Punjab Floods: तबाही का मंजर छोड़ गया सतलुज दरिया का उफनता पानी, मुश्किल से बचे लोगों ने सबकुछ गंवाया
मकानों की दीवारें ताश के पत्तों की तरह गिरी। लोगों का सामान रह गया और किसी तरह से लोगों ने बची हुई छतों के ऊपर शरण लेकर अपनी जान बचाई। गांव में प्रवेश करते ही होशियार सिंह बाढ़ के पानी की वजह से हुए नुकसान को दिखाते हैं और बताते हैं कि गांव में बस किसी तरह से जिंदगी बच गई है। बाकी सब कुछ खत्म हो गया है।
मनुपाल शर्मा/सोनू मित्तल, शाहकोटः गट्टा मुंडी कासू चारों तरफ गिरी हुई दीवारों की ईंटों तले सामान दबा हुआ है। बची हुई छतों पर जरूरी सामान इकट्ठा है और चेहरे पर गांव में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति से पुनर्वास की खबर सुनाने की उम्मीद। दरिया सतलुज के धुस्सी बांध के किनारे बसे गट्टा मुंडी कासू की धक्का बस्ती में बाढ़ का उतरता हुआ पानी अब बर्बादी का मंजर छोड़ गया है।
बीती 11 जुलाई को सतलुज का पानी धुस्सी बांध को तोड़ता हुआ गांव में प्रवेश कर गया था। पानी का बहाव इतना तेज था कि मकानों की दीवारें ताश के पत्तों की तरह गिरी। लोगों का सामान रह गया और किसी तरह से लोगों ने बची हुई छतों के ऊपर शरण लेकर अपनी जान बचाई। गांव में प्रवेश करते ही होशियार सिंह बाढ़ के पानी की वजह से हुए नुकसान को दिखाते हैं और बताते हैं कि गांव में बस किसी तरह से जिंदगी बच गई है।
बाकी सब कुछ खत्म हो गया है। बलकार सिंह गिरे हुए कमरे की तरफ इशारा करते बताते हैं कि उन्होंने बाढ़ से कुछ दिन पहले ही अपनी बेटी की शादी की थी और सोचा था कि शादी के बाद दहेज का सामान इकट्ठा कर ससुराल में देकर आएंगे समान तो इकट्ठा कर लिया था, लेकिन बाढ़ के पानी में सारा दहेज ही बह गया है।
मुख्तियार सिंह पानी में डूबने की वजह से खराब हुई मोटरसाइकिल और ट्रैक्टर ट्राली की तरफ इशारा करते हैं कि उन्होंने तो दाने भी टंकियों में भर लिए थे, ताकि ट्राली पर लादकर गांव से बाहर निकल जाएं लेकिन बाढ़ के पानी के सामने उनकी एक न चली और सब कुछ खराब हो गया।
अब घर के अंदर भी बाढ़ के पानी के साथ आई गाद फैली हुई है। गुरमीत सिंह अपने गिरे हुए घर को दिखाते हैं और बड़े अफसोस के साथ कहते हैं कि बड़ी मेहनत के साथ लाखों रुपए लगाकर तैयार करवाया था। अब तो हालात यह है कि दरवाजे तक नहीं बचे हैं और घर का सब जरूरी सामान या तो बाढ़ के पानी में बह गया है अथवा मकान गिरने से दब गया है।
बस्ती निवासियों ने कहा कि जब एसडीएम बाढ़ का जायजा लेने के लिए यहां तक पहुंचे थे तो उन्हें सभी ने ताकीद की थी कि किसी सुरक्षित स्थान पर बसा दिया जाए। वर्ष 1988, 1992, 2019 और अब 2023 में सतलुज के उफनते पानी ने जिंदगी को हिला डाला है। अब दोबारा हिम्मत नहीं बची है कि यहीं पर रहकर फिर से अपने घर बनाए और फिर सतलुज के बाढ़ का पानी सब कुछ तबाह कर दे।