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कैप्टन विक्रम बत्तरा ने शहादत से पहले कहा था, ये दिल मांगे मोर... पढ़ें भारत के वीर सपूत की कहानी उनके साथी की जुबानी

परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्तरा (Capain Vikram Batra) को अगर कारगिल युद्ध का नायक कहा जाए तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। विक्रम बत्तरा ने लाख रुपये के वेतन वाली नौकरी को ठोकर मारकर भारतीय सेना को चुना था।

By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Sat, 23 Jul 2022 12:34 PM (IST)
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परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्तरा ने कारगिर युद्ध में कई चोटियां फतेह की।
संवाद सहयोगी, घरोटा (पठानकोट)। भारतीय सेना की अद्भुत शौर्य गाथा को दर्शाने वाले कारगिल युद्ध में सैकड़ों वीर जवानों ने बलिदान देकर राष्ट्र की एकता व अखंडता को बरकरार रखा था। कारगिल युद्ध में बहादुरी का परचम फहराने वाले ऐसे ही एक वीर योद्धा हैं गांव घरोटा निवासी वीरचक्र विजेता कैप्टन रघुनाथ सिंह। कारगिल युद्ध की स्मृतियां जहन में आते ही उनकी आंखों से शोले बरसने लगते हैं और साथियों के बलिदान की यादें ताजा होते ही आंखें नम भी हो जाती हैं।

पूरे जोश व जज्बे से लवरेज उस युद्ध के अनुभव साझा करते हुए कैप्टन रघुनाथ सिंह ने बताया- कारगिल युद्ध में सैकड़ों जांबाज सैनिकों ने बलिदान देकर राष्ट्र के गौरव को बढ़ाया था, पर कैप्टन विक्रम बत्तरा को अगर कारगिल युद्ध का नायक कहा जाए तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। विक्रम बत्तरा ने लाख रुपये के वेतन वाली नौकरी को ठोकर मारकर भारतीय सेना को चुना था।

9 सितंबर, 1974 को पालमपुर में जन्मे कैप्टन बत्तरा ने जुलाई 1996 को सीडीएस के जरिये भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश किया था। 1999 को जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ तो 13 जैक राइफल्स यूनिट के कैप्टन विक्रम बत्तरा को सोपोर से कारगिल भेज दिया गया।

कारगिल युद्ध की वीरगाथा बताते रिटा. कैप्टन रघुनाथ सिंह (वीर चक्र)। साथ हैं कुंवर रविंदर विक्की। जागरण

महज 18 महीने की नौकरी के बाद ही कैप्टन विक्रम बत्तरा को कारगिल जाना पड़ा। वह खुद भी उस वक्त बतौर सूबेदार उनके साथ थे। 22 जून 1999 को द्रास सेक्टर की प्वाइंट 5140 चोटी, जिस पर दुश्मन ने कब्जा जमाया था। कैप्टन बत्तरा ने 10 पाक सैनिकों को मारकर उस चोटी पर तिरंगा फहराया। चोटी फतेह करने की जानकारी कैप्टन बत्तरा ने कमांडिंग अफसर को फोन पर देते हुए कहा कि सर अब मुझे दूसरा टास्क दें, क्योंकि ये दिल मांगे मोर।

कैप्टन बत्तरा का यह दिल मांगे मोर का जयघोष सारे देश में गूंज उठा था। 7 जुलाई, 1999 को उन्हें और कैप्टन विक्रम बत्तरा को मस्कोह घाटी की प्वाइंट 4875 की चोटी को दुश्मन से आजाद करवाने का टास्क मिला। इसे भी उन्होंने दुश्मन से आजाद करवा लिया। मिशन लगभग पूरा हो चुका था।

इसी बीच, कैप्टन विक्रम बत्तरा की नजर अपने जूनियर लेफ्टिनेंट नवीन पर पड़ी। उसका पांव दुश्मन के फेंके ग्रनेड से बुरी तरह जख्मी हो गया था। कैप्टन बत्तरा अपने साथी को कंधे पर उठा सुरक्षित जगह पर लेकर जा रहे थे कि तभी पाक सैनिकों ने नजदीक से उन पर हमला बोल दिया। एक गोली उनके सीने को भेदते हुए निकल गई। वह खून से लथपथ थे, मगर उनका हौसला नहीं टूटा तथा साथी को सुरक्षित जगह पर पहुंचाने के बाद पाक सेना के पांच सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। खुद भारत माता का यह लाल राष्ट्र की बलि बेदी पर कुर्बान हो गया।

इस अदम्य साहस और बहादुरी को देखते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति ने कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत वीरता के सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया। कैप्टन बत्तरा का बलिदान भी उनका मनोबल नहीं तोड़ पाया। इसलिए उनकी शहादत का बदला लेने के लिए उन्होंने अपने साथियों सहित रेंगते हुए दुश्मन के काफी करीब जाकर हमला बोल दिया तथा पाक सेना के ग्रुप कमांडर इमित्याज खां समेत 12 पाक सैनिकों को मौत के घाट उतार कर उस बर्फीली चोटी पर भी तिरंगा फहरा कैप्टन बत्तरा की शहादत का बदला ले लिया।

उनकी इस बहादुरी के लिए उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ने वीर चक्र से सम्मानित किया। भारतीय सेना के इतिहास में 13 जैक राइफल्स यूनिट इकलौती ऐसी युनिट है, जिसे कारगिल के आपरेशन में दो परमवीर चक्र, 8 वीर चक्र, 13 सेना मेडल व 30 सीओएस वीरता पदक मिले हैं।

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