'टिकट' ने तोड़ा 77 वर्ष पुराना राजनीतिक रिश्ता, राहुल की भारत जोड़ो यात्रा और फिर... चौधरी परिवार की बगावत
कांग्रेस ने जालंधर से इस बार चौधरी परिवार को टिकट न देकर पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत चन्नी को उम्मीदवार बनाया है। इससे नाराज चौधरी परिवार ने अपना 77 साल पुराना रिश्ता कांग्रेस के साथ तोड़ लिया है। चौधरी परिवार की तीन पीढ़ियों ने कांग्रेस के साथ मिलकर काम किया था। आज कर्मजीत कौर ने बीजेपी का दामन थाम लिया है। कर्मजीत और विक्रमजीत ने जालंधर से दावेदारी मांगी थी।
दिनेश कुमार, जालंधर। दोआबा की राजनीति में बड़ा रसूख रखने वाले चौधरी परिवार की तीसरी पीढ़ी ने टिकट की बगावत में शनिवार को कांग्रेस से 77 साल पुराना अपना राजनीतिक रिश्ता तोड़ लिया। मास्टर गुरबंता सिंह ने देश की आजादी के बाद कांग्रेस का हाथ थामा था।
तब से चौधरी परिवार कांग्रेस के साथ जुड़ा रहा। इस बार लोकसभा चुनाव में पूर्व सांसद स्व. संतोख चौधरी की पत्नी कर्मजीत कौर और बेटे विक्रमजीत चौधरी ने जालंधर सीट से टिकट की दावेदारी जताई थी। उनका दावा था कि संतोख चौधरी ने कांग्रेस के लिए बलिदान दिया है। ऐसे में जालंधर सीट से टिकट पर उनका अधिकार है।
कांग्रेस ने उनके दावे को दरकिनार कर पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को चुनाव मैदान में उतार दिया। कर्मजीत कौर और विक्रमजीत चौधरी पार्टी के इस निर्णय से काफी नाराज थे। दोनों पिछले काफी दिन से लगातार दिल्ली में डेरा जमाए हुए थे।
उनके आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल में जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन उन्होंने भाजपा को चुना। फिलहाल विक्रमजीत चौधरी फिल्लौर से कांग्रेस के विधायक हैं। वह मां के साथ भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं लेकिन माना जा रहा है वह कांग्रेस में रहकर भी चुनाव में पार्टी का साथ नहीं देंगे।
कांग्रेस के साथ चौधरी परिवार की तीन पीढ़ियों का नाता रहा है।
1. मास्टर गुरबंता सिंह ने आजादी के बाद थामा कांग्रेस का हाथ
- चौधरी परिवार में सबसे पहले पूर्व सांसद संतोख चौधरी के पिता मास्टर गुरबंता सिंह वर्ष 1926 से राजनीति में आए थे। वह बड़े शिक्षाविद् और दलित सुधार आंदोलन के चलते दलित समाज की राजनीति का बड़ा चेहरा थे।
- उन्होंने पंजाब के दोआबा क्षेत्रों में कई मंडलों की स्थापना की थी, जहां दलित आबादी का बड़ा हिस्सा था। वर्ष 1927 में मास्टर गुरबंता सिंह ने नेशनल यूनियनिस्ट पार्टी की ओर से जालंधर (आरक्षित सीट) से चुनाव लड़ा और सफल हुए।
- 1945 में उन्हें तत्कालीन पंजाब की सरकार में प्रंधानमंत्री मलिक खिजर हयात तिवाना ने संसदीय सचिव बनाया था। आजादी के बाद मास्टर गुरवंता सिंह कांग्रेस के साथ जुड़ गए। मास्टर गुरबंता सिंह 1962 में करतारपुर विधानसभा क्षेत्र से जीते और प्रताप सिंह कैरों के मंत्रिमंडल में शामिल हुए।
