Presidents of India: पंजाब से इकलौते राष्ट्रपति बने ज्ञानी जैल सिंह, पढ़ें जेल में नाम बदलने की दिलचस्प दास्तां
President of India ज्ञानी जैल सिंह का जन्म 15 मई 1916 को फरीदकोट के गांव संधवा में हुआ था। पूरा गुरुग्रंथ साहिब याद करने के कारण उन्हें ज्ञानी की उपाधि मिली थी। देश के 7वें राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल विवादों से घिरा रहा।
By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Sat, 18 Jun 2022 12:33 PM (IST)
प्रदीप कुमार सिंह, फरीदकोट। 24 जुलाई को वर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल समाप्त हो रहा है।देश का नया राष्ट्रपति कौन होगा, यह चर्चा का विषय है। अगर अब तक हुए राष्ट्रपतियों की बात की जाए तो पंजाब से केवल ज्ञानी जैल सिंह सर्वोच्च पद पर सुशोभित हुए हैं। वह देश के 7वें राष्ट्रपति (कार्यकाल 1982 से 1987) रहे हैं। उनका जीवन और राजनीतिक यात्रा दिलचस्प और विवादों से परिपूर्ण रही। उनके नाम 'जैल सिंह' को लेकर भी दिलचस्प दांस्ता है।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का जन्म 15 मई, 1916 को फरीदकोट-कोटकपूरा हाइवे के किनारे स्थित गांव संधवा में हुआ था। उनके पिता का नाम भाई किशन सिंह व मां का नाम इंद कौर था। वह उनकी चार संतानों में सबसे छोटे थे। पिता गांव में ही कारपेंटरी करते थे। छोटी उम्र में ही जरनैल सिंह की माता का देहांत हो गया था, जिसके बाद उनका का पालन-पोषण उनकी मौसी ने किया। 15 वर्ष की आयु में ही वह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अकाली दल से जुड़ गए।
जबानी गुरुग्रंथ साहिब याद होने पर मिली थी ज्ञानी की उपाधि
ज्ञानी जैल सिंह बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, उन्होंने विभिन्न धर्माे के ग्रंथों का गहन अध्ययन किया था, वह पूरी तरह से सिक्ख धर्म को मानने वाले थे। अमृतसर के शहीद सिख मिशनरी कालेज से गुरुग्रंथ साहिब का पाठ मुंह जबानी याद करने के कारण इन्हें ज्ञानी की उपाधि मिली थी।
iगांव संधवां में स्थापित पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की प्रतिमा।यूं बने जरनैल से जैल सिंहबहुत कम लोग जानते हैं कि ज्ञानी जैल सिंह का वास्तविक नाम जरनैल सिंह था। 1938 में जरनैल सिंह ने प्रजा मंडल नामक राजनीतक दल का गठन था। दल भारतीय कांग्रेस के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया करता था। यह बात अंग्रेज व फरीदकोट रियासत को पंसद नहीं आई। फरीदकोट रियासत के राजा ने उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया और पांच साल की सजा सुनाई। जेल में रहने के दौरान विरोध स्वरूप उन्होंने अपना नाम जैल सिंह (जेल सिंह) रख लिया था।
पेप्सू सरकार में ज्ञानी जी राजस्व मंत्री बनेज्ञानी जैल सिंह ने 1946 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया। यहां के हालात के चलते 27 मई 1946 को पंडित जवाहर लाल नेहरू फरीदकोट पहुंचे। उन्होंने ज्ञानी जैल सिंह की अगुआई में पुरानी दाना मंडी में तिरंगा फहराकर स्वतंत्रता संग्राम को और तेज करने का एलान किया था। आजादी के बाद 1949 में बनी पेप्सू सरकार में ज्ञानी जी राजस्व मंत्री बने। दूसरी बार उन्हें सिंचाई व लोक निर्माण मंत्रालय सौंपे गए। 1955 में उन्हें पेप्सू कांग्रेस का प्रधान बनाया गया। वह 1956 से 1962 तक राज्य सभा के सदस्य भी रहे।
गांव संधवां स्थित पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का जन्मस्थान।वर्ष 1972 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने1962 में पंजाब विधानसभा का सदस्य चुने जाने पर उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया। 1966 में प्रदेश कांग्रेस के प्रधान बने और 1972 में पंजाब विधान सभा में पूर्ण बहुमत हासिल करके पंजाब के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला। 1979 में लोक सभा सांसद बनने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में उन्हें केंद्रीय गृह मंत्री बनाया गया। 1982 में राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी का कार्यकाल खत्म होने पर ज्ञानी जैल सिंह को सर्वसम्मति से देश के सातवें राष्ट्रपति के रूप में सेवा करने के लिए नामित किया गया था। उन्होंने 25 जुलाई, 1982 को उन्होंने इस पद की शपथ ली,जिनका कार्यकाल 25 जुलाई 1987 तक रहा।
