महाराणा ने हल्दी घाटी युद्ध में लिख दी वीरता की गाथा
महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म नौ मई 1540 में हुआ था। वह मेवाड़ के शासक थे और अजेय माने वाले मुगलों से भिड़ गए थे। उनकी जयंती पर पूर्व चेयरमैन मीडियम इंडस्ट्री बोर्ड व उत्तर भारत राजपूत सभा के अध्यक्ष ठाकुर रघुनाथ सिंह राणा ने भवनौर में चर्चा करते हुए कहा कि प्रताप के नाम से जाने गए महाराणा उदय सिंह व जयावंती के सुपुत्र थे।
संवाद सहयोगी, दातारपुर : महान योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म नौ मई, 1540 में हुआ था। वह मेवाड़ के शासक थे और अजेय माने वाले मुगलों से भिड़ गए थे। उनकी जयंती पर पूर्व चेयरमैन मीडियम इंडस्ट्री बोर्ड व उत्तर भारत राजपूत सभा के अध्यक्ष ठाकुर रघुनाथ सिंह राणा ने भवनौर में चर्चा करते हुए कहा कि प्रताप के नाम से जाने गए महाराणा उदय सिंह व जयावंती के सुपुत्र थे, जिन्हें उदयपुर का संस्थापक माना जाता है। दुश्मन उनकी सैन्य शक्ति और पराक्रम का लोहा मानते थे। उनके संघर्षों की गाथा आज भी गाई जाती है। महाराणा सात फीट पांच इंच लंबे थे, 80 किलो का भाला, 208 किलो की दो तलवारें व 72 किलो का कवच पहनते थे। मुगलों से संघर्ष के पहले प्रताप को घरेलू समस्याओं से भी जूझना पड़ा। उनके राज गद्दी पर आसीन होने से पहले ही तमाम राजपूत मुगलों के समक्ष घुटने टेक चुके थे।
अकबर ने महाराणा से सीधे उलझने के बजाय छह संधि वार्ता के प्रस्ताव भेजे थे। पांचवीं संधि के बाद महाराणा ने अपने पुत्र अमर सिंह को अकबर के दरबार में भेजा, तो अकबर ने इसे नाफरमानी मानते हुए महाराणा पर हमला कर दिया। महराणा प्रताप के युद्ध कौशल के प्रतीक 1576 के हल्दी घाटी युद्ध को हमेशा याद किया जाता है। उनके पास मुगलों से आधी संख्या में भी सैनिक नहीं थे, अच्छे हथियार भी नहीं थे, परंतु उन्होंने पूरी वीरता के साथ मुगलों के छक्के छुड़ा दिए। यह जंग 18 जून को चार घंटे तक चली। मुगलों की हालत इसमें खासी पतली हो गई, परंतु उन्हें प्रताप के भाई शक्ति सिंह के रूप में एक भेदिया मिल गया जिसने मुगलों को प्रताप की सारी रणनीति बता दी। इस युद्ध में महाराणा का घोड़ा चेतक हाथी से टकराया और घायल हो गया। प्रताप भी घायल हो चुके थे। चेतक ने बुरी तरह जख्मी होते हुए भी एतिहासिक छलांग लगाईं और एक ही प्रयास में हल्दी घाटी के नाले को पार कर लिया पर वह बच नहीं सका। इसके बाद मेवाड़, चितौड़ व अन्य राजपूत रियासतें मुगलों के अधीन हो गईं। सारे राजपूत राजाओं ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली और महाराणा प्रताप दर-बदर भटकने लगे, परंतु उन्होंने संघर्ष नहीं छोड़ा और फिर भामाशाह की सहायता से तीन साल में 40 हजार सैनिकों की सेना खड़ी कर ली और मुगलों से साम्राज्य फिर से छीन लिया। इस अवसर पर सतपाल राणा सचिव, मास्टर मोहन लाल, सुखदेव सिंह, बक्शी राम, जसबीर राणा, अनिल राणा, विनोद, रणबीर और काजल सिंह उपस्थित थे।