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Lok Sabha Election: BJP की कैंपनिंग के आगे फीका पड़ा किसान आंदोलन? पंजाब में कैसा रहा राजनीतिक दलों का चुनाव प्रचार

पंजाब की 13 लोकसभा संसदीय सीटों पर आम चुनाव होना है। ऐसे में राजनीतिक पार्टियों ने जमकर प्रचार-प्रसार किया। पंजाब में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चार रैलियां कीं। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा राजनाथ सिंह समेत छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली। भाजपा की रणनीति पंजाब में ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने की है।

By Inderpreet Singh Edited By: Prince Sharma Updated: Fri, 31 May 2024 04:27 PM (IST)
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Lok Sabha Election: BJP की कैंपनिंग के आगे फीका पड़ा किसान आंदोलन?
इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। भाजपा पंजाब में पहली बार 13 लोक सभा सीटों को लड़ने के लिए उतरी। पार्टी के पास कुछ सीटों पर चेहरे ही नहीं। दूसरी तरफ किसान संगठन भाजपा उम्मीदवारों का विरोध कर रहे थे। जिसका सबसे बड़ा शिकार हुए फरीदकोट के उम्मीदवार हंस राज हंस और पटियाला की परनीत कौर।

भाजपा अपनी रणनीति पर चलती रही। 20 मई के करीब भाजपा के प्रचारकों ने पंजाब (Punjab Lok Sabha Election) में डेरा जमाना शुरू कर दिया। एक के बाद एक स्टार प्रचारकों के चुनाव मैदान में आने से तस्वीर भी बदलने लगी। वहीं, 31 दिनों तक रेलवे ट्रैक रोकने के कारण किसान संगठन भी आम लोगों के निशाने पर आ गए।

किसान संगठन अलग-थलग पड़ने लगे हैं

एक तरफ भाजपा का प्रचार जोर पकड़ने लगा और किसान संगठन अलग-थलग पड़ने लगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चार रैलियां की। भाजपा की रणनीति रही कि दूसरी पार्टी के नेताओं को अपने दल में शामिल करवाओ और आक्रामक प्रचार करो और किसी भी प्रत्याशी को अकेला नहीं रहने दो।

भाजपा की रणनीति अभी तक कारगर भी रही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह समेत छह राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने चुनाव प्रचार की कमान संभाली। भाजपा नेताओं ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पर लगातार हमले किए।

जिसके कारण भाजपा लगभग सभी सीटों पर चर्चा में आ गई। भाजपा की रणनीति पंजाब में ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने के साथ-साथ 2027 के विधान सभा चुनाव में अपना आधार बढ़ाना भी रहा।

राहुल के इर्द-गिर्द घूमती रही कांग्रेस

वैसे तो कांग्रेस में स्टार प्रचारकों की कमी नहीं है लेकिन पंजाब में कांग्रेस के प्रचार का धुरा राहुल गांधी ही रहे। हालांकि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने फरीदकोट में पार्टी प्रत्याशी के लिए प्रचार किया और अमृतसर में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। प्रियंका गांधी, सचिन पायलट आदि नेता भी पंजाब में आए लेकिन कांग्रेस की रणनीति राहुल पर ही फोकस करने की रही।

कांग्रेस के प्रचार का तरीका प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी बात को रखो और राहुल रैलियां कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचेंगे। राहुल की रणनीति संविधान को बचाने के अलावा अग्निवीर योजना पर ज्यादा रहा। राहुल और मल्लिकार्जुन इंडी गठबंधन के घटक दल आप पर हमले करने से कतराते रहे।

वहीं, उन्होंने इस बात पर ज्यादा जोर दिया कि भाजपा अगर दोबारा सत्ता में आती है तो संविधान बदल देगी। कांग्रेस के नेताओं ने आप सरकार की बजाए भाजपा पर ही निशाना साधा। बड़े स्टार प्रचारकों के बावजूद कांग्रेस के बड़े चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी, सुखजिंदर सिंह रंधावा, सुखपाल खेहरा की सीटों पर किसी राष्ट्रीय नेता ने कदम नहीं रखा।

रोड शो को बनाई ताकत

सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की चुनाव प्रचार की रणनीति प्रमुख रूप से छोटी बैठकों व रोड पर केंद्रित रही। पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल हो या मुख्यमंत्री भगवंत मान सभी ने रोड शो पर ज्यादा भरोसा जताया। पंजाब में अरविंद केजरीवाल कांग्रेस पर सीधा हमला करने से कतराते रहे तो भाजपा के बयानों को उन्होंने हथियार बनाने में कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी।

आप ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान कि पंजाब में भगवंत मान की सरकार लंबा चलने वाले नहीं है, को कैश करने में जुटी रही। केजरीवाल और भगवंत मान ने तो यहां तक कह दिया भाजपा चुनी हुई व संवैधानिक सरकार को तोड़ना चाहती है।

43 हजार नौकरियां और 600 यूनिट बिजली फ्री

केजरीवाल बीच-बीच में भावनात्मक अपील भी करते रहे कि अगर केंद्र में सरकार बदल गई तो उन्हें जेल नहीं जाना पड़ेगा।

दोनों नेताओं ने पंजाब में दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर जहां रोड शो किया तो 43000 सरकार नौकरियां व 600 यूनिट फ्री बिजली को आप ने हरेक जगह पर कैश करने की कोशिश की। अंतिम समय में संजय सिंह और राघव चड्ढा ने भी रोड शो किए।

पंथ-पंजाबियत की राह पर टिके रहे सुखबीर

देश की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल के प्रचार की पूरी कमान सुखबीर बादल के हाथों में रही। भाजपा के साथ गठबंधन नहीं होने का नुकसान भी शिअद को उठाना पड़ा। क्योंकि उनके प्रत्याशियों के प्रचार के लिए सुखबीर को छोड़ कर कोई भी बड़ा चेहरा नहीं था।

23 दिनों तक चले चुनाव प्रचार के दौरान सुखबीर बादल पंथ पंजाबियत और शिरोमणि अकाली दल की सरकार के दौरान राज्य में हुए विकास कार्यों के मुद्दे को उठाते रहे।

सुखबीर ने अपने चुनाव प्रचार में 1984 सिख कत्लेआम और एक जून को होने वाले मतदान, जिस दिन अकाल तख्त पर सैन्य कार्रवाई हुई थी के मुद्दे को उठाकर सिखों से भावनात्मक रिश्ता जोड़ने की कोशिश करते रहे। चुनाव के दौरान उन्हें अपने बहनोई व पूर्व मंत्री आदेश प्रताप कैरो व डेरा बाबा नानक के रवि करण सिंह काहलो को पार्टी से निष्कासित करना पड़ा।

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