विवादों से घिरा रहा पूर्व राष्ट्रपति का कार्यकाल राष्ट्रपति के रूप में ज्ञानी जैल का कार्यकाल शुरु से लेकर अंत तक विवादों में घिरा रहा। उनके कार्यकाल में ही आपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या और 1984 के सिख-विरोधी दंगे जैसी घटनाएं हुई। आपरेशन ब्लू स्टार से एक दिन पहले 31 मई, 1984 को, वह एक घंटे से अधिक समय तक उनसे मिले, लेकिन उन्होंने अपनी योजना के बारे में एक शब्द भी सांझा नहीं किया। आपरेशन के बाद उन पर सिखों ने पद से इस्तीफा देने का दबाव डाला। उन्होंने योगी भजन की सलाह पर स्थिति बिगड़ने के डर से इस्तीफे के खिलाफ फैसला किया। बाद में उन्हें हरिमंदिर साहिब की बेअदबी और निर्दोष सिखों की हत्या पर अपनी निष्क्रियता के लिए माफी मांगने और समझाने के लिए अकाल तख्त के सामने बुलाया गया।
ज्ञानी जैल सिंह के नाम पर गांव संधवां का रेलवे स्टेशन। उसी वर्ष 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई, इसके अलावा 1986 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा पारित भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक के संबंध में पाकेट वीटो का प्रयोग किया, प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया। इसके लिए उनकी व्यापक रूप से उनकी आलोचना की गई। इसके साथ ही प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ मनमुटाव हो गया।
यह भी पढ़ें - टैटू बनवाने वालों पर मंडरा रहा काला पीलिया का खतरा, जालंधर में 10 प्रतिशत लोग संक्रमित, इन बातों का रखें ध्यान25 दिसंबर 1994 को हुई मृत्यु ज्ञानी जैल सिंह बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के थे। राष्ट्रपति बनने के बाद भी जब कभी वह पंजाब या इसके आसपास होते थे तो वह आनंदपुर साहिब जाना नहीं भूलते थे। इसी तरह से वह लगातार तीर्थयात्राएं करते रहते थे। 1994 में तख्तश्री केशगढ़ जाते समय उनकी गाड़ी र्दुघटनाग्रस्त हो गई, उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ उपचार के लिए ले जाया गया, जहां उनकी मृत्यु 25 दिसंबर 1994 को हो गई। दिल्ली में जिस जगह पर उनका दाह संस्कार किया गया, उसे एकता स्थल के नाम से जाना जाता है।
गांव में बना है पंचभुजी टावर व रेलवे स्टेशन पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की याद में उनके पैतृक गांव संधवां में एक पंचभुजी टावर बना है। इस टावर की ऊंचाई 78.7 फीट है जो उनके जीवन के 78 वर्ष सात माह व बीस दिन को दर्शाती है, टावर का पंचभुजी होना पंजाब के पांच दरियाओं का महत्व दर्शाता है। इसका पूरा डिजाइन चंडीगढ़ की वास्तुकार नम्रता कलसी ने तैयार किया था। यहां पर ज्ञानी जैल सिंह का कांस्य का बुत सुशोभित है। यहां पर राष्ट्रपति भवन से लाई गई उनकी एक कुर्सी भी रखी हुई है इस स्मारक का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 25 दिसंबर, 1999 को किया था। ज्ञानी जैल सिंह के सम्मान में संधवा गांव में ज्ञानी जैल सिंह रेलवे स्टेशन है।
पौत्र कुलतार सिंह संधवां वर्तमान में पंजाब विस के स्पीकर पंजाब विधानसभा के स्पीकर कुलतार सिंह संधवा ने बताया कि उनके दादा पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह विराट व्यक्तित्व थे। उन्होंने हमेशा देश व समाज की भलाई के लिए फैसले लिए। वह कभी किसी के दबाव में नहीं आए। पंजाब का मुख्यमंत्री रहते उन्होंने पंजाब का 12वां जिला बठिंडा से अलग कर फरीदकोट बनाया था।पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र थे ज्ञानी जैल सिंह का पूर्व प्रधानंत्री इंदिरा गांधी का विश्वासपात्र और बेहद करीबी थे। इसी कारण इंदिरा गांधी ने उन्हें अपनी सरकार में गृहमंत्री बनाया था। उनकी करीबता का अंदाता जैल सिंह के राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने के बाद दिए गए बयान से भी लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर मेरे नेता ने कहा होता कि मुझे झाड़ू उठानी चाहिए और नौकर बनना चाहिए तो मैंने ऐसा ही किया होता। उन्होंने मुझे राष्ट्रपति बनने के लिए चुना।
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