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विभाजन का दर्द: 77 साल बाद भी बंटवारे को याद नम हो जाती हैं जगतार सिंह की आंखे, लाहौर से आए थे ग्वालियर

Independence Day 2024 भारत- पाकिस्तान के बंटवारे के 77 साल बीत चुके है लेकिन बंटवारे का दर्द आज भी लोगों की जेहन में ताजा है। साल 1923 में पाकिस्तान के लाहौर में जन्मे जगतार सिंह की आंखों में विभाजन की विभिषिका याद कर आंसू आ गए। जगतार सिंह ने कहा कि वो मंजर याद करके आज भी रूह कांप उठती है।

By SATYANARAYAN OJHA Edited By: Rajiv Mishra Updated: Wed, 14 Aug 2024 09:57 AM (IST)
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लाहौर से आए जगतार सिंह ने सुनाई बंटवारे की कहानी

डॉ. तरूण जैन, फिरोजपुर। पाकिस्तान के लाहौर में 28 फरवरी 1923 को जन्मे जगतार सिंह जब विभाजन का दर्द बयां करते है कि उनकी आंखों में आंसू आ जाते है।

जगतार बताते है कि जब देश आजाद हुआ तो समझों अनेकों भाईयों के रिश्ते आपस में टूट गए थे और पूरा नरसंहार उनकी आंखों के सामने हुआ था। आजादी के दृश्य को याद कर उनकी रूह आज भी कांप उठती है, क्योंकि जो दर्द उस समय लोगों को मिला था, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

उन्होंने कहा कि बेशक देश अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हुआ हो, लेकिन जो यादें वह पाकिस्तान की गलियों में छोड़कर आए हैं, उन यादों में फिर से गुम होना चाहते हैं।

जगतार सिंह ने पाकिस्तान में बिताए वक्त को याद किया

जगतार सिंह बताते हैं कि अखंड भारत में हिंदू, सिख और मुसलमानों में काफी प्यार था। एक ही गली-मोहल्ले और बड़ी हवेलियों में सभी आपसी प्यार से रहते थे और बिना किसी धर्म के भेद के सभी बच्चे आपस में खेलते थे। बच्चों की शादियों में सभी आते-जाते थे और सुख-दु:ख के साथी थे।

पाकिस्तान में बिताए लम्हों को याद करते हुए जगतार बताते है कि हिंदू परिवार के घर में शादी होती थी तो सभी मुसलमान परिवार सहित कार्यक्रम में शामिल होते थे, लेकिन जब मुसलमान के घर में कोई निकाह होता तो वह हिंदुओं के घर में सूखा राशन भेज देते थे।

विभाजन का समाचार मिलते ही आत्मा कांप उठी- जगतार सिंह

उन्होंने बताया कि 13 अगस्त की रात जैसे ही रेडियों पर विभाजन का समाचार आया तो समझो सभी की आत्मा कांप उठी। भगदड़ मचने लगी और नरसंहार हुआ। हर आदमी अपना सामान समेटने में जुटा था। पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं व सिखों में भारत आने की होड़ लगी।

ट्रेनों की छतों तक पर लोग बैठकर जाने लगे, समझो एक किस्म से भूचाल ही आया लगता था। किसी को अपने गंत्तव्य का नहीं पता था। कई रिश्ते बिछुड़ गए और कईयों की संपत्ति पाक में रह गई।

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पहले ग्वालियर फिर फिरोजपुर में बस गया परिवार

जगतार सिंह बताते हैं कि शुरूआती दौर से ही उसका परिवार गुरसिख रहा है और नशों व मांस से दूर रहा है। जब वह पाकिस्तान में थे तो उनकी लाहौर से कसूर और कसूर से फिरोजपुर के मुल्तानी गेट तक दो बसे चलती थी, जिसे लारी भी कहते है। शुरूआती दौर से ही अभिभावकों ने मेहनत करने की प्रेरणा दी थी।

1947 में देश आजाद हुआ तो वह मध्यप्रदेश के ग्वालियर में बस गए और उन्हें सरकार द्वारा वहां पर जमीन अलाट की गई, लेकिन वहां भूमि ठीक ना होने के कारण मोगा आ गए और वहां भूमि सेम प्रभावित मिली तो उसके बाद फिरोजपुर आकर बस गए।

जगतार सिंह की शादी जोगिंदर कौर के साथ हुई और घर में एक बेटे परमजीत सिंह और दो बेटियों ने जन्म लिया। जगतार बताते है कि उनका ताया इकवाक सिंह जोकि नंबरदार थे और वह उनके साथ काम देखता था।

उसके बाद प्रशासन द्वारा 2001 में उसे नंबरदार बना दिया गया। वह कैनाल कालोनी सहित गांव पीरांवाला का नंबरदार है और लोगो की मदद के लिए हमेशा आगे रहते है।

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