Punjab Bye-Election: वोट बैंक कहीं BJP में न हो जाए शिफ्ट, अकाली दल के मैदान से हटने से बढ़ी AAP और कांग्रेस की चिंता
Punjab Bye_Election पंजाब में चार विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल के मैदान से हटने से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की चिंता बढ़ गई है। उन्हें डर है कि अकाली दल का वोट बैंक भाजपा के खाते में जा सकता है। भाजपा ने तीन सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे हैं जो कभी अकाली दल में थे।
इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। शिरोमणि अकाली दल के पंजाब में चार सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव में लड़ाई के मैदान से हटने से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की चिंता बढ़ रही है।
इन पार्टियों को लग रहा है कि शिरोमणि अकाली दल का वोट बैंक भाजपा के खाते में शिफ्ट हो सकता है। इसके पीछे कारण यह है कि शिअद और भाजपा का ढाई दशक तक गठजोड़ रहा है और दोनों दलों के नेता एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने भी चार सीटों में से तीन सीटों पर ऐसे उम्मीदवारों को उतारा जो किसी ने किसी समय पर में शिरोमणि अकाली दल से जुडे रहे हैं।
गिदड़बाहा में मनप्रीत बादल, डेरा बाबा नानक में रवि करण काहलों और चब्बेवाल में सोहन सिंह ठंडल तीनों शिरोमणि अकाली दल से आए हैं और उनकी शिअद कार्यकर्ताओं से नजदीकियां भी रही हैं।
SAD के इन नेताओं ने छोड़ा दामन
मनप्रीत बादल इनमें से ऐसे हैं जिन्होंने शिरोमणि अकाली दल को विदा कहे काफी समय हो गया है लेकिन वह गिदड़बाहा सीट पर ही शिअद का चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।वह हर घर को जानते हैं। इसी तरह से डेरा बाबा नानक सीट से रवि किरण काहलों भी लंबे समय तक अकाली दल में रहे हैं।उनके पिता निर्मल सिंह काहलों पंजाब विधानसभा के स्पीकर और पूर्व मंत्री भी रहे हैं। रवि किरण के भाजपा के बड़े नेताओं के साथ भी सीधे संबंध रहे हैं।चब्बेवाल सीट पर चुनाव लड़ रहे भाजपा के सोहन सिंह ठंडल तो तीन दिन पहले तक अकाली दल में ही थे। वह भी अकाली सरकार में मंत्री रह चुके हैं।
यह भी पढ़ें- उपचुनाव से पहले AAP की बढ़ी मुसीबत, इस दिग्गज नेता ने पार्टी को कहा बाय-बाय; अब थामा किस पार्टी का दामन?भाजपा के लिए दिक्कत की बात केवल यह है कि ये तीनों सीटें निरोल ग्रामीण सीटें हैं और तीन खेती कानूनों के बाद से ही ग्रामीण वर्ग की भाजपा के प्रति नाराजगी काफी ज्यादा है।
इन तीनों उम्मीदवारों को पूरा जोर लगाकर अकाली दल के उस वोट बैंक को पार्टी में लाने की कोशिश करनी होगी जो इस बार अपनी पार्टी के प्रत्याशी के खड़ा न होने के कारण असमंजस की स्थिति में दिखाई पड़ रहा है।
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