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Jallianwala Bagh Massacre: 'जलियांवाला बाग' पुस्तक में नए पहलू, गद्दार था हंसराज, उसी ने लोगों को रोके रखा था

Jallianwala Bagh Massacre 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी दिल्ली में इतिहास विषय की प्रोफेसर प्रो. नोनिका ने अपने पिता स्व. विश्वनाथ दत्ता की पुस्तक में ऐसे तथ्य जोड़े हैं जो अभी तक अनछुए थे।

By Edited By: Updated: Tue, 13 Apr 2021 08:47 AM (IST)
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इतिहास विषय की प्रोफेसर प्रो. नोनिका। जागरण
जेएनएन, अमृतसर। Jallianwala Bagh Massacre: 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ था। इस नरसंहार पर आज तक कई शोध हुए, असंख्य पुस्तकें लिखी गईं, पर कई ऐसे पहलू हैं जो उजागर नहीं हुए। अमृतसर के रहने वाले इतिहासकार स्व. विश्वनाथ दत्ता ने 1969 में 'जलियांवाला बाग' शीर्षक पर पुस्तक लिखी। वह इस पर किताब लिखने वाले पहले इतिहासकार थे।

अब विश्वनाथ की बेटी प्रो. नोनिका दत्ता ने 2021 में इसी पुस्तक को रिवाइज किया है। प्रो. नोनिका जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी दिल्ली में इतिहास विषय की प्रोफेसर हैं। प्रो. नोनिका के अनुसार उनके पिता का जन्म 1926 में हुआ था। जलियांवाला बाग नरसंहार 1919 में हुआ। वर्ष 1969 में पिता ने जलियांवाला बाग पुस्तक लिखी। प्रो. नोनिका के अनुसार अब उन्होंने इसी पुस्तक में कुछ ऐसे पहलू जोड़े हैं जो अनछुए थे। उदाहरण के तौर पर हंसराज नामक शख्स। यह गद्दार था।

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13 अप्रैल 1919 को जब जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ अंदर दाखिल हुआ तो हंसराज ने ही जनसभा कर रहे लोगों को रोके रखा। उसने कहा कि डरने की कोई बात नहीं है। लोगों ने उसकी बात मानी, लेकिन इसी दौरान डायर के आदेश पर गोलियां चला दी गई। इसके अतिरिक्त और भी कई पहलू इस पुस्तक में दर्ज हैं। प्रो. नोनिका ने इस पुस्तक में अपने पिता विश्वनाथ के साथ बातचीत का साक्षात्कार भी दर्ज किया है।

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अमृतसर के रहने वाले इतिहासकार नरेश जौहर से बातचीत पर आधारित कई अंश पुस्तक में दर्ज हैं। इनमें खूह कौड़ियां स्थित क्रालिंग स्ट्रीट का उल्लेख किया गया है। क्रालिंग स्ट्रीट में लोगों को रेंगकर गुजरने की सजा दी गई थी, जो ऐसा नहीं करता था जनरल डायर के आदेश पर उस पर कौड़े बरसाए जाते थे। डायर ने गर्भवती महिलाओं, दिव्यांगों को भी रेंगने को मजबूर किया था।

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