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यात्रियों को गर्मी से बचाने के लिए कभी इस ट्रेन में लगाई जाती थीं बर्फ की सिल्लियां, आज 91 वर्ष हुए पूरे

फ्रंटियर मेल 91 साल की हो गई है। इसका नाम बदल गया लेकिन शान कायम है। अब गोल्‍डन टेंपल मेल के नाम से चल रही यह ट्रेन देश की पहली एसी बोगी वाली रेलगाड़ी थी। इसकी बेहद रोचक कहानी है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Sun, 01 Sep 2019 11:48 PM (IST)
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यात्रियों को गर्मी से बचाने के लिए कभी इस ट्रेन में लगाई जाती थीं बर्फ की सिल्लियां, आज 91 वर्ष हुए पूरे

फिरोजपुर, [प्रदीप कुमार सिंह]। आपको शायद ही पता हो कि भारत में एसी बोगी वाली ट्रेन आज के दिन ही 91 साल पहले दौड़ी थी। यह ट्रेन आज भी पटरियों पर दौड़ रही है और लोगों को उनकी मंजिलों तक पहुंचा रही है। हालांकि अब इसका नाम बदल गया है लेकिन पुरानी शान कायम है। देश की एसी (AC) बाेगी वाली यह थी ट्रेन फ्रंटियर मेल (Frontier mail train)। इस ट्रेन ने अपना सफर 1 सितंबर 1928  को शुरू किया था और इसमें राष्‍ट्रपिता महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी यात्राएं की थीं। ट्रेन में अनोखी एसी बोगी होती थी। बोगी को ठंडा रखने के लिए इसमें बर्फ की सिल्लियां रखी जाती थीं। इस ट्रेन की कहानी बेहद रोचक है।

महात्‍मा गांधी और नेताजी भी इस ट्रेन में कर चु‍के हैं सफर
फ्रंटियर मेल मुंबई से अफगान बार्डर पेशावर तक की लंबी दूरी तय करती थी। यह ट्रेन स्‍वंतत्रता आंदोलन की गवाह रही है। अंग्रेज अफसरों के अलावा यह आजादी के दीवानों काे भी उनकी मंजिल तक पहुंचाती थी। इस ट्रेन की सबसे बड़ी खासियत इसकी एसी (AC) बोगी होती थी। इस बोगी को शीतल बनाए रखने के लिए बर्फ की सिल्लियों का प्रयोग किया जाता था। बर्फ की सिल्लियां पिघलने पर विभिन्‍न स्टेशनों पर उनका पानी निकलकर उनकी जगह बर्फ की नई सिल्लियां लगाई जाती थीं।

एसी बोगी को ठंडा रखने के लिए बर्फ की सिल्लियां रखी जाती थीं
रेलगाड़ी की इस बोगी के नीचे एक बाक्स लगाया जाता था और इसमें इसमें लगा पंखा कोच के सभी कूपों में ठंडक पहुंचता था। 1934 में ट्रेनों में एसी लगाए जाने का काम शुरू हुआ और इस इस मामले में फ्रंटियर मेल अव्‍वल रही। भारत की पहली एसी डिब्बों वाली रेलगाड़ी होने का गौरव इसे मिला।  

1 सितंबर 1928 को हुई थी फ्रंटियर मेल की शुरूआत
फ्रंटियर मेल ने अपना सफर 1 सितंबर 1928 को मुंबई के बल्लार्ड पियर मोल रेलवे स्टेशन से अफगान बार्डर पेशावर तक शुरू की थी। 1 सितंबर को इस रेलगाड़ी के 91 साल पूरे हो जाएंगे।

2335 किलोमीटर की यात्रा 72 घंटों में करती थी पूरी
यह ट्रेन मुंबई से पेशावर तक 2335 किलोमीटर लंबी यात्रा को 72 घंटों में पूरा करती थी। इसकी सबसे बड़ी खूबी थी कि यह कभी लेट नहीं चलती थी। रेल अधिकारी एसपी सिंह भाटिया ने बताया कि ब्रिटिश शासन के समय एक बार यह ट्रेन 15 मिनट लेट हो गई थी। इस पर उच्च अधिकारियों के नेतृत्व में जांच बैठा दी गई थी। 1930  में द टाइम्स समाचार पत्र ने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेनों में फ्रंटियर मेल को सबसे प्रमुख व मशहूर ट्रेन बताया। आजादी के बाद यह ट्रेन अमृतसर और मुंबई के बीच 1896 किलोमीटर की दूरी तय कर रही है। यह दूरी तय करने में इसे करीब 32 घंटे लगते हैं।

