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नारी शक्ति को 'नारायणी' बनाते हैं कन्या महाविद्यालय और हंसराज महिला महाविद्यालय

जालंधर स्थित कन्या महाविद्यालय और हंसराज महिला महाविद्यालय ने समाज की सोच बदलकर महिला सशक्तीकरण के कार्य में अहम योगदान दिया है।

By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Sun, 08 Mar 2020 03:41 PM (IST)
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नारी शक्ति को 'नारायणी' बनाते हैं कन्या महाविद्यालय और हंसराज महिला महाविद्यालय
जालंधर [अंकित शर्मा]। जालंधर का नाम भले ही दैत्यराज जलंधर के नाम पर पड़ा है, लेकिन इसे सशक्त पहचान नारी शक्ति से ही मिली है। दैत्यराज जलंधर की पत्नी वृंदा के सतीत्व की शक्ति ही थी कि भगवान विष्णु को छल करने पर मजबूर होना पड़ा। आज भी नारी शक्ति जालंधर को पहचान दिला रही है। नारी शक्ति को दीक्षित और शिक्षित करने की भूमिका दो शैक्षणिक संस्थान कन्या महाविद्यालय और हंसराज महिला महाविद्यालय बाखूबी निभा रहे हैं।

एक समय था कि महिलाओं को घर से बिना बताए निकलने तक की इजाजत तक नहीं थी। उस दौर में महिलाओं को शिक्षा दिलाना दूर की बात थी। लड़कों के लिए उच्च शिक्षा के लिए तो शिक्षण संस्थान तो थे पर महिलाओं की शिक्षा की तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया था। ऐसे में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए कन्या महाविद्यालय और हंसराज महिला महाविद्यालय की स्थापना हुई। दोनों संस्थानों ने समाज की सोच बदलकर महिला सशक्तीकरण के कार्य में अहम योगदान दिया। आज भी ये दोनों संस्थान महिलाओं में ज्ञान का उजाला फैला रहे हैं। सामान्य शिक्षा के साथ व्यवसायिक शिक्षा देकर लड़कियों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के काबिल बना रहे हैं।

131 साल पुराना है कन्या महाविद्यालय

कन्या महाविद्यालय का इतिहास 131 साल पुराना है। वर्ष 1886 में लड़कियों को शिक्षित और सबल बनाने की सोच लेकर ही लाला देवराज ने केएमवी की नींव रखी थी। देवराज सोंधी परिवार के दूसरे नंबर के बेटे थे। शुरू से ही शरीर से कमजोर होने के कारण मां से ज्यादा प्यार और लगाव मिला। मां अपने भीतर बौद्धिकता व संवेदनशीलता समेटे हुई थीं। यही वजह थी लाला देवराज ने भाइयों की तरह बैरिस्टर बनने की जगह लड़कियों को सबल बनाने का रास्ता चुना। दरअसल मुंशी लाल,  जोकि बाद में स्वामी श्रद्धानंद के नाम से जाने गए, की बेटी वेद को पढ़ाने की बात चली। उनका दाखिला मिशन स्कूल में करवाया गया, लेकिन लाला देवराज, जोकि वेद के मामा थे, को यह पसंद नहीं आया कि उनकी भांजी हिंदी नहीं सीख रही बल्कि अंग्रेजी में अंग्रेजों का इतिहास पढ़ रही है। यही कारण है कि लाला देवराज ने लड़कियों को शिक्षा दिलाने के लिए पाठशाला बनाने का फैसला लिया।

हल्दी घाटी की मिट्टी से रखी थी केएमवी की नींव

लाला देवराज ने किला मोहल्ला में तीन रुपये में एक कमरा किराये पर लेकर पढ़ाना शुरू किया। बेटियों को शिक्षित करने की बात आग की तरह फैल गई थी। अंग्रेजी हुकुमत के अफसर भी आए और ग्रांट देने की पेशकश की। लाला जी ने अंग्रेज सरकार से ग्रांट लेना स्वीकार नहीं किया। लड़कियां मजबूत हो, इसलिए हल्दी घाटी की मिट्टी से केएमवी की नींव रखी थी।

