पंजाब के एक दर्जन गांवों की ग्राउंड रिपोर्ट, दिल्ली बार्डर से लौटकर किसान बन रहे सुपर स्प्रेडर
पंजाब में कोरोना ने गांवों में भी दस्तक दे दी है। दैनिक जागरण ने एक दर्जन गांवों का डाटा तैयार किया जिसमें सामने आया कि इन गांवों में दिल्ली बार्डर से किसान आंदोलन से लौटे किसानों के कारण संक्रमण हुआ है।
By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Thu, 13 May 2021 10:36 AM (IST)
जेएनएन, जालंधर। पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के मरीजों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी और मृत्यु दर 58 फीसद हो गई है। यहां संक्रमण का बड़ा कारण दिल्ली के बार्डर पर कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन से संक्रमित होकर लौटे किसान भी हैं जो कि सुपर स्प्रेडर बन रहे हैं। धरनों में न तो शारीरिक दूरी रखी जा रही है न ही मास्क आदि का इस्तेमाल किया जा रहा है। यही नहीं, बीमार होने पर किसान टेस्ट भी नहीं करवा रहे। लौट कर उनके संपर्क में आने वाले लोग भी संक्रमित हो रहे हैं।
पंजाब में हुई किसान महापंचायतों व धरने-प्रदर्शनों में शामिल किसानों की वजह से भी संक्रमण गांवों तक पहुंचा है। दैनिक जागरण ने राज्य के सात जिलों तरनतारन, मुक्तसर साहिब, बरनाला, संगरूर, बठिंडा, मानसा व मोगा के करीब 19 गांवों में पड़ताल की जहां कोरोना के मामले बढ़े हैं। यह पाया गया कि इन गांवों से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली आंदोलन व अन्य धरने-प्रदर्शनों में शामिल रहे हैं।
गांव के लोग यह खुलकर नहीं बताते कि जो कोरोना से मरे हैं या जो संक्रमित हैं उनमें कितने ऐसे किसान हैं जो धरनों में शामिल हुए हैं। फिर भी कुछ गांवों में पड़ताल करने पर स्थिति स्पष्ट होती है कि किसान संक्रमित होकर लौट रहे हैं। तरनतारन में 900 किसान दिल्ली धरने से लौटे हैं। इनमें से अब तक सात की कोरोना से मौत हो चुकी है। इनमें भिखीविंड, माणकपुरा व नारला में दो-दो, जबकि नौशहरा पन्नूआ में एक किसान शामिल हैॆ।
तरनतारन में माणकपुर गांव में बीस से अधिक लोग पाजिटिव आए हैं। इनमें सात टीकरी बार्डर पर धरना देकर लौटे हैं, जो अन्य पाजिटिव हैं उनमें भी ज्यादातर उन लोगों के संपर्क में रहे हैं, जो दिल्ली से लौटे हैं। इसी तरह श्री मुक्तसर साहिब के गांव आलमवाला में 40 कोरोना पाजिटिव हैं। इनमें दस ऐसे हैं, जो दिल्ली मोर्चे में शामिल हुए थे। अन्य तीस लोग गांव के ही हैं जो इनके जान-पहचान के हैं।
यह भी पढ़ें: सोनाली फोगाट और सपना चौधरी का मुकाबला, ममता का हुड्डा प्रेम, पढ़ें हरियाणा की और भी रोचक खबरें
यह संभव है कि इनके संपर्क में ही आने से उन्हें भी कोरोना हुआ हो। गांव में जब इस बारे में लोगों को कुरेदा जाता है तो वे कन्नी काटते हैं। कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां के काफी संख्या में किसान दिल्ली से लौटे हैं और वहां पाजिटिव मरीजों की संख्या काफी है। जो पाजिटिव आए हैं वे इन किसानों के संपर्क में रहे हैं। तरनतारन के भिखीविंड में करीब 150 किसान दिल्ली से लौटे हैं, यहां 22 पाजिटिव केस हैं। कुल्ला गांव के 165 किसान दिल्ली से आए हैं, यहां 14 केस हैं। दो अन्य गांवों नारला व नारली से 50, एकलगड्ढा से 140 और नौशहरा पन्नूआ से 80 किसान दिल्ली आंदोलन में शामिल हो चुके हैं। यहां के आठ गांवों में 117 लोग संक्रमित हैं।सहायक सिविल सर्जन डा. कंवलजीत सिंह ने बताया कि इन गांवों में कंटेनमेंट जोन बनाए गए हैं। यही लगता है कि बाहर से आने वालों से ही संक्रमण फैला है।
यह भी पढ़ें: Amitabh Bachchan से दो करोड़ का दान लेने पर पंथक विवाद, HSGPC व सिख संगठनों ने राशि वापस करने को कहा
बरनाला के धनौला गांव में अब तक 31 लोगों की मौत हो चुकी है। यहां 104 एक्टिव केस हैं, लेकिन लोग बताने से इन्कार करते हैं कि इनमें से कितने दिल्ली धरने से लौटे हैं। वैसे गांव से कुल 1100 लोग धरने में गए थे। संगरूर के लोंगोवाल, मूनक व मोगा के महेश्वरी, दौलतपुरा व डरौली में भी ऐसी ही स्थिति है। बरनाला के सिविल सर्जन डाक्टर हरिंदरजीत सिंह गर्ग का कहना है कि धरने-प्रदर्शनों में शारीरिक दूरी इत्यादि न रखने जैसी लापरवाही ही संक्रमण फैलने का कारण बन रही है।
उन्होंने माना कि गांवों कई ऐसे लोगों की मौत हुई है, जिनमें लक्षण तो कोरोना जैसे थे, लेकिन ग्रामीण टेस्ट करवाने के लिए राजी नहीं हुए। यहां के तपा व महलकलां से 250 किसान दिल्ली व स्थानीय धरनों में शामिल हो चुके हैं। दोनों गांवों में 156 एक्टिव केस हैं और 35 की जान जा चुकी है। मानसा के नंगलकलां गांव में 50 मामले आ चुके हैं। इसे भी सील कर दिया गया है।सही आंकड़े सामने न आने का एक कारण यह भी
किसान आंदोलन में मरने वाले लोगों के लिए पंजाब सरकार ने पांच लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की है। बीमार होने पर लोग प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती हो जाते हैं। मौत होने पर पता चलता है कि कोरोना जैसे लक्षण थे। परिवार यह जानकारी छिपाता है, क्योंकि यदि मौत का कारण कोरोना हुआ तो मुआवजे की राशि नहीं मिलेगी। यही कारण है कि ग्रामीण इलाकों में टेस्टिंग की दर 40 फीसद ही है।किसान नेता मानते हैं संक्रमण का खतरा
किसान नेता यह मानते हैं धरनास्थल पर संक्रमण का खतरा है, लेकिन वे वहां से हटने को तैयार नहीं। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि अगर सरकार को हमारी चिंता थी तो क्यों नहीं धरनास्थल पर ही सभी को वैक्सीन लगाने का प्रबंध किया गया। कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से इस बारे में बात भी हुई थी। राजेवाल का कहना है कि हम घरों में मरने के बजाय आंदोलन में मरना बेहतर समझेंगे।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।