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इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह का बेटा बना सांसद, पंजाब की इस सीट से निर्दलीय लड़ा था चुनाव

फरीदकोट संसदीय सीट से निर्दलीय उम्मीदवार सरबजीत सिंह खालसा ने जीत हासिल की है। सरबजीत को कुल 298062 वोट मिले हैं। वहीं दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के करमजीत सिंह अनमोल रहे। सरबजीत इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह के बेटे हैं। वहीं दूसरी ओर खडूर साहिब सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अमृतपाल सिंह ने जीत हासिल की है।

By Prince Sharma Edited By: Prince Sharma Updated: Wed, 05 Jun 2024 04:26 PM (IST)
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इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह के बेटा बना सांसद, पंजाब की इस सीट से जीता निर्दलीय चुनाव

डिजिटल डेस्क, फरीदकोट। पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में दो पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। फरीदकोट से जहां सरबजीत सिंह खालसा ने चुनाव जीता। वहीं दूसरी ओर खडूर साहिब सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) ने भी चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हुए जीत अख्तियार की।

फरीदकोट से सरबजीत सिंह खालसा को 298062 वोट मिले हैं। वहीं दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के करमजीत सिंह अनमोल रहे। जिन्होंने 228009 वोट हासिल किए। वहीं तीसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी अमरजीत कौर साहोके रहीं। जिन्होंने 160357 वोट हासिल किए हैं। अनमोल और सरबजीत के बीच जीत का अंतर 70053 मतों से है।

बेअंत सिंह का बेटा है सरबजीत सिंह खालसा

सरबजीत सिंह खालसा (Sarabjeet Singh Khalsa) बेअंत सिंह के बेटे हैं। बेअंत सिंह और सतवंत सिंह इंदिरा गांधी की अंगरक्षक थे। सन् 1984 में इन दोनों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा की गोलियों से कई राउंड फायर कर हत्या कर दी थी।

उस दौरान बेअंत सिंह को मौके पर ही अन्य सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया था। जबकि सतवंत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया था। सन् 1989 में सतवंत और इस हत्या के मास्टरमाइंड केहर सिंह को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी की सजा दी गई।

आखिर क्यों की गई इंदिरा गांधी की हत्या

खालिस्तानी जरनैल सिंह भिंडरावाले के खिलाफ सन् 1984 में अमृतसर में हरमंदिर साहिब पर भारत सरकार द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) चलाया गया था।

यह ऑपरेशन इंदिरा सरकार के नेतृत्व में चलाया गया था। इस ऑपरेशन में सिखों के कई धार्मिक ग्रंथ नष्ट हो गए थे। वहीं सिख पंथ के सबसे पूजनीय स्थल अकाल तख्त साहिब को भी भारी नुकसान पहुंचा था। जिससे सिखों की भावनाएं आहत हुई थीं।

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