान को कह दिया था कि हम घर बैठ जाएंगे, लेकिन यहां समझौता नहीं किया जा सकता। हमें खुशी है कि हाईकमान ने हमारी बात सुनी।

4. कांग्रेस के पंजाब के नेता जहां भगवंत मान सरकार व आम आदमी पार्टी पर हमला बोलते हैं, वहीं आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे, राहुल गांधी, प्रियंका इनके खिलाफ कुछ नहीं बोलते। क्या शीर्ष स्तर पर पंजाब में भी समझौता है?

मैं तो पहले भी बता चुका हूं कि यह चुनाव पूरी तरह भाजपा और एनडीए के खिलाफ है। इसलिए शीर्ष स्तर के नेता भी भाजपा पर निशाना साध रहे हैं। आम आदमी पार्टी से तो हमारी कोई लड़ाई ही नहीं है। हमारे नेता क्यों उनके खिलाफ क्यों बोलेंगे। मुझे नहीं लगता कि उनके खिलाफ कुछ बोलने की जरूरत है।

5. इसका मतलब पंजाब में चाहे आप जीते या कांग्रेस, सीट तो इंडी गठबंधन के खाते में ही जाएगी। संसद में आप कैसे तालमेल बिठा पाएंगे?

इंडी गठबंधन का गठन देश को विकास की राह पर लाने और देश के संविधान को बचाने के लिए किया गया है। हमारी जितनी अधिक सीटें होंगी, संसद में पावर भी उतनी अधिक होगी। संसद में जब साथी पार्टियों का साथ मिलेगा तो आवाज को जोरदार तरीके से बुलंद किया जाएगा।

6. आप पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन लुधियाना से बाहर अन्य सीट पर प्रचार नहीं कर पाए? ऐसी ही स्थिति पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी और उनकी सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे सुखजिंदर रंधावा की है? प्रचार मुहिम में इसके ओवरऑल प्रभाव को कैसे देखते हैं?

मैं लगातार प्रचार कर रहा हूं। दो दिन पहले ही मुक्तसर जाकर आया हूं। ये बात अलग है कि अगर मैं चुनाव न लड़ रहा होता तो साथियों के लिए अधिक प्रचार कर पाता। हालांकि यहां मैदान में उतरना इसलिए जरूरी था, क्योंकि अगर कोई हमें ललकारे तो हम पीछे कैसे हट सकते हैं।

7. आप तीनों को कांग्रेस पार्टी में 2027 विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखा जाता है। कहा जा रहा है कि आप तीनों जीते तो प्रदेश की सक्रिय राजनीति से बाहर और अगर हारे तो पार्टी में कद कम होगा। इसके बारे में क्या कहेंगे?

ऐसा तो नहीं है। संसद में जाने के बाद क्या कोई सीएम नहीं बन सकता। पहले भी कई ऐसे नेता रहे हैं जो संसद में जाने के बाद मुख्यमंत्री बने हैं। मैं दिल्ली जाकर भी पंजाब से पूरी तरह जुड़ा रहूंगा। वहां भी तो मैं पंजाब के ही मुद्दे उठाऊंगा।

मैं अभी तो किसी रेस में नहीं हूं लेकिन मेरी इच्छा जरूर है कि मैं कभी मुख्यमंत्री बनूं। जब राहुल गांधी व हाईकमान का मन होगा तो मैं इसके लिए जरूर तैयार रहूंगा। हालांकि मैं बिट्टू नहीं हूं, जो इतना सम्मान मिलने के बाद भी पार्टी छोड़ जाऊं।

8. आपके साथी प्रताप सिंह बाजवा कुछ खास सक्रिय नहीं दिख रहे। जबकि जिस दिन आपको उम्मीदवार घोषित किया गया, उन्होंने प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था कि जब तक आप जीत नहीं जाते, तब तक लुधियाना में ही डेरा डालेंगे। इसे आप कैसे देखते हैं?

प्रताप सिंह बाजवा मुझे पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं। प्रदेश प्रधान के रूप में मुझ पर राज्य भर की जिम्मेदारी थी। अब मैं लुधियाना में व्यस्त हूं तो बाजवा राज्य की अन्य सीटों पर भी प्रत्याशियों की मदद कर रहे हैं। उनका अनुभव सभी प्रत्याशियों के लिए जरूरी है। वे अपनी तरफ से पूरा सहयोग कर रहे हैं।

9. रवनीत बिट्टू का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए कितना बड़ा झटका रहा? एक सिटिंग सांसद ने आखिर पार्टी क्यों छोड़ी? क्या उनका टिकट कट रहा था?

रवनीत बिट्टू के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को नुकसान नहीं फायदा हुआ है। वह भाजपा के साथ मिले थे और अगर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते तो पार्टी यह सीट तो बिल्कुल हार जाती है। दूसरा बिट्टू के कारण स्थानीय नेता और कार्यकर्ता काफी निराश थे। जब से बिट्टू ने पार्टी छोड़ी है, हमारे नेता और कार्यकर्ता काफी खुश हो गए हैं। उनमें एक नया उत्साह आया है।

10. जब बिट्टू ने आपको टिकट दिए जाने पर बाहरी कहा था तो आपने कहा था कि प्रदेश प्रधान कभी बाहरी नहीं होता। चुनाव जीतने के बाद आप लुधियाना में बसेंगे या गिद्दड़बाहा से ही काम करेंगे?

मैं फिर वही बात दोहराता हूं कि प्रदेश प्रधान कैसे बाहरी हो गया। बिट्टू शायद भूल रहे हैं कि जिस पार्टी में वे हैं, वहां गुजरात के नरेन्द्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ते हैं, अरुण जेटली अमृतसर से आकर चुनाव लड़े थे और बिट्टू खुद भी जलालबाद से चुनाव लड़ चुके हैं। यह सब बाहरी नहीं हैं क्या। संसद में कोई भी सांसद बाहरी नहीं होता। इसके अलावा कहीं रहना या न रहना जरूरी नहीं होता। वहां के लोगों से जुड़े रहना जरूरी होता है।

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