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Hola Mohalla 2024: आखिर क्यों खास है होला मोहल्ला? इतिहास और वीरता को देखने देश-विदेश से आते हैं लोग

Hola Mohalla 2024 इस होली में अगर आप किसी दूसरे कल्चर की होली को एंजॉय करना चाहते हैं तो आप होला मोहल्ला का आनंद ले सकते हैं। होला मोहल्ला सिख संप्रदाय के लिए काफी महत्व रखता है। इस कार्यक्रम में सिख समुदाय के लोग अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं। तो इस लेख में जानिए आखिर होला मोहल्ला क्या है और ये क्यों इतना महत्व रखता है।

By Jagran News Edited By: Deepak Saxena Updated: Sat, 23 Mar 2024 04:39 PM (IST)
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आखिर क्यों खास है होला मोहल्ला? इतिहास और वीरता को देखने देश-विदेश से आते हैं लोग।
डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। Hola Mohalla 2024: होला मोहल्ला का आयोजन हर साल की तरह इस बार भी मार्च में होने जा रहा है। इस मौके पर सिख संप्रदाय की सभ्यता और संस्कृति से रूबरू हो सकते हैं। इसके साथ ही आप पंजाबी जायके का आनंद भी ले सकते हैं। होला मोहल्ला सिखों के लिए बेहद खास होता है, इस दिन वो अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं। साथ ही इस आयोजन को देखने के लिए लोग देश- विदेश से शिरकत करत हैं।

क्यों मनाया जाता है होला मोहल्ला?

होला मोहल्ला फेस्टिवल की शुरुआत सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने की थी। तब से लेकर आज तक इस त्योहार को हर साल मनाया जाता है। इस मौके पर झांकियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही नगर कीर्तन की शुरुआत होती है।

कब होगा होला मोहल्ला का आयोजन?

होला मोहल्ला को होला के नाम से भी जाना जाता है। इस बार त्योहार का आयोजन 25 से 27 मार्च तक किया जाएगा। तीन दिवसीय इस कार्यक्रम की शुरुआत पंजाब के रूपनगर जिले के आनंदपुर में तख्त श्री केशगढ़ साहिब से की जाएगी।

होला शब्द का अर्थ

होला शब्द होली की सकारात्मकता का प्रतीक था। होली के त्योहार में रंगों के साथ व्यापत बुराइयों को खत्म करने के लिए जैसे पानी डालना, कीचड़ फेंकना जैसी चीजों को बंद किया गया। इसके साथ ही इन दिन पारस्परिक बंधुत्व और प्रेम की भावना को बढ़ाने के साथ ही वीरता का समागम किया गया। इस दिन सिख समुदाय के लोग अपनी वीरता और कौशल का प्रदर्शन करते हैं।

कार्यक्रम का उद्देश्य

17 वीं शताब्दी में शुरू किए इस कार्यक्रम में सिखों द्वारा नकली युद्धों और अभ्यासों का प्रदर्शन करना, इस दौरान सिख अपने सैन्य कौशल का प्रदर्शन करते हैं। इसके साथ ही इस कार्यक्रम का उद्देश्य सिख समुदाय के बीच एकता और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देना है।

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गुरु गोबिंद सिंह ने की थी शुरुआत

गुरुद्वारों में सुबह की प्रार्थना के साथ ही सिख नगर में कीर्तन जुलूस का आयोजन किया जाता है। इसके बाद दूसरे दिन मार्शल आर्ट का प्रदर्शन किया जाता है। इस दौरान युद्ध कौशल और तलवार की लड़ाई का प्रदर्शन किया जाता है। साथ ही घुड़सवारी, तीरंदाजी और कुश्ती का भी आयोजन किया जाता है। तीन दिनों तक चलने वाले इस उत्सव के दूसरे दिन नकली युद्ध का आयोजन किया जाता है। जिसमें सिखों को दो दलों में बांट दिया जाता था।

नकली युद्ध का दिखाया जाता जौहर

इसमें बिना किसी को शारीरिक क्षति पहुंचाए युद्ध के जौहर दिखाए जाते हैं। इसके लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने खास तौर पर आनंदपुर साहिब में किला बनवाया था। किले में बैठकर वे स्वयं सिख दलों के युद्ध को देखते थे और योद्धाओं को पुरस्कृत करते थे। इस आयोजन के अंतिम दिन में सिख समुदाय के लोग महान सिख योद्धाओं की वीरता के किस्सों को याद करके उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

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