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Jalandhar History: राक्षस राजा के नाम पर पड़ा था जालंधर का नाम, कई कथाएं हैं प्रचलित; जानें क्या है खास

पंजाब का एक ऐसा जिला जिसके नाम को लेकर कई ऐतिहासिक कथाएं हैं। पुराने समय में जालंधर साम्राज्य में रावी से लेकर सतलुज तक का पूरा ऊपरी दोआबा शामिल था। बता दें कि वर्तमान में जालंधर जिले का क्षेत्र सिंधु घाटी की सभ्यता का हिस्सा था। आपको ये तो पता ही होगा कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो ऐसे स्थान हैं जहां बड़े पैमाने पर सिंधु घाटी के अवशेष पाए गए हैं।

By Nidhi Vinodiya Edited By: Nidhi Vinodiya Updated: Tue, 02 Jan 2024 07:59 PM (IST)
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जालंधर का क्या है इतिहास, जाने पूरी कहानी। फाइल फोटो
जागरण डिजिटल डेस्क, जालंधर। History of Jalandhar: जालंधर… पंजाब का एक ऐसा जिला है, जिसके नाम को लेकर कई ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इस जिले का नाम राक्षस राजा जलंधर के नाम पर रखा गया है। इसका उल्लेख तो पुराणों और महाभारत में मिलता है। पुराणों में एक और भी कथा है, जिसमें बताया गया है कि जालंधर राजा श्री राम के पुत्र लव के राज्य की राजधानी थी।

कई ये भी कहते हैं कि इस शहर का नाम एक स्थानीय नाम से लिया गया है, जिसका अर्थ है जल के अंदर का स्थान। यानी की दो नदियां सतलुज और ब्यास के मध्य का स्थान। इसका एक और नाम भी है। वह है त्रिगत, क्योंकि यहां तीन नदियां है सतलुज, ब्यास और रावी।

बड़े पैमाने पर पाए गए सिंधु घाटी के अवशेष

पुराने समय में जालंधर साम्राज्य में रावी से लेकर सतलुज तक का पूरी ऊपरी दोआबा शामिल था। बता दें कि वर्तमान में जालंधर जिले का क्षेत्र सिंधु घाटी की सभ्यता का हिस्सा था। आपको ये तो पता ही होगा कि  हड़प्पा और मोहनजोदड़ो ऐसे स्थान हैं, जहां बड़े पैमाने पर सिंधु घाटी के अवशेष पाए गए थे। 

बड़ा साम्राज्य था जालंधर

हम आपको लिये चलते हैं 7वीं शताब्दी में, जब प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने राजा के शासनकाल के समय यहां का दौरा किया था। यहां राजा यूटिटो (जिसे अलेक्जेंडर कनिंघम राजपूत राजा अतर चंद्र का नाम देते  हैं) के अधीन जालंधर या त्रिगर्त (तीन नदियों का मेल जहां होता हो) का साम्राज्य था। इतिहास को देखा जाए तो ये साम्राज्य पूर्व से लेकर पश्चिम तक लगभग 268 किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण तक लगभग 213 किलोमीटर तक फैला हुआ था। 

हिमाचल का भी कुछ हिस्सा था शामिल

जालंधर जो कि पहले बहुत बड़ा साम्राज्य हुआ करता था, इसमें चंबा, मंडी और सुकेत और सरहिंद (हिमाचल प्रदेश) के पहाड़ी इलाके शामिल थे। कहा जाता है कि यूटिटो राजा हर्षवर्धन के सहायक थे। इन्होंने 12वीं शताब्दी तक देश पर शासन किया। कुछ समय बाद उन्होंने अपने साम्राज्य की राजधानी जालंधर रखी और कांगड़ा को महत्वपूर्ण गढ़ घोषित किया। 

बड़े पैमाने पर बनाए गए बौद्ध धर्म के मठ

7वीं शताब्दी के बाद भारत में बौद्ध धर्म के बहुत सारे विहार और मठ बन गए थे। सिर्फ जालंधर जिले में ही बौद्ध धर्म के लगभग 50 विहार और मठ बन गए थे। लगातार लोग बौद्ध धर्म को अपना रहे थे।  

आपको ये भी बता दें कि दसवीं शताब्दी तक पंजाब शाही साम्राज्य में शामिल था और जालंधर इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण शहर बना। 

