Punjab News: राजनीतिक करियर में सबसे बड़े भंवरजाल में फंसे SAD प्रधान सुखबीर बादल, इन वजहों के कारण बागियों ने की बगावत
पंजाब में इन दिनों शिरोमणि अकाली दल में इन दिनों बगावत की स्थिति बनी हुई है। 29 साल के राजनीतिक अनुभव के बावजूद भी पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल (Sukhbir Badal) इस बार सबसे बड़े भंवरजाल में फंसे नजर आ रहे हैं। बगावत कर रहे बागियों का कहना है कि दो बार विधानसभा चुनाव और एक बार लोकसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी प्रमुख को पद छोड़ देना चाहिए।
कैलाश नाथ, चंडीगढ़। शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल अपने 29 वर्ष के राजनीतिक कैरियर में सबसे बड़े भंवरजाल में फंसे नजर आ रहे है। उनके नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल लगातार दो विधानसभा चुनाव और एक लोकसभा चुनाव हार चुकी है। हाल ही में संपन्न हुए चुनाव में शिअद को मात्र एक सीट पर ही जीत मिली।
चुनाव में मिली करारी हार के बाद से ही सुखबीर बादल के खिलाफ पार्टी नेताओं ने बगावत कर दी है। बागी नेता सुखबीर बादल की जगह किसी अन्य को प्रधान के रूप में देखना चाहते है। इसी क्रम में बागी नेता सोमवार एक जुलाई को अकाल तख्त पर भी पेश होंगे।
पहले भी सुखबीर बादल के लिए खड़ी हो चुकी मुसीबतें
यह पहला मौका नहीं हैं जब सुखबीर बादल के लिए परेशानियां खड़ी हुई हो। अक्टूबर 2015 में जब पंजाब में बेअदबी कांड हुआ और कोटकपूरा में गोलीकांड तब भी सुखबीर बादल के लिए परेशानियां खड़ी हुई थी। क्योंकि वह राज्य के गृह मंत्री व डिप्टी उप मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। हालांकि सत्ता में होने के कारण सरकार ने स्थिति तो संभाल ली लेकिन 2017 के विधान सभा चुनाव में अकाली दल मात्र 15 सीटों पर सिमट गया।
झूंडा कमेटी का गठन कर पार्टी का संगठनात्मक ढांचा किया भंग
जबकि शिअद की सबसे बड़ी हार 2022 के विधान सभा चुनाव में हुई जब पार्टी के मात्र तीन ही प्रत्याशी जीत का स्वाद चख सके। इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और खुद सुखबीर बादल समेत पार्टी के सभी बड़े नेता हार गए। इस हार के बाद भी सुखबीर के नेतृत्व पर सवाल खड़े हुए। हालांकि तब तक प्रकाश सिंह बादल जिंदा थे और पार्टी ने झूंडा कमेटी का गठन करके पार्टी का संगठनात्मक ढांचा भंग कर दिया लेकिन पार्टी की कमान सुखबीर बादल के हाथों में ही रही।
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बीजेपी से भी कम रहा वोट फीसद
लोकसभा चुनाव से पहले सुखबीर बादल ने पंजाब बचाओ यात्रा को निकाल कर पार्टी और लोगों का भरोसा जीतने की कोशिश की लेकिन चुनाव में वह अपनी पत्नी व पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल की सीट के अलावा कोई भी सीट पर जीत नहीं सके। जबकि पार्टी का मत प्रतिशत पहली बार 13 सीटों पर अकेले लड़ी भारतीय जनता पार्टी से भी नीचे चला गया। भाजपा को भले ही एक भी सीट नहीं मिली लेकिन उसने 18.57 वोट फीसदी हासिल की। जबकि शिअद को मात्र 13.42 फीसदी वोट मिले।
शिअद ने जालंधर वेस्ट से वापस लिया प्रत्याशी का नाम
जिसके बाद से प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा, परमिंदर ढींढसा, गुरप्रताप वडाला, बीबी जगीर कौर समेत एक दर्जन से अधिक नेताओं ने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर दी है। बागी दल सोमवार को अकाल तख्त पर भी पेश होगा। शिअद की स्थिति यह है कि जालंधर वेस्ट में होने वाले विधान सभा के उप चुनाव में उसने अपने प्रत्याशी का नाम वापस ले लिया और बहुजन समाज पार्टी को अपना समर्थन दे दिया। जबकि पार्टी को अभी विधानसभा का 4 और उप चुनाव, 5 नगर निगम व 39 नगर काउंसिलों के चुनाव में हिस्सा लेना है।
अहम बात यह है कि जिस सुखबीर बादल के नेतृत्व के खिलाफ पार्टी नेता सवाल खड़े कर रहे हैं, उन्हीं की नेतृत्व में 2012 में शिअद-भाजपा ने इतिहास रचते हुए लगातार दूसरी बार सरकार बनाई थी। तब विधान सभा में सुखबीर बादल के माइक्रो मैनेजमेंट की खासी सराहना हुई थी। हालांकि सुखबीर बादल के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी की कमान को संभाल कर रखना और आने वाले चुनाव में खुद को साबित करने की रहेगी।
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