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Punjab Politics: शिअद की शर्तों में उलझी राजनीतिक पार्टियों की रणनीति, SAD-BJP गठबंधन पर टिकी कांग्रेस की नजर

Punjab Politics पंजाब में राजनीतिक पार्टियों की रणनीति शिअद की शर्तों में उलझ गई है। कांग्रेस की रणनीति है कि वह चुनाव में खुद को प्रबल प्रतिद्वंदी के रूप में पेश करे। कांग्रेस मान रही है कि अगर शिअद-भाजपा का गठबंधन होता है तो उसका मुकाबला गठबंधन के साथ होगा। वर्तमान में कांग्रेस के 6 सिटिंग सांसद है। इसमें से अधिकांश के सर्वे रिपोर्ट पार्टी के अनुकूल नहीं है।

By Kailash Nath Edited By: Himani Sharma Updated: Sun, 24 Mar 2024 01:30 PM (IST)
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शिअद की शर्तों में उलझी राजनीतिक पार्टियों की रणनीति
कैलाश नाथ, चंडीगढ़। Punjab Lok Sabha Election 2024: पंजाब के लोगों की नजर शिरोमणि अकाली दल (SAD) और भाजपा के गठबंधन पर लगी है। मुख्य विपक्षी पार्टी की रणनीति भी इसी पर टिकी है कि दोनों पार्टियों का गठबंधन होगा या नहीं। गठबंधन को लेकर शिअद ने बंदी सिखों, एमएसपी कानून जैसी शर्तों को आगे लाकर गठबंधन की राह को मुश्किल कर दिया है।

इससे कांग्रेस, भाजपा और शिअद की राजनीतिक गणित बिगड़ने लगी है। कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति को इसलिए शिथिल किया हुआ है ताकि वह यह देख सके की शिअद-भाजपा का गठबंधन हो रहा है या नहीं। क्योंकि अगर दोनों पार्टियों का गठबंधन होता है तो पंजाब की राजनीतिक तस्वीर और होगी और अगर नहीं तो कांग्रेस अपने चेहरों को भी बदलने की स्थिति में होगी।

शिअद कोर कमेटी ने राजनीति के सिद्धांतों का बिगाड़ा गणित

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा यह कहना कि गठबंधन के लिए अकाली दल के साथ बातचीत चल रही है, के बाद से ही यह तय माना जा रहा था कि दोनों पार्टियां गठबंधन को तैयार हैं, लेकिन शिअद कोर कमेटी ने राजनीति से ऊपर सिद्धांतों को रख कर सारी गणित को बिगाड़ दिया है।

इससे सबसे ज्यादा प्रभावित कांग्रेस नजर आ रही है। कांग्रेस की रणनीति है कि वह चुनाव में खुद को प्रबल प्रतिद्वंदी के रूप में पेश करे। कांग्रेस मान रही है कि अगर शिअद-भाजपा का गठबंधन होता है तो उसका मुकाबला गठबंधन के साथ होगा। अगर गठबंधन नहीं होता है तो उसका मुकाबला सत्तारूढ़ आप के साथ होगा। दोनों ही सूरत में उसे सधी हुई रणनीति तैयार करनी पडेगी।

वर्तमान में है कांग्रेस के छह सिटिंग सांसद

वर्तमान में कांग्रेस के 6 सिटिंग सांसद है। इसमें से अधिकांश के सर्वे रिपोर्ट पार्टी के अनुकूल नहीं है। इसके बावजूद कांग्रेस सिटिंग सांसद की टिकट काटने का जोखिम नहीं उठा सकती है। क्योंकि अभी उसके सामने स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है कि उसे किस पार्टी के साथ मुकाबला करना है।

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आप के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद से राजनीतिक रूप से बदलाव भी देखने को मिल रहा है। आप भले ही अपने पार्टी के नेताओं का आत्मविश्वास बना कर रखना चाहती हो लेकिन आशानुरूप रिस्पांस नहीं मिल पाया है।

एक दूसरे की ताकत भाजपा-शिअद

यह तय माना जा रहा है कि अगर भाजपा और शिअद अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरते हैं तो उनकी ताकत आधी रह जाएगी। क्योंकि शिअद की कमजोर कड़ी शहर है तो भाजपा की गांव। ऐसे में कांग्रेस ही एक मात्र ऐसी पार्टी रह जाती है जोकि शहर और गांव दोनों में अपना प्रभाव रखती है।

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वहीं, सत्ता में आने के बाद यह पहला मौका होगा जब आम आदमी पार्टी की लोक सभा में असली परीक्षा होगी। क्योंकि 2014 में आप ने भले ही 4 सीटों को जीत कर बंपर शुरूआत की लेकिन 2019 में उसे 3 सीटों का नुकसान हुआ।

2022 में आप ने इतनी सीट जीतकर दर्ज की जीत

2022 में आप ने विधानसभा में 92 सीट जीत कर सरकार बनाई लेकिन लोक सभा चुनाव में उसे चेहरे के अभाव में अपने पांच मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारना पड़ा। जबकि एक सीट पर कांग्रेस से टूट कर आए नेता को प्रत्याशी बनाना पड़ा। इसलिए सबकी नजर शिअद-भाजपा गठबंधन पर है। क्योंकि अभी तक किसी भी पार्टी ने इस बात से इंकार नहीं किया है कि वह गठबंधन नहीं कर रहे है।

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