वर्ष 1898 में केएमवी के संस्थापक लाला देवराज छात्राओं के साथ।

केएमवी की प्रिंसिपल और उनका कार्यकाल

-कुमारी लज्यावती : 1935 से 1965 तक

-डॉ. राम प्यारी शास्त्री : 1965 से 1966 तक

-शादी राम जोशी : 1966 से 1967 तक

-कुमारी कमला खन्ना : 1967 से 1969 तक

-कुमारी कृष्णा पसरीचा :  1970 से 1977 तक

-डॉ. कमला : एक जनवरी 1978 से 13 सितंबर 1978

-संतोष पुरी : 1978 से 1986

-डॉ. मंजू मेहता : 1986 से 1993 तक

-डॉ. के रत्न : 1993 से 2000

-डॉ. ऋता बावा : 2000 से 2008 तक।

-डॉ. अतिमा शर्मा द्विवेदी : 2008 से अब तक।

कॉलेज की विख्यात पूर्व छात्राएं

-सरला ग्रेवाल : दूसरी महिला आइएएस बनीं और मध्यप्रदेश की पहली महिला गवर्नर भी रहीं।

-डॉ. नवजोत ढिल्लों : नेशनल न्यूज डायरेक्टर एंड टॉक शो होस्ट कनाडा।

-भावना गर्ग : डिप्टी डायरेक्टर जनरल यूआइडीएआइ, चंडीगढ़।

-सुमिता डावरा : प्रिंसिपल सेक्रेटरी एचई डिपार्टमेंट आंध्र प्रदेश।

-वानी गोपाल शर्मा : एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज।

-अराधना बेदी : स्क्वाड्रन लीडर भारतीय वायु सेना।

-हरमनप्रीत कौर : क्रिकेटर

लाहौर में हुई थी एचएमवी की स्थापना

हंसराज महिला महाविद्यालय की स्थापना महात्मा हंसराज ने 1927 में लाहौर (अब पाकिस्तान) में की थी। देश के विभाजन के बाद स्कूल 1948 में आर्य समाज विक्रमपुरा में शिफ्ट हुआ। उस समय तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने सात नवंबर 1959 को वर्कशाप चौक के पास कैंपस का उद्घाटन किया। मौजूदा समय में कॉलेज यहीं चल रहा है। वर्ष 1886 में डीएवी स्कूल की स्थापना हुई तो सवाल उठा कि पढ़ाएगा कौन। महात्मा हंसराज बीए पास थे। उन्होंने अपना जीवन संस्थान के नाम समर्पित कर दिया और कहा कि वे यहां सेवा करेंगे और उसके बदले उन्हें कुछ नहीं चाहिए। बकौल, प्रिंसिपल डॉ. अजय सरीन वर्षों बाद भी कॉलेज अपनी पुरानी परपंरा को बरकरार रखे हुए हैं। कॉलेज को 2013 में नैक से 3.83 स्कोर मिला। यह उत्तर भारत का पहला कॉलेज है, जिसे यूजीसी ने कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस स्टेट्स दिया गया। मौजूदा समय में यहां करीब पांच हजार छात्राएं शिक्षा ले रही हैं।

वर्ष 1959 में एचएमवी की छात्राओं के साथ तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन।

लड़कियों को सबल बनाना लक्ष्य: डॉ. सरीन

एचएमवी की प्रिंसिपल डॉ. अजय सरीन कहती हैं कि लड़कियों को शिक्षित कर उन्हें हर क्षेत्र में सबल बनाना उनका लक्ष्य है। इस लक्ष्य पर पूरे मनोयोग से काम कर रहे हैं।

प्रिंसिपल और उनका कार्यकाल

-प्रेमवती थापर : 1928 से 1947 तक।

-विद्यावती आनंद : 1948 से 1977 तक।

-कांता सरीन : 1977 से 1986 तक।

-पूरन प्रभा शर्मा :1986 से 2007 तक।

-जुनेश काकरिया 2007 से 2010 तक।

-डॉ. रेखा कालिया भारद्वाज : 2010 से 2016 तक।

-डॉ. अजय सरीन : 2016 से अब तक

कॉलेज की विख्यात पूर्व छात्राएं

-पूर्व मुख्यमंत्री पंजाब प्रकाश सिंह बादल की पत्नी स्व. सुरिंदर कौर बादल। 

-आइएएस उपमा चौधरी।

-चावला नर्सिंग होम एंड मेटनिटी अस्पताल की डॉ. सुषमा चावला।

-भारतीय बॉलीवाल टीम की पूर्व कप्तान और फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल मिल्खा सिंह।

-वानी गोपाल शर्मा, जज।

-गायिका और अभिनेत्री निमरत खैहरा।

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