By JagranEdited By: Updated: Tue, 01 Dec 2020 10:31 PM (IST)
संवाद सहयोगी, होशियारपुर : मिठाई के रूप में परोसे जाने वाला गुड़ भी महंगाई के दंश से अछूता नहीं रहा है। सर्दी के मौसम में गरीबों के उपयोग में आने वाले गुड़ का भाव इस समय चीनी से भी आगे निकल गया है। बाजार में हल्की घटिया चीनी का भाव 32 रुपये किलो है, जबकि गुड़ का भाव 55 से 60 रुपये किलो चल रहा है। सर्दी के मौसम में गुड़ का उपयोग अधिक होता है। ग्रामीण लोग मेहमानों की खातिरदारी करते समय उनकी थाली में गुड़ को ही मिठाई के रूप में परोसते हैं। मगर, गुड़ के उत्पादन में आ रही कमी के कारण गुड़ के भाव लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इन दिनों बाजार में देसी गुड़ की आवक न के बराबर है। मगर, अफसोसजनक पहलू है कि चीनी मिलाकर घटिया गुड़ तैयार किया जा रहा है, जो सेहत के लिए हानिकारक है। गुड़ में हो रहा चीनी व केमिकल्स का इस्तेमाल
होशियारपुर के नजदीकी एरिया में प्रतिदिन लगभग 20 टन गुड़ की खपत हो रही है। वहीं कुछ लोगों ने सड़ी-गली चीनी को गलाकर चमकीला गुड़ बनाने का तरीका इजाद कर लिया है। मुख्य मार्गो के इर्द-गिर्द के कई स्थानों में नकली गुड़ बनाने का कारोबार चल रहा है। इस गुड़ में गुड़ जैसा स्वाद तो है ही नहीं, साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदायक है। इसे बनाने के लिए चीनी के साथ-साथ केमिकल्स का भी इस्तेमाल हो रहा है। गुड़ का भार बढ़ाने के लिए इसमें केमिकल युक्त चर्बी डाली जा रही है, जो देखने में देसी घी जैसी लगती है। यह कारीगर नजरों के सामने ही गुड़ में देसी घी लगने वाली चर्बी मिला देते हैं और कहते हैं देसी घी मिला रहे हैं। हरियाना व बुल्लोवाल के नाम पर बेच रहे नकली गुड़
जिले भर में मशहूर रहा कस्बा हरियाना व बुल्लोवाल का देसी गुड़ अब देखने को भी नहीं मिल रहा है। इस क्षेत्र में गन्ने का उत्पादन भी अब दिनोंदिन कम होता जा रहा है। बाजार में कस्बा हरियाना और बुल्लोवाल के देसी गुड़ के नाम पर नकली गुड़ बेचा जा रहा है। पानी की कमी के कारण किसान गन्ने की खेती से मुंह फेर रहे हैं। सर्दियों में पशुओं को भी स्वास्थ्य की दृष्टि से गुड़ खिलाया जाता है, लेकिन महंगाई के कारण अब इस पर रोक सी लगने लगी है। सही गुड़ की पहचान माहिरों के मुताबिक एक गुड़ केमिकल द्वारा तैयार किया जाता है। इस गुड़ की चाय हमेशा फट जाएगी। दूसरे प्रकार के गुड़ में केमिकल नहीं मिलाए जाते और ऐसा गुड़ दिखने में काला नजर आता है। इसके विपरीत अगर केमिकल वाले गुड़ की बात की जाए, तो वह दिखने में एकदम पीला या सफेद होता है। इस गुड़ की चाय हमेशा फटेगी। मगर, बिना केमिकल वाले गुड़ की चाय कभी भी नहीं फटेगी। बेलनों पर गन्ना बेचना किसानों की मजबूरी
बेलनों पर गुड़ तैयार होकर बाजार जा रहा है। किसान अपना गन्ना बेलनों पर बेच रहे हैं। जिन किसानों को पैसे की जरूरत है वह बेलनों पर गन्ना बेच रहे हैं। बेलनों पर 180 से 200 रुपये में गन्ना बिक रहा है। चीनी मिलें नवंबर माह के प्रथम पखवाड़े में ही चालू हो गई थीं। ऐसे में जरूरतमंद किसानों को सस्ता गन्ना बेचना मजबूरी भी था। किसान गगनदीप, राजबहादुर व रमाकांत ने बताया कि गेहूं की बुआई करनी थी। खाद बीज के प्रबंध के लिए पैसों की आवश्यकता थी। ऐसे में गन्ना बेचना ही मजबूरी बन जाता है। उन्होंने कहा कि अगर किसान कार्ड से पैसा मिल जाता, तो गन्ना न काटते। साफ-सफाई का नहीं रखा जाता ध्यान इन गुड़ बनाने वाली बेलनों पर सफाई का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा जाता। गन्ने की धुलाई नहीं की जाती। रख रखाव का इंतजाम बहुत ही घटिया स्तर का है। बेलनों की होगी चेकिग : डीएचओ
जिला स्वास्थ्य अधिकारी डा. सुरेंद्र सिंह ने कहा कि वैसे तो बेलनों की चेकिग की जाती है और विभाग की जानकारी में भी है कि इनमें से ज्यादातर बेलनों पर मिलावट युक्त गुड़ बेचा जा रहा है। उन्होंने माना कि ज्यादातर बेलनों के पास लाइसेंस भी नहीं हैं। मगर, सीजन को देखते हुए और ज्यादा चेकिग की जाएगी। अगर कहीं पर कोई गड़बड़ी मिली तो ठोस कार्रवाई होगी।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।