Move to Jagran APP

जगजीत सिंह की पुण्यतिथि पर विशेषः चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वह कौन सा देश, जहां तुम चले गए....

जालंधर की फिजाओं में कभी इश्क के रंग को घोलने वाले गजल सम्राट की यादें शहर से लुप्त होती जा रही हैं। जिस डीएवी कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई की वहां उनसे जुड़ी यादें मिटती जा रही हैं।

By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Thu, 10 Oct 2019 01:36 PM (IST)
Hero Image
जगजीत सिंह की पुण्यतिथि पर विशेषः चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वह कौन सा देश, जहां तुम चले गए....
जालंधर [प्रियंका सिंह]। किसी ने जब पहली बार मोहब्बत की होगी तो वह उसके दिल की आवाज बना होगा। जब पहली बार दिल टूटा होगा तो उसकी आवाज ने दिल बहलाया होगा। बिछडऩे के बाद यादों के समंदर में उसकी गजलों ने गोता लगवाया होगा। 10 सितंबर को जगजीत सिंह की बरसी है। जालंधर की फिजाओं में कभी इश्क के रंग को घोलने वाले गजल सम्राट की यादें शहर से लुप्त होती जा रही हैं। जिस डीएवी कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई की, उसने जगजीत को याद तो रखा है, लेकिन उनसे जुड़ी यादों को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

जगजीत डीएवी कॉलेज के दो हास्टलों में रहे हैं। एक हॉस्टल का कमरा टूटकर बदहाल है, तो दूसरे हॉस्टल के कमरे में रहने वाले नौजवान भी नहीं जानते हैं कि इसी कमरे में 60 के दशक में जगजीत की गजलें मोहब्बत के रंग बिखेरती थीं। कंपनी बाग के जिस ग्रीन रेस्टोरेंट में कभी जगजीत शाम को पटियाला पैग की चुस्कियां लेते लोगों के दिलों पर अपनी गजलें सुना कर राज किया करते थे, आज वह रेस्टोरेंट खंडहर में तब्दील हो रहा है।

जालंधर में जगजीत से जुड़ी तमाम यादें अब सिमटने लगी हैं और उनकी गाई गलज..चिट्ठी न कोई संदेश, जाने वह कौन सा देश, जहां तुम चले गए की याद दिलाती हैं। गंगा नगर में स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए 1959 में  डीएवी कॉलेज जालंधर आए थे और 1963 तक जालंधर में रहे।

डीएवी कॉलेज स्थित हॉस्टल का वह कमरा जहां कभी जगजीत सिंह के सुर गूंजते थे। आज यह बदहाल है। इसके दरवाजों और खिड़कियां जर्जर हो गई हैं। 

 

लाल किले में लगती थी क्लासें

जगजीत के पुराने दोस्त रहे इकबाल सिंह बताते हैं कि 1960 के दौर में कॉलेज में विज्ञान के विद्यार्थियों की क्लास प्रिंसिपल के ऑफिस के सामने लाल रंग की बिल्डिंग में लगती थी। बिल्डिंग का रंग लाल होने के कारण उसे लाल किला बुलाया जाता था।  जगजीत उन छात्रों में से थे, जो कभी-कभार क्लास में आया करते थे। इस बिल्डिंग में फेम ऑफ द हॉल का निर्माण किया गया है। यहां तमाम प्रसिद्ध लोगों के साथ दीवार पर जगजीत सिंह की तस्वीर के दर्शन भी होते हैं।

यही है डीएवी कॉलेज का वह 'लाल किला' जहां गजल सम्राट जगजीत सिंह रियाज किया करते थे।

 

गुम हो रही हैं हॉस्टल से  यादें

जगजीत डीएवी कॉलेज के मेहरचंद (एमसी) हॉस्टल के कमरा नंबर 169 में रहते थे। इसी कमरे में वह खिड़की के पास बैठकर सुबह शाम रियाज करते थे। अब इस कमरे का नंबर बदल दिया गया है। जो भी विद्यार्थी इस कमरे में रह रहे हैं, उन्हें यह पता ही नहीं है कि कभी इसी कमरे में जगजीत सिंह की आवाज में मोहब्बत की गजलें गूजां करती थीं। हॉस्टल में जगजीत जी की कोई भी पुरानी याद नहीं बची है। वह एलआर हॉस्टल के कमरा नंबर 98 में भी रहे हैं। इस कमरे में जगजीत अपने दोस्तों के साथ सुरों की महफिल लगाया करते थे और इन महफिलों के श्रोता हास्टल के छात्र होते थे। आज एलआर हॉस्टल का वह कमरा भी जगजीत की यादों की तरह जमींजोद हो चुका है।

जियोग्राफी विभाग की बालकनी पर भी सजाते थे महफिल

इकबाल सिंह बताते हैं कि जगजीत जियोग्राफी विभाग की बालकनी पर रोजाना सुबह प्रेयर गाया करते थे। कभी-कभी उनका मन होता था या छुट्टी होती थी तो यहीं बैठकर वह गजलें भी गाते थे। नीचे पार्क में बाकी के तमाम छात्र उन्हें सुना करते थे। आज यह बालकनी भी रखरखाव के अभाव में जमींदोज होने की राह देख रही है।

