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जालंधर वेस्ट से विधायक शीतल अंगुराल के भाइयों ने नहीं चुकाया बैंक का कर्ज, संपत्ति पर कब्जा लेने के आदेश

विधायक शीतल अंगुराल ने कहा कि बैंक के आरोप निराधार है। भाइयों ने बैंक से 17 लाख का कर्ज लिया गया था। इसके बदले में 14 लाख रुपये के चेक भी दिए। बैंक प्रबंधन ने उन्हें बिना सूचित किए 3.96 लाख रुपये का बीमा भी कर दिया।

By JagranEdited By: DeepikaUpdated: Thu, 29 Sep 2022 08:45 AM (IST)
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एडीसी की अदालत ने जारी किए निर्देश। (सांकेतिक)
जागरण संवाददाता, जालंधर: जालंधर वेस्ट हलके के विधायक शीतल अंगुराल के भाई सन्नी व ललित कुमार की न्यू रसीला नगर स्थित घरेलू संपत्ति का कब्जा बैंक को लेने के आदेश जारी किए गए हैं। यह आदेश सरफेसी एक्ट (सेकुरिटीसेशन एंड रिकांस्ट्रक्शन आफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड इंफोर्समेंट आफ सिक्योरिटी इंट्रस्ट एक्ट) के सेक्शन-14 के तहत अतिरिक्त उपायुक्त मेजर अमित सरीन ने जारी किए।

दोनों भाईयों ने बैंक को 28.85 लाख रुपये की राशि अदा नहीं की थी। इस कारण बैंक ने केस फाइल किया था। जांच के बाद बैंक को कब्जा लेने के लिए संबंधित तहसीलदार, एसएसपी व कार्यकारी मजिस्ट्रेट को मांग अनुसार संसाधन देने के आदेश दिए गए हैं। बैंक प्रबंधन की तरफ से दायर केस के मुताबिक सन्नी व ललित कुमार ने घरेलू संपत्ति नंबर 64 आर न्यू रसीला नगर पर स्टेट बैंक आफ इंडिया से 17 लाख रुपये का कर्ज 18 अप्रैल 2019 को लिया था।

बैंक का आरोप था कि दोनों लाभार्थियों ने किस्तें अदा नहीं की। इसके लिए लगातार रिमाइंडर भेजा जाता रहा। 16 मार्च 2020 तक यह राशि 28 लाख 85 हजार 213 रुपये बन गई। इसके बाद इस साल दो अगस्त को केस फाइल किया, जिस पर इसी महीने फैसला सुनाया गया।

बिना सूचित किए 3.96 लाख का बीमा कर दिया

विधायक शीतल अंगुराल ने कहा कि बैंक के आरोप निराधार है। भाइयों ने बैंक से 17 लाख का कर्ज लिया गया था। इसके बदले में 14 लाख रुपये के चेक भी दिए। बैंक प्रबंधन ने उन्हें बिना सूचित किए 3.96 लाख रुपये का बीमा भी कर दिया।

बीमा करने के बाद भी उनके ध्यान में नहीं लाया गया। कर्ज की किस्तें निरंतर दी जाती रही। बैंक ने उनके द्वारा दिए गए चेक लगाने के बजाय अदालत में केस लगा दिया। इससे उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है। फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में केस दायर करेंगे।

यह है सरफेसी एक्ट

सरफेसी एक्ट कानून के तहत भारतीय बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों की तरफ से कर्ज की अदायगी नहीं करने वालों के खिलाफ अदालतों के हस्तक्षेप के बिना अतिरिक्त उपायुक्त की अदालत में केस दायर किया जा सकता है। वित्तीय मामलों की वसूली को लेकर लगातार पेश आ रही दिक्कतों को देखते हुए सरफेसी एक्ट 2002 अस्तित्व में लाया गया था। इसे कानून में जरूरी बदलाव के रूप में भी देखा जाता है।

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