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जालंधर में 30 हजार से ज्यादा दुकानें व इंडस्ट्रीयल यूनिट, लाइसेंस सिर्फ 10 हजार के पास

जालंधर में जितनी इंडस्ट्री और दुकानें हैं उसके हिसाब से नगर निगम को हर साल 30 हजार से ज्यादा लाइसेंस जारी करने चाहिए लेकिन यह आंकड़ा कई साल से 10 हजार के आसपास ही घूम रहा है। आइए जानते हैं इसके पीछे क्या कारण है।

By Edited By: Updated: Thu, 19 May 2022 07:11 AM (IST)
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लाइसेंस फीस ज्यादा नहीं है लेकिन निगम के पास स्टाफ की कमी है।
जागरण संवाददाता, जालंधर। नगर निगम की महत्वपूर्ण शाखाओं में से एक लाइसेंस शाखा का काम स्टाफ की कमी के कारण बुरी तरह से प्रभावित है। खास तौर पर नए लाइसेंस बनाने पर फोकस नहीं रहा। शहर में जितनी इंडस्ट्री और दुकानें हैं उसके हिसाब से नगर निगम को हर साल 30 हजार से ज्यादा लाइसेंस जारी करने चाहिए लेकिन यह आंकड़ा कई साल से 10 हजार के आसपास ही घूम रहा है। लाइसेंस फीस ज्यादा नहीं है लेकिन इसकी प्रक्रिया और निगम के पास स्टाफ की कमी ने लाइसेंस अब गैर-जरूरी बनकर रह गया है। यह लाइसेंस किसी भी व्यक्ति को शहर में कारोबार करने की अनुमति देता है।

लाइसेंस बनाने की फीस विभिन्न कैटेगरी में 150 से 500 रुपये के बीच है लेकिन बड़ी गिनती में दुकानदार लाइसेंस नहीं बनवा रहे हैं और खास तौर पर शहर के बाहरी इलाकों में तो बिना निगम के लाइसेंस के ही दुकानें खुली हुई हैं। सर्विस प्रोवाइडर को छोड़कर सभी के लिए यह लाइसेंस जरूरी है। इसी के आधार पर आप दुकान खोल सकते हो। निगम कर्मचारी भी पिछले कुछ सालों से पहले से ही पंजीकृत कारोबारियों के लाइसेंस का नवीनीकरण करके काम पूरा कर लेते हैं।

इसमें बड़े कारोबारी और इंडस्ट्री को सरकारी योजनाओं के लिए लाइसेंस की जरूरत रहती है और इस वजह से निगम की इनके लिए लाइसेंस बनाना जरूरी हो जाता है। बाहरी इलाकों और कालोनियों में नई खुल रहीं दुकानों में से ज्यादातर के पास लाइसेंस नहीं हैं। निगम के पास जो करीब 10,000 यूनिट लाइसेंस के लिए रजिस्टर्ड हैं उनमें 5000 से ज्यादा तो सिर्फ इंडस्ट्रियल सेक्टर से ही हैं। इसके बाद बड़े शोरूम और बड़े कारोबारी शामिल हैं।

कोरोना व लाकडाउन जैसी इमरजेंसी में काम आता है डाटा

नगर निगम को लाइसेंस बनाने से सालाना कोई ज्यादा बढ़ा रेवेन्यू प्राप्त नहीं होता है लेकिन इससे नगर निगम के पास शहर में इंडस्ट्री, ट्रेडर्स और हर कैटेगरी के दुकानदारों का विवरण इकट्ठा हो जाता है। यह डाटा इमरजेंसी में काम आता है। उदाहरण के तौर पर कोविड-19 के कारण हुए लाकडाउन में यह डाटा ज्यादा कारगर साबित हो सकता था। अगर निगम के पास आनलाइन रिकॉर्ड मौजूद रहता कि किस किस इलाके में किस-किस तरह के दुकानें हैं और इनसे लोगों को किस तरह सेवाएं दी जा सकती हैं। मेडिकल स्टोर और मिल्क बार के डाटा को इस दौरान बेहतर ढंग से इस्तेमाल भी किया गया था।

निगम इसलिए नहीं करता सख्ती

- निगम के आठ जोन कार्यालय है। पर किसी भी जोन कार्यालय में लाइसेंस के लिए आवेदन करने की सुविधा ही नहीं है।

