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Afghanistan: गुरुद्वारे में शरण लिए सिखों को नहीं तालिबान पर भरोसा, कहा- कनाडा या अमेरिका में रहेंगे सुरक्षित

अफगानिस्तान के छह गुरुद्वारों में से केवल एक गुरुद्वारा साहिब खुला हुआ है। यहां पर भी तालिबान के लड़ाके सोमवार को पहुंच गए। उन्होंने यहां शरण लिए सिखों को आश्वासन दिया कि उन्हें जानी तौर पर कोई खतरा नहीं है। सिखों को उनके वादे पर बिल्कुल भरोसा नहीं है।

By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Wed, 18 Aug 2021 04:35 PM (IST)
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काबुल में फंसे हिंदू सिखों को तालिबान पर भरोसा नहीं है।

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन। अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने से वहां की राजधानी सहित पूरे देश में कोहराम मचा है। लोग तालिबान से जान बचाकर भाग रहे हैं। काबुल हवाई अड्डे पर मचा कोहराम देख दुनिया भर के लोग हैरान हैं। दूसरी ओर, अफगानिस्तान के छह गुरुद्वारों में से केवल एक गुरुद्वारा साहिब खुला हुआ है। यहां पर भी तालिबान के लड़ाके सोमवार को पहुंच गए। उन्होंने यहां शरण लिए सिखों को आश्वासन दिया कि उन्हें जानी तौर पर कोई खतरा नहीं है। बावजूद इसके सिखों को उनके वादे  पर बिल्कुल भरोसा नहीं है। यहां फंसे लोगों में लुधियाने में रह रहे अफगानिस्तानियों के भी स्वजन हैं।

गुरुद्वारा के बाहर सफेद झंडा लहराने को कहा

हालांकि तालिबान ने यह भी फरमान सुनाया कि गुरुद्वारा साहिब के बाहर सफेद रंग का झंडा लहराया जाए ताकि तालिबान लड़ाकों को पता चल जाए कि सिख उनकी शरण में है। इसके बावजूद सिखों को अपनी जान की चिंता है। उन्हें तालिबान पर भरोसा नहीं है। वहां रहते सिख खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। सिखों ने तालिबान पर यकीन न करने की बात कहते गुहार लगाई है कि उनको कनाडा या अमेरिका में बुला लिया जाए। उन्होंने इंटरनेट मीडिया पर एक वीडियो जारी करते हुए अफगानिस्तान से बाहर निकालने में मदद की गुहार लगाई है।

राजधानी काबुल में फंसे हैं 286 हिंदू-सिख

अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद हिंदू-सिखों ने मंदिर गुरुद्वारों की शरण ली है। अकेले काबुल के गुरुद्वारा में करीब 286 हिंदू-सिख फंसे हैं। इनमें से 24 परिवार लुधियाना में रह रहे अफगानिस्तानियों के भी हैं। सभी अब अफगानिस्तान से बाहर निकलना चाहते हैं। बता दें कि नब्बे के दशक में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे तक वहां करीब 2 लाख हिंदू और सिख थे। इसके बाद कट्टपंथियों के अत्याचार बढ़ने पर उनका पलायन बढ़ता गया। आज वहां केवल करीब 800 हिंदू-सिख परिवार ही बचे हैं। ये भी अब अपनी जान बचाकर दूसरे देशों में शरण की मांग कर रहे हैं। 

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