अपनी प्रजा पर जान छिड़कते थे महाराजा रंजीत सिंह, न्यायप्रियता के कलाकार भी कायल
27 जून को महाराज रंजीत सिंह की पुण्यतिथि है। पंजाब के इस आखिरी राजा को उनकी धर्मनिरपेक्षता के लिए लोग आज भी याद करते हैं।
जालंधर [वंदना वालिया बाली]। शेर-ए-पंजाब महाराजा रंजीत सिंह एक महान योद्धा होने के साथ-साथ न्यायप्रिय राजा भी थे। वह अपनी प्रजा पर जान छिड़कते थे। पंजाब के इस आखिरी राजा को उनकी धर्मनिरपेक्षता के लिए लोग आज भी याद करते हैं। इनके अनेक गुणों के कारण कलाकार सदियों से इनके कायल रहे हैं और आज भी हैं। इस शूरवीर की पुण्य तिथि आज यानी 27 जून को है।
महाराजा रंजीत सिंह पर 40 पेंटिंग्स की सीरीज बनाई
बकौल गुरप्रीत सिंह, उदाहरण के लिए महाराज के सिंहासन पर बैठ इस चित्र के बैकड्राप में मैंने उनके शेर-ए-पंजाब व्यक्तित्व को भी दर्शाया है और पंज-आब के दरियाओं से पार खैबर पास तक फैले उनके साम्राज्य को भी। इसी प्रकार दरबार साहिब में माथा टेकने के महाराजा रंजीत सिंह के चित्र में मैंने 1854 में कलाकार विलियम कारपेंटर द्वारा बनाए एक चित्र के बैकड्रॉप में बनी बारीकियों को अपनाया है।
एक साल लगा दरबार का दृश्य कढ़ाई कर के बनाने में
सिलाई मशीन की कढ़ाई से चित्र बनाने वाले विश्व के एकमात्र कलाकार हैं पटियाला के अरुण बजाज। उन्होंने महीन रेशमी धागों से मशीन की कढ़ाई कर चार फीट बाय दो फीट की एक कलाकृति बनाई हैं, जिसमें महाराजा रंजीत सिंह का पूरा दरबार दिखाया गया है।
वह बताते हैं कि ‘मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूं लेकिन महाराजा रंजीत सिंह के बारे में जानने की इच्छा ऐसी जगी कि मैंने उनकी जीवनी पढ़ी। उनका छोटी उम्र में राज संभालना और राज्य की सीमाओं का विस्तार करना मुझे प्रेरक लगा। फिर मुझे लाहौर के म्यूजियम में लगी उनके दरबार की पेंटिंग के बारे में पता लगा तो मैंने विशेष रूप से उसकी फोटो मंगवाई। वहां दो पेंटिंग्स हैं। एक में अधूरा दरबार है व दूसरी में पूरा। मैंने ऑगस्त स्कोफत नामक हंगरी के कलाकार द्वारा बनाई पूरे दरबार की पेंटिंग की फोटो से अधिकांश तथ्य लेते हुए मशीन की कढ़ाई से इसे बनाया है। इसे पूरा करने में मुझे एक साल का समय लगा।’ वह बताते हैं कि चित्र में वह एक लाल कुर्सी पर बैठ कर आसमान के नीचे खुले दरबार में जनता से रूबरू हैं। आम लोगों के अलावा जानवरों से उनका प्रेम भी इस चित्र में स्पष्ट दिखता है।
कलाकार गगनदीप कौर और गुरप्रीत सिंह।
बारीकी से स्टडी कर बनाते हैं बुत
मोहाली के महाराजा रंजीत सिंह आर्म्ड फोर्सिस प्रेपरेटरी इंस्टीट्यूट में लगी भव्य प्रतिमा हो या इटली के म्यूजियम में शेर-ए-पंजाब के दरबार के इतालवी अफसर जीन बैप्टिस्ट वेंचुरा को उनके दरबार में दर्शाती म्यूरल या फिर कनाडा के मिस्सीसागा के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में लगा महाराजा रंजीत सिंह का बुत, सभी की रचना मोहाली के गैरी आर्ट्स में हुई है। यहां की मालिक व कलाकार गगनदीप कौर थिंड के अनुसार महाराजा रंजीत सिंह पंजाब की गौरव गाथा दर्शाने के लिए श्रेष्ठ उदाहरण हैं। शायद यही कारण है कि हमारे पास उनकी प्रतिमाओं व म्यूरल्स के अनेक ऑर्डर आते हैं। इन्हें तैयार करते हुए छोटी से छोटी बारीकियों पर हम काम करते हैं। जैसे उस महान योद्धा के चेहरे के हाव-भाव कैसे थे? उनके सिंहासन की नक्काशी कैसी थी?
गगनदीप कौर थिंड ने इसके लिए अनेक पुस्तकों तथा इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी का अध्ययन किया है। वह उन्हीं के अनुसार काम करती हैं। एक तथ्य यह भी है कि सिख गुरुओं को कला में हम तराश नहीं सकते, लेकिन शेर-ए-पंजाब के सिंहासन की भव्यता, उनके राजसी लिबास व रहन-सहन में बहुत कुछ है, जिसे कलाकार अपनी कला में अपनाने को ललचा जाता है। इनकी लोकप्रियता कुछ ऐसी है कि राजपुरा में बने हवेली रेस्त्रां में महाराजा रंजीत सिंह का ही थीम लिया गया है और वहां हमारे बनाए महाराजा के बुत, शाही सिंहासन, महाराज का दरबार दर्शाता म्यूरल व उनकी तोपें आदि लगी हैं। ऐसा ही कुछ केंद्रशासित प्रदेश दमन में वीरां दा ढाबा पर भी आपको दिखेगा।
बरसी मनाने के लिए जत्था पाकिस्तान रवाना
उनकी बरसी मनाने के लिए शिरोमणि गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) का जत्था अटारी सड़क सीमा से पाकिस्तान रवाना हुआ है। जत्थे में 224 श्रद्धालु गए हैं। जत्था पाकिस्तान में गुरु धामों के दर्शन करने के बाद 6 जुलाई को भारत वापस आएगा। एसजीपीसी के मुख्य सचिव डॉक्टर रूप सिंह भी इस जत्थे के साथ गए हैं। 29 जून को जत्था गुरुद्वारा डेरा साहब में महाराजा रंजीत सिंह की बरसी पर कार्यक्रम में हिस्सा लेगा और अरदास करेगा।