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Jallianwala Bagh : 1960 में ही बदल गया था बाग की प्रवेश गली का मूल स्वरूप, नए रंगरूप पर अब क्‍यों सवाल

Jallianwala Bagh जलियांवाला बाग के नवीनीकरण और उसको नया रूप रंग देने पर कांग्रेस के पूर्व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने सवाल उठाए हैं। हकीकत यह है कि जलियांवाला बाग की प्रवेश गली का मूल स्‍वरूप 1960 में ही बदल गया था। अब इसे अधिक आकर्षक रूप दिया गया है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Wed, 01 Sep 2021 01:08 PM (IST)
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जलियांवाला बाग की प्रवेश गली का मूल स्‍वरूप और 1960 में बदला रूवरूप।
जालंधर, जेएनएन। Jallianwala Bagh: जलियांवाला बाग में हाल ही में केंद्र सरकार की ओर से करवाए गए नवीनीकरण के काम के बाद बाग की प्रवेश गली के स्वरूप में बदलाव को लेकर बहस छिड़ गई है, परंतु सच्चाई यह है इस गली का मूल स्वरूप करीब 61 साल पहले ही बदल दिया गया था। अब तो केवल बदले हुए स्वरूप को नया रूप दिया गया है। पूरे मामला कांग्रेस के पूर्व राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी के ट्वीट से गर्माया है, हालांकि उनको अपनी ही पार्टी के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह का साथ नहीं मिला है। जानकारों का कहना है कि सवाल उठता है कि जब बदलाव पहले भी हुए थे ताे अब यह मुद्दा क्‍यों उठाया गया है।

जलियांवाला बाग की प्रवेश गली में शहीदों भित्तिचित्र लगाने का हो रहा विरोध

देश की आजादी के बाद जलियांवाला बाग ट्रस्ट की ओर से 1957 में पहली बार रेनोवेशन का काम शुरू किया गया था। इतिहास व जलियांवाला बाग की जानकारी रखने वालों के अनुसार 1960 में जब रेनोवेशन का काम पूरा हुआ तो बाग की प्रवेश गली का मूल स्वरूप बदल चुका था। इसके बाद जलियांवाला बाग जाने वाले लोग लगातार उस बदले हुए स्वरूप को देखते आए हैं। जानकारों के अनुसार जिन लोगों ने प्रवेश गली का मौजूदा स्वरूप 1960 के बाद देखा है उन्हें यही लगता है कि यह प्रवेश गली 1919 नरसंहार के समय भी ऐसी ही थी, जबकि ऐसा नहीं है।

अब प्रवेश गली को यह रूप दिया गया है। (जागरण)

1960 में पहली बार रेनोवोशन का काम हुआ तो मूल स्वरूप तभी बदल गया था

भाजपा के राज्यसभा सदस्य और जलियांवाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट के ट्रस्टी श्वेत मलिक ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से करवाए गए नवीनीकरण के दौरान कोई ऐतिहासिक महत्व से छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया गया है। अगर किसी के पास इसका कोई साक्ष्य है तो उसे सामने लाना चाहिए।

1944 में भी बाग में चूने और ईंट की दीवारें थीं

पूर्व सैन्य अधिकारी, पर्यावरणविद और लेखक पीएस भट्टी का कहना है कि वह 1944 में बाग में गए थे तो वहां पर कुछ भी नहीं था। केवल चूने व ईंट की दीवारें थीं और शहीदी कुआं था। आजादी के बाद बाग की बागडोर संभालने वाली कांग्रेस ने 1957 में इसकी रेनोवेशन का काम शुरू करवाया, जो 1960 तक चला। 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इसका उद्घाटन कर इसे जनता को समíपत किया। उस समय भी बाग की सूरत बदली थी और अब भी बदली है।

फोटो गैलरी को भी सुंदर रूपरंग दिया गया है। (जागरण)

केंद्र ने अब 20 करोड़ रुपये किए खर्च

जलियांवाला नरसंहार के 100 साल पूरे होने पर बाग के संरक्षण और नवीनीकरण के लिए केंद्र सरकार ने 20 करोड़ रुपये की परियोजना को नेशनल इंप्लीमेंटेशन कमेटी ने जून 2019 में मंजूरी दी थी। इस सलाहकार कमेटी में आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया और नेशनल बिल्डिंग्स कंट्रक्शन कारपोरेशन लिमिटेड के अलावा संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे, जिन्होंने एक टेंडर जारी किया और परियोजना पर काम करने का जिम्मा अहमदाबाद की वामा कम्युनिकेशंस को दिया गया।

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अब ये काम करवाए गए -

  • लाइट एंड साउंड के साथ डिजिटल डाक्यूमेंट्री तैयार की गई। यहां 80 लोग एक साथ बैठकर इसे देख सकते हैं।
  • शहीदी कुएं के इर्द-गिर्द गैलरी बनाई गई है।
  • सभी गैलरियों को पूरी तरह वातानुकूलित बनाया गया है।
  • दीवार पर गोलियों के निशानों को सुरक्षित किया गया है, ताकि कई सौ साल तक इन यादगार को क्षति न पहुंचे।
  • नरसंहार के लिए जिस गली से अंग्रेज बाग में घुसे थे वहां शहीदों के बुत बनाए गए हैं, ताकि लोगों को गली से शहीदों की शहादत के बारे में पता चल सके।
  • नए वाशरूम और पीने के पानी के नए प्वाइंट बनाए गए हैं।
  • पूरे बाग में सुंदर लाइटिंग की गई है।
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