Lok Sabha Election 2024: पंजाब की इस जगह से है BSP का बड़ा गहरा नाता, इन पांच नेताओं ने शुरू किया था यहां से करियर
Lok Sabha Election 2024 पंजाब की राजनीति में दोआबा सीट बहुत मायने रखती है। विधानसभा चुनाव के समय पार्टियों का इस पर विशेष जोर रहता था। वहीं यह सीट बसपा के लिए बहुत ही मायने रखती है। अनुसूचित जाति तथा पिछड़ा वर्ग की आवाज को बुलंद कर इस क्षेत्र में एक समय बहुजन समाज पार्टी ने राजनीतिक प्रभाव बनाया था।
मनुपाल शर्मा , जालंधर। दोआबा की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग की आवाज को बुलंद कर इस क्षेत्र में एक समय बसपा ने राजनीतिक प्रभाव बनाया था। वर्ष 1996 के बाद से पंजाब में राजनीतिक समीकरण बदलते गए और बसपा का ग्राफ गिरता गया। वह अपने नेताओं को नाम और मुकाम नहीं दे पाई।
इन पांच नेताओं ने यहां से शुरू किया करियर
दोआबा की राजनीति में इस समय पांच से छह नेता ऐसे हैं, जिनकी राजनीतिक शुरुआत बसपा से हुई, लेकिन उन्हें मुकाम बसपा से अलग होकर दूसरी पार्टियों में शामिल होने पर मिला। इनमें आदमपुर के वर्तमान विधायक सुखविंदर कोटली, फिल्लौर से बलदेव खैहरा, नवांशहर से सुखविंदर सुक्खी और अविनाश चंद्र के नाम शामिल हैं। कोटली आदमपुर से कांग्रेस के विधायक हैं।
डॉ. सुखविंदर सुखी अकाली दल में मजबूती के साथ जीत हासिल करने में सफल रहे। बलदेव खैहरा फिल्लौर से विधायक बने थे। अविनाश चंद्र भी फिल्लौर के अलावा करतारपुर से भी विधायक बनने में सफल रहे थे। वर्तमान समय में प्रदेश की आप सरकार के भी लगभग आधा दर्जन विधायक ऐसे हैं, जो पहले बसपा से जुड़े रहे थे।
अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से अधिक
पंजाब की जनसंख्या में अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से अधिक मानी जाती है। वहीं, दोआबा क्षेत्र में यह प्रतिशत 42 प्रतिशत तक पहुंच जाती है। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने फिल्लौर आरक्षित सीट जीती थी। वर्ष 1992 के विधानसभा चुनाव में उसने दोआबा क्षेत्र से छह सीटें जीती थीं।
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वर्ष 1996 के संसदीय चुनाव में वह फिल्लौर, होशियारपुर और फिरोजपुर की तीन संसदीय सीटें जीती थीं। बसपा के संस्थापक कांशीराम ने 1996 में होशियारपुर से 11वीं लोकसभा का चुनाव जीता और दूसरी बार लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद पंजाब में बसपा का आधार खिसकता गया।
25 वर्ष में बसपा का केवल एक विधायक
पिछले 25 वर्ष में पहला मौका था, जब 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा का केवल एक विधायक बन पाया। यह हाल तब था, जब बसपा ने शिअद के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बसपा छोड़कर दूसरी पार्टियों में गए कुछ नेताओं का नाम फिर से दावेदारों की सूची में शामिल हैं। इन नेताओं का कहना है कि बसपा के नेताओं ने सिद्धांत की दिशा में चलना छोड़ दिया है।
वर्ष 2022 में बसपा ने शिअद के साथ समझौता किया, लेकिन एक दर्जन के अधिक सीटों पर अकालियों को बसपा में शामिल कर उन्हें टिकट दिया गया। बसपा ने अपने प्रभावशाली नेताओं को नजरअंदाज किया। खामियाजा उसे आज भुगतना पड़ रहा है।
आदमपुर से कांग्रेस के विधायक सुखविंदर कोटली का कहना है कि बसपा के पास एक बार फिर मौका है, जब वह कुछ राज्यों में अपनी स्थिति मजबूत कर सकती है। उसे अपने पुराने प्रभावशाली नेताओं को एकजुट करना होगा और लोकसभा चुनाव में अपनी मजबूत राजनीतिक पकड़ दिखानी होगी।