बेसहारा लड़कियों की ‘बाबुल’ बनीं थर्ड जेंडर महंत प्रवीन, कई बेटियों का बसा चुकी हैं घर; देती हैं मां का प्यार
दीनानगर की थर्ड जेंडर महंत प्रवीन (Mahanth Praveen) बेसहारा लड़कियों के लिए एक मसीहा हैं । वह अब तक 150 से अधिक गरीब लड़कियों की शादी करवा चुकी हैं। उनका मानना है कि शिक्षा और आरक्षण से ही किन्नर समाज का उत्थान संभव है। उनके इस नेक काम में उनकी एक दर्जन किन्नर शिष्याएँ भी उनका साथ देती हैं। प्रवीन तीन बार पार्षद भी रह चुकी हैं।
शंकर श्रेष्ठ, दीनानगर (गुरदासपुर)। दीनानगर की थर्ड जेंडर महंत प्रवीन बेसहारा लड़कियों की ‘बाबुल’ बनकर सामने आई हैं। वह अब तक 150 के करीब गरीब लड़कियों की शादी करवा चुकी हैं। उनका मानना है कि शिक्षा व आरक्षण से किन्नर समाज के उत्थान का ताला खुल सकता है।
उनके दरवाजे पर अगर कोई गरीब दंपती बेटी की शादी के लिए मदद मांगने भी पहुंचता है तो वह हरसंभव मदद को तत्पर हो उठती हैं। कई बार अमीर परिवारों से गहने भी मिलते हैं।
इनको वह सहेजकर रखती हैं और गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में बतौर उपहार भेंट कर देती हैं। इस नेक काम में उनकी एक दर्जन किन्नर शिष्याओं का भी सहयोग मिलता है।
प्रवीन को बचपन से ही था समाज सेवा का शौक
सैकड़ों जरूरतमंदों की शादियों में भी वह मदद कर चुकी हैं। 68 वर्षीय प्रवीन का कहना है कि किन्नर समाज का सुधार केवल शिक्षा के माध्यम से ही हो सकता है।
1978 में दीनानगर के किन्नर समाज के वृद्ध मुखी की सेवा के लिए एक सेवादार की जरूरत थी, जिसकी सेवा के लिए उन्हें दीनानगर भेजा गया और उसके बाद वह यहीं पर बस गई।प्रवीन ने बताया कि बचपन से ही उन्हें समाज सेवा करने का शौक था। वह अब तक दीनानगर क्षेत्र की 150 के करीब लड़कियों की शादी का पूरा खर्च उठाते हुए उनकी विदाई करवाई है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।जिला प्रशासन से सम्मानित हो चुकी हैं प्रवीन
अनाथ बच्चों की सेवा, वृद्धों की सेवा, जरूरतमंदों को कपड़े एवं खाना बांटना, अनाथालय के बच्चों की पढ़ाई के लिए खर्च देना, ये चंद उदाहरण हैं, जिन्हें परवीन पिछले कई सालों से कर रही हैं। मोहल्ले में झगड़ा हो या घरेलू कलह, सभी मसलों को सुलझाने के लिए वह हाजिर रहती हैं। वह लोगों के घरों में बधाई नहीं मांगने जाती हैं। वह तीन बार पार्षद बनीं है व नगर कौंसिल की उपप्रधान भी रह चुकी हैं। सामाजिक कार्यों को देख दो बार वह जिला प्रशासन से सम्मानित हो चुकी हैं।यह भी पढ़ें- श्री गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान से शिअद प्रधान पद से हटने तक, सुखबीर बादल के इस्तीफे के पीछे की पूरी कहानीदिल्ली में पैदा हुईं, दीनानगर को बनाया कर्मस्थली
प्रवीन दिल्ली के एक संपन्न परिवार में पैदा हुईं और 18 साल की आयु तक अपने परिवार के साथ ही रहीं। जब उन्होंने 12वीं कक्षा पास की तो तब तक उनके साथ पढ़ने वाली लड़कियां यह नहीं जानती थीं कि वो थर्ड जेंडर हैं, लेकिन जब उन्होंने बीए प्रथम वर्ष में दाखिला लिया था तो उनकी एक सहपाठी को इस बारे में पता चल पाया।