सरपंच का कमाल! चंडीगढ़ से कम नहीं पंजाब का यह गांव, सुविधाएं और खूबसूरती देखने देश-विदेश से आते हैं एक्सपर्ट
रुड़का कलां पंजाब का एक ऐसा गांव है जो अपनी स्वच्छता पक्की गलियों योजनाबद्ध सीवरेज प्रणाली और चारों ओर फैले तालाबों के कारण एक छोटे से शहर जैसा दिखता है। इस गांव को मॉडल गांव बनाने में सरपंच कुलविंदर कौर की अहम भूमिका रही है। उनके नेतृत्व में गांव में कई विकास कार्य हुए हैं जिससे गांव की ख्याति देश-विदेश तक फैल गई है।
जगदीश कुमार, जालंधर। फिल्लौर हलके के गांव रुड़का कलां में प्रवेश करते ही चंडीगढ़ जैसा अनुभव होने लगता है। स्वच्छता, पक्की गलियां और योजनाबद्ध तरीके से बनाई गई सीवरेज प्रणाली गांव में छोटे से शहर की झलक पेश करती है। चार तालाब और इसके आसपास सैरगाह व पार्क के कारण यह गांव बेदह खूबसूरत नजर आता है। गांव में 11 चौपाल भी स्थापित की गई हैं।
पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए रुड़का कलां को मॉडल गांव का रूप दिया गया है। लगभग दस हजार की आबादी वाले गांव में यह सब संभव हुआ है सरपंच कुलविंदर कौर की बदौलत।
कुलविंदर कहती हैं, 'पार्टीबाजी और राजनीति से ऊपर उठकर गांव के पंचों और यूथ फुटबाल क्लब (वाईएफसी) के साथ मिलकर गांव में विकास के कार्य शुरू किए और सभी के सहयोग से इसे मॉडल गांव बनाने में सफलता प्राप्त की।
गांव को मिल चुके हैं कई अवॉर्ड्स
सफलता के इस सफर में कई अड़चनें भी आईं, परंतु सत्य के मार्ग पर चलते हुए सभी को दूर किया और गांववासियों का विश्वास जीता। गांव को स्वच्छ भारत मिशन 2023 के तहत राष्ट्रीय तथा शहीद भगत सिंह पंजाब राज सालाना वातावरण अवॉर्ड 2024 के अलावा कई अन्य अवॉर्ड मिल चुके हैं। गांव की ख्याति इतनी है कि इसे देखने के लिए देश-विदेश से विशेषज्ञ भी पहुंचते हैं।
कुलविंदर 2019 में सरपंच बनीं। ग्रामीणों ने उन्हें 17 कार्यों की सूची सौंपी थी। जब कार्यकाल पूरा हुआ तब कुलविंदर इससे आगे बढ़कर 25 काम पूरे कर चुकी थीं। पहली बार सरपंच चुने जाने पर उनके सामने कई चुनौतियां भी थीं।
उन्होंने जब अपने काम की शुरुआत गांव के एक तालाब को नया रूप देने से की तो गांव के कुछ लोग विरोध में उतर आए। इससे कुलविंदर निराश हो गईं, लेकिन उन्हें आधुनिक तकनीक और तालाब को नया रूप देने के लिए आवश्यक प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी थी।
इसलिए उन्होंने विरोध कर रहे लोगों को समझाया। इसके बाद जब तालाब को नया रूप मिल गया तब सभी बहुत प्रसन्न हुए। फिर गांव के चारों तालाबों को पक्का किया गया।
इसके आसपास पार्क बनाए गए, पौधारोपण करवाए गए और ऐसा लुक दिया गया, जैसे यह विदेश का कोई स्थल हो। तालाब में गांव का पूरा पानी ट्रीट होकर पहुंचता है। फिर इस पानी को 500 एकड़ खेतों में सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इस कार्य के लिए किसानों की कमेटी गठित है। यहां मोटरें सोलर सिस्टम से चलती हैं, जबकि दो तालाब वर्षा का पानी एकत्रित करने के लिए बनवाए गए हैं। वर्ष 2022-23 में गांव के पार्कों को भी नया रूप देने की प्रक्रिया शुरू हुई और विदेशी पार्क की तर्ज पर इन्हें तैयार करवाया गया। पूरे गांव में मुख्य प्रवेश पर सीसीटीवी कैमरे लगाने के साथ लाइटें भी लगाई गई हैं।
गांव के विकास में 50 लाख रुपये अपनी जेब भी खर्च किए
कुलविंदर कौर कहती हैं कि गांव के पूरे विकास में करीब 14 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इनमें करीब दस करोड़ वाईएफसी ने दिए और चार करोड़ रुपये सरकारी बजट से खर्च हुआ है।
गांव के विकास के लिए सरकारी फंड लाने में भी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ा। हालांकि गांव से जुड़े एनआरआई पूरा सहयोग कर रहे हैं और वाईएफसी की टीम कंधे से कंधा मिला कर चल रही है। विकास के लिए कभी गांववासियों से पैसे नहीं लिए गए।
400 साल पुराना गांव और इंटरनेशनल स्तर पर पहचान
कुलविंदर ने बताया कि गांव करीब 400 साल पुराना है। तरनतारन के पास सरहाला ढंडिया से यहां आकर लोगों ने गांव बसाया था। गांव के 45 स्वंतत्रता सेनानियों ने देश की आजादी में योगदान दिया।
गांव में वाईएफसी ने पांच हजार खिलाडि़यों को कबड्डी, फुटबाल और अन्य खेलों में ट्रेंड कर विदेश भेजा और 25 से ज्यादा इंटरनेशनल खिलाड़ी तैयार किए। गांव में बनाए गए खेल के मैदानों में रोजाना 200-250 बच्चे अभ्यास के लिए आते हैं, इसी वजह से गांव नशे की लत से बचा हुआ है।
जल संरक्षण के लिए किए प्रबंध
गांव में जल संरक्षण के लिए तालाबों के अलावा पांच रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम उपलब्ध हैं। इसके लिए लगभग 200 गड्डे बनवाए गए हैं जो पानी को जमीन के निचले स्तर तक पहुंचाते हैं। साथ ही सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए गांव में 1,700 के करीब बाल्टियां बांटी गईं और सफाईकर्मी घर-घर जाकर गीला और सूखा कूड़ा लेकर डंप पर जमा करते हैं। कूड़े से खाद तैयार किया जाता है।
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