जालंधर के दर्शनीय स्थल

1- रंगला पंजाब हवेली

पंजाबी थीम के साथ बनाया गया एक गांव है, जहां विभिन्न प्रकार की एक्टिविटी होती हैं। यहां आपको पता चलेगा कि  आखिर पंजाब की परंपरा और संस्कृति कैसी है। रंगला पंजाब में जाने पर पता चलेगा कि  पंजाब के गांव कैसे हुआ करते थे। पुराने जमाने में कैसे लोग दूध-दही मथते थे। पंजाब में गांवों को पिंड कहा जाता है। यहां जाने के बाद आपको लगेगा कि जैसे आप सचमुच पंजाब के किसी गांव में आ गए हैं।  

यहां पर कई प्रकार के शो कराए जाते हैं, जिसमें आपको पंजाबी डांस (भांगड़ा और गिद्दा) देखने को मिलेगा, कैसे पुराने जमाने में लोग मीलों दूर से पानी लाया करते थे। यहां पर कठपुतलियों का भी शो कराया जाता है और भी कई दिलचस्प गतिविधियां यहां देखने को मिलती हैं। यदि आप छुट्टी पर जालंधर जा रहे हैं, तो रंगला पंजाब तो एक बार जाना बनता है। ये नेशनल हाईवे 44 (NH44) से 11.4 किमी दूर है।   

2- करतारपुर सिख गुरुद्वारा

सिखों के 5वें गुरु, गुरु अर्जन देव जी ने 1656 में इस गुरुद्वारे का निर्माण कराया था। कहा जाता है कि यहां वे  लोग आते हैं, जिन्होंने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया है। लोग यहां अपने बच्चों के लिए आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। ये गुरुद्वारा जालंधर के महान दर्शनीय स्थलों में से एक है। ये गुरुद्वारा जालंधर के सबसे करीब है। यहां से लगभग 5000 श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन करने आ सकते हैं। हालांकि, उनको एक दिन के अंदर ही वापस भी आना होता है । करतारपुर साहिब जाने के लिए प्रत्येक यात्री को 1420 रुपये का यात्रा शुल्क देना होता है। जालंधर से करतारपुर साहिब जाना कम खर्चीला और कम समय का है। यहां जाने के लिए मात्र 35 मिनट लगते हैं। 

3- जंग ए आजादी इमारत

अमृतसर-जालंधर राजमार्ग पंजाब के करतारपुर से होकर जाता है। इसी रास्ते में जंग-ए-आजादी स्मारक भी स्थित है। ये स्मारक एक म्यूजियम की तरह बनाया गया है, जो 25 एकड़ जमीन पर है। ये पंजाबियों के लिए खास भी है, क्योंकि इसमें उन लोगों की स्मारक बनाई गई है, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता की रक्षा में अपना योगदान दिया था। 

4- देवी तालाब मंदिर

कहा जाता है कि जालंधर के बीचोंबीच  स्थित ये मंदिर 200 साल से भी ज्यादा पुराना है। ये मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। ये मंदिर जालंधर के बड़े आस्था स्थलों में से एक है। इस मंदिर में एक पुराना तालाब भी है, जो यहां आकर्षण का केंद्र है। हिंदू उपासक इसे पवित्र मानते हैं। 

5- नूरमहल

शहर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नूरमहल की प्रसिद्ध सराय का नाम देश-विदेश में है। कहा जाता है कि मुगल शासन बादशाह जहांगीर ने अपनी बेगम नूरजहां के नाम पर कस्बे का नाम नूरमहल रखा था। किसी समय ईरान से दिल्ली और लाहौर से दिल्ली जाने वाले व्यापारी इसी रूट से निकलते थे। इस दौरान वह इसी सराय में विश्राम के लिए भी रुकते थे। इस समय इस सराय में आने वाले पर्यटकों की संख्या में तेजी के साथ इजाफा हो रहा है। 17वीं शताब्दी में बनी इस सराय के इतिहास का जिक्र कई किताबों में किया गया है। नववर्ष की पूर्व संध्या पर अक्सर लोग यहां पर घूमने के अलावा फोटोग्राफी करने के लिए भी पहुंचते हैं।

इस लेख में दी गई जानकारी जालंधर की आधिकारिक वेबसाइट से ली गई है।

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