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सुर सजाने का महापर्व हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन, पढ़ें जालंधर के इस महोत्सव का रोचक इतिहास

हरिवल्लभ संगीत महासम्मेलन में स्वामी तुलजा गिरि की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। उनके शिष्य स्वामी हरिवल्लभ देवी तालाब की नानकशाही ईंटों से बनी सीढ़ियों पर बैठ कर ध्रुपद गाया करते थे। उनकी आवाज से हर कोई मंत्र मुग्ध हो जाता था।

By Vikas_KumarEdited By: Updated: Sun, 27 Dec 2020 08:43 AM (IST)
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हरिवल्लभ संगीत महासम्मेलन गत 145 वर्ष से सफलतापूर्वक चल रहा है।

जालंधर, जेएनएन। हरिवल्लभ संगीत महासम्मेलन गत 145 वर्ष से सफलतापूर्वक चल रहा है। शास्त्रीय संगीत से जुड़े प्रत्येक मन में इस सम्मेलन के प्रति अगाध श्रद्धा देखी जाती रही है। भारत एवं पाकिस्तान से बहुत सारे फनकार अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए इस मंच पर आकर अपने लिए गर्व अनुभव कर रहे हैं। संगीत के इस महाकुंभ को कुछ इतिहासकार महान संगीत उत्सव भी मानते हैं। हरिवल्लभ संगीत महासम्मेलन के पंडाल में जब श्रोतागण सुर के वशीकरण के प्रभाव से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं तो भूल जाते हैं कि वह अपने पीछे भौतिकवाद को बहुत दूर छोड़ आए हैं। उन्हें तो सुर लहरी में एक अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।

साठ वर्षों से हम इस महासम्मेलन को देख रहे हैं। हमें याद है कि आज जिस स्थान पर यह सम्मेलन हो रहा है, यहां एक लोहे की चादरों से बना शेड हुआ करता था, जिसके बीच एक बड़ा तख्तपोश पड़ा होता था। उसके सामने बरगद का बहुत बड़ा वृक्ष, जिसके नीचे अलाव तापते दस-बीस साधु बैठे होते थे। उसी तख्तपोश पर देश के महान तपस्वी संगीतकार अपनी कला का प्रदर्शन किया करते थे। धीरे-धीरे शास्त्रीय संगीत के इस महान पर्व का रूप स्वरूप बदलता गया।

स्वामी तुलजा गिरि की भूमिका महत्वपूर्ण

हरिवल्लभ संगीत महासम्मेलन में स्वामी तुलजा गिरि की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। तुलजा गिरि जी स्वयं संगीत के ज्ञाता थे। उनके शिष्य स्वामी हरिवल्लभ देवी तालाब की नानकशाही ईंटों से बनी सीढ़ियों पर बैठ कर ध्रुपद गाया करते थे। कुछ लोगों का मानना है कि कि बाबा हरिवल्लभ के कंठ से निकले सुर सुनने वालों को मदहोश कर देते थे। बाबा हरिवल्लभ का ननिहाल जालंधर में था और उनका जन्म स्थान प्रसिद्ध नगर बिजवाड़ा, जिला होशियारपुर था। स्वामी तुलजा गिरि का परलोक गमन सन 1874 को कहा जाता है। तत्पश्चात हरिवल्लभ जी को उनकी गद्दी प्राप्त हो गई। उन्होंने अपने गुरु स्वामी तुलजा गिरि की संगीत साधना को जारी रखा।

 

साल 2018 में श्री हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन में ग्रैमी अवार्ड विजेता पंडित विश्वमोहन भट्ट ने अपनी मोहन वीणा का जादू बिखेरते।

महाराजा कपूरथला ने दिया अहम सहयोग

हरिवल्लभ जी के बाद पंडित तोलो राम ने इस संगीत यात्रा को सन 1885 से आगे बढ़ाना आरंभ कर दिया। तब महाराजा कपूरथला ने इस संगीत सम्मेलन के आयोजन में बहुत सहयोग दिया। सन 1908 में शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध उस्ताद सूर्य विष्णु दिगम्बर ने इस संगीत सम्मेलन में आकर इसकी ख्याति को शिखर पर पहुंचा दिया। तत्पश्चात ओंकार नाथ ठाकुर, पंडित विनायक राव पटवर्धन आदि ने इस महान सम्मेलन में अपनी प्रस्तुति से शास्त्रीय संगीत को जन-जन तक पहुंचाया। इस महासम्मेलन में भीम सेन जोशी, बड़े गुलाम अली खां, इमदाद खां, पंडित रवि शंकर, विलायत खां, अमजद अली खां, शिव शर्मा और हरिप्रसाद चौरसिया जैसे संगीतज्ञ शिरकत कर चुके हैं। तबला वादकों में उस्ताद अल्लाह रक्खा खां, शामता प्रसाद, कृष्ण जी महाराज व उस्ताद जाकिर अली खां भी पहुंच चुके हैं। प्रसिद्ध ठुमरी गायिका व मल्लिका-ए-गजल नाम से प्रख्यात बेगम अख्तर ने भी महासम्मेलन में अपनी आवाज का जादू बिखेरा। सन 1919 को महात्मा गांधी भी हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन में पधारे थे।

हरिवल्लभ के इतिहास पर लिखी गई दो पुस्तकें

सन 1928 में पंडित तोलो राम का देहांत हो गया। महंत द्वारिका दास ने संगीत के काफिले को आगे बढ़ाया। महंत जी ने हरिवल्लभ संगीत महासम्मेलन का ट्रस्ट बनाया। तभी से अश्विन कुमार, मास्टर जगन्नाथ परती, फकीर चंद चंद और कई अन्य संगीत प्रेमी इस सम्मेलन को जारी रखने के लिए सक्रिय हो गए। नामधारी समुदाय के सतगुरु जगजीत सिंह जी महाराज का विशेष आशीर्वाद इस सम्मेलन को मिलता रहा। पूर्व कोषाध्यक्ष राकेश दादा ने हरिवल्लभ के इतिहास पर एक विशाल ग्रंथ भी संगीत प्रेमियों को भेंट किया है। स्व जोगिंद्र बावरा जी ने हरिवल्लभ के इतिहास पर दो पुस्तकें भी लिखी थी। पुॢणमा बेरी, ओपी. सेठ, दीपक बाली, एसएस. अजीमल, संगत राम और अन्य कई संगीत प्रेमी इस आयोजन का आरंभ हवन यज्ञ से करते हैं।