- 1972 में वह निर्विरोध चुनाव जीतकर ज्ञानी जैल के सिंह कैबिनेट मंत्री बने। वह सात बार विधायक बने। फरवरी, 1980 में उनके निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत बेटों जगजीत सिंह चौधरी और संतोख सिंह चौधरी ने संभाली।
ये भी पढ़ें: चन्नी ने कहा- चौधरी परिवार के पूरे इतिहास को ही खत्म कर दिया
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।2. जगजीत सिंह चौधरी पांच बार विधायक रहे
जगजीत सिंह चौधरी वर्ष 1980, 1985, 1992, 1997 और 2002 में करतारपुर विधानसभा क्षेत्र से लगातार पांच बार विधायक चुने गए। इस दौरान वह विभिन्न सरकारों में मंत्री भी बने। उनके बाद करतारपुर हलके की कमान उनके बेटे सुरिंदर चौधरी ने संभाली। वह भी एक बार विधायक रह चुके हैं। हालांकि, अब वह पूरी तरह सक्रिय नहीं हैं।3. संतोख चौधरी मोदी लहर में दो बार रहे सांसद
संतोख चौधरी वर्ष 1992 में पहली बार विधायक बने और फिर कुल तीन बार प्रदेश विधानसभा में चुनकर पहुंचे। वह हमेशा फिल्लौर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते थे। वर्ष 2014 में उन्होंने जालंधर से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। 2019 में वह दूसरी बार सांसद बने। जनवरी 2023 में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान हृदयघात के कारण उनका निधन हो गया।4. विक्रमजीत चौधरी
संतोख चौधरी ने सांसद बनने के बाद फिल्लौर विधानसभा सीट बेटे विक्रमजीत चौधरी के लिए छोड़ दी। वर्तमान में विक्रमजीत फिल्लौर से विधायक हैं। कुल मिलाकर मास्टर गुरबंता सिंह की राजनीतिक विरासत को अब विक्रमजीत चौधरी ही आगे बढ़ा रहे हैं। एक साल में कुछ ऐसे बदले समीकरणजिन रिंकू ने 58 हजार मतों से हराया, उन्हीं की जीत के लिए भाजपा में आई कर्मजीत पूर्व सांसद संतोख चौधरी के निधन के बाद मई 2023 में जालंधर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सुशील कुमार रिंकू (तब आप में) ने कर्मजीत कौर चौधरी को 58 हजार मतों के अंतर से हरा दिया था। उपचुनाव में इन दोनों के बीच मुकाबला हुआ था।एक साल अंदर राजनीतिक समीकरण इतने बदले कि एक-दूसरे के खिलाफ उपचुनाव लड़ने वाले दोनों नेता भाजपा के मंच पर एक साथ हो गए। कर्मजीत कौर और तजिंदर बिट्टू को भाजपा में शामिल करवाने के दौरान सुशील रिंकू भी उनके साथ दिल्ली में उपस्थित थे। उपचुनाव के प्रतिद्वंद्वी अब लोकसभा चुनाव में साथ-साथ है। हालांकि यह समय ही बताएगा कि इस साथ का मतदान के बाद परिणाम क्या आएगा। सुशील कुमार रिंकू और कर्मजीत कौर चौधरी दोनों की पृष्ठभूमि कांग्रेस की रही है। सुशील कुमार रिंकू ने अप्रैल 2023 में कांग्रेस छोड़ आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर ली थी। वे आप की टिकट पर संसदीय उपचुनाव जीतकर सांसद बने। मार्च 2024 में रिंकू ने आम आदमी पार्टी की टिकट को ठुकरा कर भाजपा का दामन थाम लिया। रिंकू जालंधर पश्चिम विधानसभा सीट से 2017 से 22 तक कांग्रेस के विधायक भी रहे हैं।संसदीय उपचुनाव 2023 में किसे कितने वोट मिले थे
नाम | पार्टी | वोट मिले | प्रतिशत |
सुशील कुमार रिंकू | आप | 3,02,279 | 34.05 |
कर्मजीत कौर | कांग्रेस | 2,43,588 | 27.44 |