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975 पन्नों में दर्ज पवित्र वाणी, 1851 शबद व श्लोक... बैसाखी पर किला करतारपुर में होंगे 'आदि ग्रंथ' के दर्शन

करतारपुर (Kartarpur Sahib) में बैसाखी (Baisakhi 2024) पर प्रथम हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब (Guru Granth Sahib Ji) जी के दर्शन होंगे। देश-विदेश से सैकड़ों श्रद्धालु बैसाखी के मौके पर यहां पहुंचेंगे। हर बैसाखी वाले दिन किला कोठी करतारपुर में श्रद्धालुओं के दर्शनों के लिए रखा जाता है। इस बार श्रद्धालु यहां 10 बजे से 5 बजे तक दर्शन कर सकेंगे।

By Gurpreet Cheema Edited By: Gurpreet Cheema Updated: Fri, 12 Apr 2024 05:15 PM (IST)
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बैसाखी पर किला करतारपुर में होंगे 'आदि ग्रंथ' के दर्शन

दीपक कुमार, करतारपुर (जालंधर)। गुरुओं की सबसे पवित्र नगरी करतारपुर... इसे श्री गुरु अर्जन देव जी ने बसाया था और दशम गुरु गोविंद सिंह जी के ननिहाल होने का गौरव प्राप्त है। श्री गुरु तेग बहादुर जी की शादी भी करतारपुर की ही माता गुजरी जी से हुई थी। करतारपुर साहिब पाकिस्तान के नारोबाल जिले में स्थित है। भारत बॉर्डर से ये सिर्फ तीन किलोमीटर की ही दूरी पर है। लाहौर से इसकी 120 किमी दूर है।

13 अप्रैल यानी की बैसाखी वाले दिन सैकड़ों श्रद्धालु देश-विदेश से यहां आएंगे और गुरुद्वारा साहिब के दर्शन कर धन्य होंगे। इस बार खास बात ये है कि श्रद्धालु इस मौके पर किला कोठी करतारपुर में विराजमान प्रथम हस्तलिखित श्री गुरु ग्रंथ साहिब जिसे आदि ग्रंथ भी कहा जाता है, के दर्शन कर सकेंगे। हस्तलिखित गुरु ग्रंथ साहिब को श्री गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास जी से लिखवाया था। इसका संकलन भी गुरु जी की देखरेख में हुआ। यह ग्रंथ आदि ग्रंथ के नाम से जाना जाता था।

यह आदि ग्रंथ अब किला करतारपुर में बाबा कर्मजीत सिंह सोढी के पास सुरक्षित रखा गया है। इस किला कोठी में गुरु महाराज जी की सुंदर पालकी, पवित्र तलवार, सेली, टोपी, दस्तार, पवित्र चोला, सोटी, तीर सुरक्षित है और संगत इनको भी दर्शन करती है। इतिहासकार मैकाल्फ के अनुसार, मुगल बादशाह जहांगीर ने पांचवें सिख गुरु श्री अर्जुन देव जी के पिता चौथे गुरु रामदास जी को जागीर प्रदान की थी।

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श्री गुरु अर्जुन देव ने रखी थी नींव

यह बात 1851 के बंदोबस्त रिकॉर्ड में भी दर्ज है। इस नगर की नींव श्री गुरु अर्जुन देव जी ने बाद में रखी। जब अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण कर करतारपुर को अग्नि भेंट कर दिया तो सोढी वंश के तत्कालीन वंशज बावा बड़भाग सिंह ने अपनी शरणस्थली पहाड़ों में बना ली। अग्निकांड में जितनी भी ऐतिहासिक पुस्तकें व कागजात थे वह जलकर राख हो गए, लेकिन आदि ग्रंथ को आग छू तक नहीं सकी थी। शांति स्थापित होने के बाद बाबा बड़भाग सिंह जी वापस करतारपुर आ गए।

साल में केवल एक ही बार होते हैं दर्शन

करतारपुर किला कोठी में रखा गए आदि ग्रंथ को बैसाखी पर 13 अप्रैल को देश- विदेश से आएगी संगत ग्रंथ सिख इतिहास के प्रथम हस्तलिखित ग्रंथ के दर्शन करेंगे। पहले लोग इस पावन ग्रंथ को गुरदास जी की बीड़ के नाम से जानते थे। इसमें 1851 शबद व श्लोक शामिल है। इस आदि ग्रंथ के 975 पन्ने हैं, जिन्हें बचाने के लिए लेमिनेट करवाया गया। यह आदि ग्रंथ करतारपुर सोढी वंश की धरोहर है। हर बैसाखी वाले दिन किले में 10 बजे से 5 बजे तक श्रद्धालुओं के दर्शनों के लिए रखा जाता है।