इस कारण पड़ा फ्रंटियर मेल नाम
मुंबई से पेशावर तक इस रेलगाड़ी के चलने के कारण ही इसका नाम फ्रंटियर मेल पड़ा था, शुरूआती दिनों में इस रेलगाड़ी में अधिकाशंत: ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकारी ही यात्रा करते थे, लंदन से भारत आने वाले अंग्रेज अधिकारियों के जहाज के साथ ही इस ट्रेन का टिकट भी जुड़ा होता था, यहीं नहीं उनकी सुविधा के लिए इस रेलगाड़ी को समुद्र के किनारे बने बल्लार्ड पियर मोल रेलवे स्टेशन से चलाया जाता था, ताकि वह जहाज से उतरने के बाद इसमें बैठ सके। स्ट्रीम इंजन व लकड़ियों व लोहे के बने कोचों से शुरु हुआ इस रेलगाड़ी का सफर अब बिजली वाले इंजन व आधुनिकतम कोचों तक पहुंच गया है। 

1996 में बदल गया नाम, अब गोल्डेन टेंपल मेल नाम से चलती है
फ्रंटियर मेल का नाम 1996 में बदलकर गोल्डन टेंपल मेल (स्वर्ण मंदिर मेल) कर दिया गया। आजादी से पहले यह ट्रेन बंबई, बड़ौदा, रतलाम, मथुरा, दिल्ली, अमृतसर, लाहौर, रावलपिंड़ी से होते हुए पेशावर तक जाती थी। इस ट्र्रेन के मुंबई पहुंचने से पहले स्टेशन की साफ-सफाई के साथ ही विशेष लाइटों से सजाया जाता था। लाइटों को देखकर दूर ही लोग समझ जाते थे, कि फ्रंटियर मेल आने वाली है। यही नहीं इस गाड़ी के दिल्ली पहुंचने पर मुंबई के अधिकारियों को टेलीग्राम भेजा जाता था, कि रेलगाड़ी सुरक्षित पहुंच गई है।


फिरोजपुर रेलवे मंडल के डीएमओ एसपी सिंह भाटिया ने बताया कि फ्रंटियर मेल तत्कालीन बांबे, बड़ोदरा सेंट्रल इंडिया रेलवे की सोच का परिणाम थी। इस ट्रेन को 1 सितंबर 1928 को मुंबई के बल्लार्ड पियर मोल रेलवे स्टेशन से पेशावर के बीच शुरू किया गया था। बेल्लार्ड स्टेशन को बंद किया गया  तो इसका आरंभिक स्टेशन कोलाबा कर दिया गया। 

न्यूज से अपडेट रहते थे यात्री-
उस समय भले ही इंटरनेट का जमाना नहीं था, लेकिन इसमें सफर कर रहे अंग्रेज अधिकारियों को ताजी खबरों के बारे में अपडेट किया जाता था। इसमें एक मशहूर समाचार एजेंसी के साथ टेलीग्राफिक न्‍यूज का विशेष प्रबंध होता था। रेल अधिकारियों के अनुसार समाचार एजेंसी के कर्मी इस रेलगाड़ी के माध्यम से मुंबई से लेकर पेशावर तक सभी बड़े रेलवे स्टेशनों पर समाचारों को संग्रह भी करते थे। ट्रेन में अंग्रेज अधिकारियों के लिए रेडियो की व्यवस्था थी।

डीआरएम बोले- दो पुरानी ट्रेनें मंडल की होना गर्व की बात
फिरोजपुर मंडल रेलवे के डीआरएम राजेश अग्रवाल ने कहा कि यह गर्व की बात है, कि फिरोजपुर-मंबई के मध्य चलने वाली पंजाब मेल 107 साल पुरानी व अमृतसर-मुंबई के मध्य चलने वाली फ्रंटियर मेल (गोल्डेन टेंपल मेल) 91 साल पुरानी ट्रेन है। दोनों आधुनिकता के साथ लगातार बेहतर तरीके से अपनी सेवाएं निरंतर यात्रियों को उपलब्ध करवा रही हैं।

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