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अमृतसर के जलियांवाला बाग में इतिहास से छेड़छाड़, क्रांतिकारियों के चित्र लगाए लेकिन परिचय हटाया

पंजाब विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर व इतिहास के प्रोफेसर. दरबारी लाल ने बताया कि जलियांवाला बाग पर करोड़ों रुपये खर्च कर उसका पूरा इतिहास ही बदल दिया है। जिस कंपनी को इसके सुंदरीकरण का ठेका दिया गया था उसने किसी भी इतिहासकार को इसमें शामिल ही नहीं किया।

By DeepikaEdited By: Updated: Sat, 20 Aug 2022 10:38 AM (IST)
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जलियांवाला बाग में बनी गैलरी में लगी क्रांतिकारियों की फोटो। (जागरण)
जागरण संवाददाता, अमृतसर: देश की आजादी के इतिहास में जलियांवाला बाग बेहद अहम स्थान रखता है। अंग्रेजों हुकूमत के दौरान यहां सैकड़ों लोगों को गोली मारकर शहीद कर दिया गया था। इस कांड से पहले शहर में आजादी के संघर्ष को लेकर जो लहर चल रही थी, उसके मुख्य नायक रहे डा. सत्यपाल, डा. सैफुद्दीन किचलू, चौधरी बुग्गा मल और महाशय रतन चंद की तस्वीरें तो बाग के अंदर लगी हुई हैं। 

उनका क्या योगदान रहा और किस तरह से उन्होंने सबसे पहले रौलेट एक्ट के खिलाफ आवाज उठाकर एक संघर्ष खड़ा कर दिया था। वह सारा इतिहास वहां से हटा दिया गया है। ऐसे में बाहर से आने वाले पर्यटकों या अन्य लोगों को इन क्रांतिकारियों की तस्वीरें तो लगी हुई दिखाई देती हैं, मगर इनका आजादी के संघर्ष में क्या योगदान रहा है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।

पंजाब विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर व इतिहास के प्रोफेसर. दरबारी लाल ने बताया कि जलियांवाला बाग पर करोड़ों रुपये खर्च कर उसका पूरा इतिहास ही बदल दिया है। जिस कंपनी को इसके सुंदरीकरण का ठेका दिया गया था, उसने किसी भी इतिहासकार को इसमें शामिल ही नहीं किया।

यहां न केवल इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई है बल्कि जिस जगह पर खड़े होकर जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, उसके निशान तक हटा दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि 13 अप्रैल 1919 से पहले रौलेट एक्ट के खिलाफ शुरू हुए संघर्ष की अगुआई करने वाले डा. सत्यपाल, डा. सैफुद्दीन किचलू, चौधरी बुग्गा मल और महाशय रतन चंद की तस्वीरों के साथ दिया गया उनका परिचय हटाना ठीक नहीं है।

छह अप्रैल 1919 को पूरे भारत में महात्मा गांधी की अपील पर शांतिपूर्ण हड़ताल की गई था। इस हड़ताल की जिम्मेदारी डा. सैफुद्दीन किचलू, डा. सत्यपाल, चौधरी बुग्गा मल, महाशा रत्तो और लाला गिरधारी लाल को दी गई थी। हड़ताल शांतिपूर्ण समाप्त हुई। इसके बाद 9 अप्रैल 1919 को रामनवमी पर्व था। अमृतसर के इतिहास में पहली बार हिंदू, मुसलमानों, सिखों और ईसाइयों ने मिलकर 9 अप्रैल को शोभायात्रा निकाली। बाजारों को दुल्हन की तरह सजाया गया। यह अद्भुत दृश्य था।

इसके बाद डा. सैफुद्दीन किचलू और डा. सत्यपाल को डीसी की कोठी बुलाया गया और वहां से गिरफ्तार कर धर्मशाला भेज दिया गया। इसी के बाद उनकी रिहाई को लेकर ही 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में लोग एकत्र हुए थे। मगर जनरल डायर ने गोलियां चलवाकर सैकड़ों लोगों को शहीद करवा दिया था।

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