पंजाब में SAD-BSP के रिश्तों में आई दरार, दोनों के बीच आया I.N.D.I.A; अकाली दल ने गठबधंन से साफ किया इनकार
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल व बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में दरार पड़ने लगी है। तीन कृषि कानूनों को लेकर शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के रिश्तों में आई खटास के बाद दो साल पहले विधानसभा चुनाव में गठबंधन हुआ था। दोनों दलों ने विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था जिसमें अकाली दल को तीन और बसपा को एक सीट मिली।
इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। आईएनडीआईए को लेकर उत्तर प्रदेश में बन रहे समीकरणों के बाद पंजाब में शिरोमणि अकाली दल व बहुजन समाज पार्टी गठबंधन में दरार पड़ने लगी है। तीन कृषि कानूनों को लेकर शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के रिश्तों में आई खटास के बाद दो साल पहले विधानसभा चुनाव में गठबंधन हुआ था। दोनों दलों ने विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था जिसमें अकाली दल को तीन और बसपा को एक सीट मिली।
भाजपा को भी गठबंधन टूटने का काफी नुकसान हुआ क्योंकि उसके मात्र दो विधायक ही जीत पाए। पार्टी अकाली दल के साथ गठबंधन में 23 सीटें लड़ती थी और 1997 से लेकर 2022 तक हुए चुनाव में पार्टी को केवल 2002 में ही इतनी कम सीटें मिलीं और आम तौर पर पार्टी एक दर्जन या इससे ज्यादा सीटें जीतती रही है।
दोनों में नहीं है कोई तालमेल
तीन कृषि कानूनों के रद होने के बाद से ही अकाली दल और भाजपा में फिर से गठबंधन करने की कोशिशें शुरू हो गईं। हालांकि यह अभी तक सिरे नहीं चढ़ पाई लेकिन पिछले दिनों जब लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा नीत एनडीए के खिलाफ विपक्षी पार्टियों का गठबंधन आईएनडीआईए के नाम से आगे बढ़ने लगा तो अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी जो इस समय पंजाब में गठबंधन में हैं पीछे हटती नजर आईं। दोनों पार्टियों में अब कोई तालमेल नहीं रह गया है।यह भी पढ़ें: NIA Raids: बब्बर खालसा और बिश्नोई गैंग के खिलाफ NIA का ताबड़तोड़ एक्शन, छह राज्यों में 32 जगहों पर की छापेमारी
दोनों पार्टियों के नेताओं की आपस में लोकसभा चुनाव को लेकर नहीं हुई बैठक
अकाली दल को भाजपा के साथ जाते देखकर बसपा के नेता अक्सर शिअद से अपनी स्थिति को स्पष्ट करने को कहते नजर आए। अब तो बसपा के प्रदेश प्रधान जसबीर सिंह गढ़ी ने भी साफ तौर पर कह दिया कि यह समझौता तो केवल थ्रैटिकल है, प्रेक्टिक्ल नहीं है। पिछले कई महीनों से दोनों पार्टियों के नेताओं की आपस में लोकसभा चुनाव और उनकी सीटों को लेकर कोई बैठक नहीं हुई।यही नहीं, चुनाव के चलते दोनों पार्टियों को मिलकर जो सड़कों पर उतरने का कार्यक्रम मतदाताओं को देना चाहिए था उसमें हम नाकाम रहे हैं। अकाली दल ऐसी पार्टी के पीछे भाग रहा है जो बंदी सिखों को छोड़ना नहीं चाहती है साथ ही उस पर कृषि कानूनों को लेकर चले आंदोलन के दौरान 700 किसानों की मौत का सवाल है। लोग इनसे पूछेंगे नहीं कि आपने फिर उसी पार्टी से समझौता कैसे कर लिया?
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