कॉलेज के ओपेन एयर थियेटर से मिला था पहला मौका

कॉलेज की तरफ से जगजीत सिंह को गजल सुनाने का पहला मौका ओपन थिएटर से दिया गया था। इसी ओपन थिएटर में एक साइड एक छोटा सा कमरा होता था जिसमें वह हर वक्त  प्रेक्टिस करते रहते, लेकिन आज वह कमरा भी जमीन के अंदर यादों में खो गया है। ओपन थिएटर की हालत भी बहुत खस्ता हो गई है। कब इसकी सीढिय़ां टूट कर बिखर जाएं कहा नहीं जा सकता है।

जगजीत व इकबाल की जोड़ी ने मचाया धमाल

कॉलेज के यूथ फेस्टिवल में भी जगजीत हिस्सा लेते थे वह एक मध्यम संगीत के जरिए अपने कॉलेज को यूनिवर्सिटी में रिप्रेजेंट करते थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात इकबाल सिंह (कांग्रेसी नेता व पुड्डूचेरी के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर) से हुई जोकि उस वक्त खालसा कॉलेज में पढ़ते थे। वह जगजीत के साथ यूथ फेस्टिवल में तबला बजाते थे। इकबाल और जगजीत सिंह की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि जगजीत के कहने पर इकबाल सिंह खालसा कॉलेज छोड़कर डीएवी कॉलेज में आ गए। फिर दोनों ने मिलकर यूथ फेस्टिवल में धमाल मचाई।

राजनीतिज्ञ और कॉलेज के मित्र इकबाल सिंह के साथ गजल सम्राट जगजीत सिंह।

एआइआर के जरिए बनाई अपनी पहचान

जालंधर के ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन से जगजीत का काफी गहरा संबंध रहा है। जगजीत सिंह जग जाहिर यहां से ही हुए हैं। उस समय ऑल इंडिया रेडियो में सुदर्शन फाकिर का जगजीत को बहुत साथ मिला। दोनों एक साथ रियाज करते थे, जगजीत सुरों की तो फाकिर सितार के जरिए उनके सुर में ताल मिलाते। यह सब कुछ ऑल इंडिया रेडियो के रिकॉर्डिंग रूम में होता था।

सम्राट बनने के बाद यादों को टटोलने जालंधर आए थे

जालंधर से कुरुक्षेत्र और मायानगरी मुंबई जाकर फिल्मी पर्दों को इश्क की ताजगी से भरकर गजल सम्राट बनने के बाद  2009 में जगजीत कॉलेज आए थे। एलुमिनाई  मीट  में आकर पुरानी यादों को उन्होंने जीया था। डीएवी कॉलेज नकोदर के प्रिंसिपल अनूप शर्मा बताते हैं जब जगजीत कॉलेज के दौरे पर गए तो वह अपनी यादों से जुड़ी हर चीज देखकर भावुक हो गए थे। उन्होंने हर वह जगह देखी जहां पर वह कभी अपने दिन बिताते थे। उन्होंने बस यही कहा कि मुझे जालंधर ने बहुत कुछ दिया है, इस कॉलेज ने बहुत कुछ दिया है।

कुरुक्षेत्र में एक साथ की थी पढ़ाई: इकबाल

जालंधर में जगजीत के सबसे करीबी रहे इकबाल सिंह कहते हैं कि जगजीत की जान-पहचान मेरे बड़े भाई सरदार आया सिंह के साथ हुई थी। मेरे भाई को गजलों का बहुत शौक था। उसके चलते मेरी भी दोस्ती हुई थी। हम दोनों जालंधर की सड़कों पर साइकिल से घूमा करते थे। जगजीत बहुत शरारती थे। मैं क्रिकेट की प्रैक्टिस के लिए ग्राउंड जाता था तो जगजीत भी कभी-कभी आ जाते थे। मैं प्रैक्टिस करता था और वह ग्राउंड के चारों तरफ साइकिल चलाते रहते थे।

52 साल तक रही हमारी दोस्ती : चोपड़ा

जगजीत के सबसे पुराने व खास दोस्त वरिंदर चोपड़ा उर्फ कुक्कू बताते हैं कि वह 1958 और जगजीत 1959 में कॉलेज आए थे। हमारी दोस्ती 52 साल पुरानी थी। हॉस्टल के एक ही कमरे में साथ-साथ रहते थे। एक साथ ब्रेकफास्ट, लंच-डिनर करना रुटीन था। जगजीत हारमोनियम बजाते थे, मैं इलेक्ट्रॉनिक बैंजो, इलेक्ट्रॉनिक हवाइन और गिटार बजाता था। हमारा एक ग्रुप बन गया था जगजीत को उस ग्रुप में पहला इनाम मिलता था। जगजीत ने फेल होने के बाद अपनी स्ट्रीम साइंस से बदलकर आर्ट्स कर ली थी। मौका देखकर हम फिल्म देखने भी चले जाते थे। जगजीत सुबह से ही रियाज में जुट जाते थे और मुझे भी सुबह 4 बजे ही उठा देते थे। तीन घंटे की प्रैक्टिस के बाद हम कॉलेज जाते थे। हमने खूब मस्ती भी की।

धीरे-धीरे समय बदलता गया जगजीत को पूरा जग जानने लगा। जगजीत की आवाज में एक अलग ही जादू था। मुंबई जाने के बाद हमारी अगली मुलाकात 1967 में अंबाला में हुई। तब मैं जर्मनी से वापस लौट रहा था और वह लुधियाना जा रहे थे। दुनिया ने एक अनमोल हीरा खोया है। मुझे लगता है कि जैसे मिर्जा गालिब जगजीत ने गाया है वैसा किसी और ने नहीं। मेरी यह कोशिश है कि उन्हें भारत रत्न मिल सके इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी भी लिखी है।

हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।