-निगम की लाइसेंस शाखा में लाइसेंस बनाने और रिन्यू करने के लिए तीन कर्मचारियों का स्टाफ है। यह लाइसेंस आनलाइन भी बनते हैं लेकिन प्रक्रिया जटिल होने के कारण 90 प्रतिशत काम मैनुअल ही होते है।

-बड़ी गिनती में लाइसेंस रिन्यू करने का काम डोर टू डोर किया जा रहा है लेकिन किसी कर्मचारियों के लिए पूरे शहर को कवर करना संभव नहीं है।

-नई खुल रही छोटी-छोटी दुकानों के लाइसेंस बनाने के लिए पूरी जांच प्रक्रिया को पूरा करने में एक दिन लग जाता है। इस कारण निगम भी परवाह नहीं करता।

-लाइसेंस लेने वाले को इमारत के मालिकाना हक या किराए का एग्रीमेंट देना होता है। अधिकतर लोग देने से बचते है। निगम भी नहीं मांगता या कार्रवाई करता।

यह भी एक बड़ा कारण- अवैध इमारतों व कालोनियों में लाइसेंस नहीं

नगर निगम के लाइसेंस लेने के लिए आवेदन कम होने का एक बड़ा कारण यह भी है कि जो भी लाइसेंस जारी किए जाने होते हैं वह निगम की मंजूरशुदा इमारतों के लिए ही होते हैं। जब भी लाइसेंस ब्रांच के पास किसी नए लाइसेंस के लिए आवेदन आता है तो लाइसेंस ब्रांच उसे बिल्डिंग ब्रांच के पास जांच के लिए भेजती है कि जिस इमारत में काम के लिए लाइसेंस मांगा गया है, क्या वह इमारत नगर निगम की मंजूरी से बनी है।

इस प्रक्रिया की भी अनदेखी की जाती है क्योंकि कामर्शियल इमारतों व दुकानों के निर्माण में नियमों की खूब अवहेलना की जाती है। नई कालोनियों में तो बिना मंजूरी के ही दुकानें बन रही हैं। पुराने लाइसेंस को रिन्यू करने में कोई दिक्कत नहीं आती क्योंकि इनमें ज्यादातर इमारतें नए बिल्डिंग बायलाज के लागू होने से पहले ही बनी हैं।

स्टाफ बढ़ाने की डिमांड की है : सुपरिंटेंडेंट

नगर निगम की लाइसेंस शाखा के सुपरिंटेंडेंट नीरज शर्मा का कहना है कि ब्रांच में स्टाफ की काफी कमी है। इस वजह से काम प्रभावित रहा है। उन्होंने हाल ही में ब्रांच का चार्ज लिया है और निगम प्रशासन से अपील की है कि लाइसेंस शाखा में स्टाफ बढ़ाया जाए।आने वाले समय में लाइसेंस की गिनती भी बढ़ेगी और निगम के पास पूरे शहर का डाटा मौजूद रहेगा।

इधर चलाया डंडा, प्रापर्टी टैक्स डिफॉल्टरों की चार इमारतें सील

नगर निगम की प्रापर्टी टैक्स ब्रांच ने बुधवार को छोटी बारादरी में चार प्रापर्टी टैक्स डिफाल्टरों पर कार्रवाई की है। इन चार इमारतों को सील कर दिया है। इन इमारतों में शराब ठेका, अहाता, जिम, इमीग्रेशन कार्यालय समेत कई तरह के कारोबार चल रहे हैं। ब्रांच के सुपरिंटेंडेंट महीप सरीन और भूपिंदर सिंह बड़िंग ने टीम के साथ बुधवार सुबह कार्रवाई की।

महीप सरीन ने कहा कि निगम कमिश्नर दीपशिखा शर्मा के सख्त निर्देश हैं कि निगम को टैक्स नहीं देने वाले इमारत मालिकों पर कार्रवाई की जाए। आमतौर पर नगर निगम ऐसी कार्रवाई अगस्त, सितंबर और वित्तीय साल खत्म होने से पहले ही मार्च के महीने में करता है लेकिन इस बार मई महीने में ही निगम ने सख्त तेवर अपना लिए हैं। सुपरिंटेंडेंट ने कहा कि जब तक इन इमारतों के मालिक प्रापर्टी टैक्स जमा नहीं करवाते हैं तब तक इन इमारतों की सील नहीं खोली जाएगी। प्रापर्टी टैक्स ब्रांच ने 1000 डिफाल्टर इमारत मालिकों को टैक्स जमा करवाने के लिए नोटिस पहले से जारी कर रखे हैं।

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