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Punjab Politics: शिरोमणि अकाली दल में 25 साल पहले जैसी बगावत, बागी धड़ा कितना हो पाएगा कामयाब?

यह पहला मौका नहीं है जब अकाली दल के अंदर आंतरिक कलह उपजा। इससे पहले भी बादल परिवार के अध्यक्ष होने पर सवाल खड़े होते रहे हैं। लेकिन पंजाब में प्रकाश सिंह बादल ने अपनी धाक को जमाए रखा था। यही कारण रहा कि शिअद हमेशा बादल परिवार के पक्ष में रही। इस समय सुखबीर बादल सिंह के खिलाफ बागी नेताओं का खड़ा होना। किसी चुनौती से कम नहीं है।

By Inderpreet Singh Edited By: Prince Sharma Updated: Tue, 02 Jul 2024 07:46 PM (IST)
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Punjab News: सुखबीर सिंह बादल फाइल फोटो (Jagran File Photo)
इन्द्रप्रीत सिंह, चंडीगढ़। शिरोमणि अकाली दल में बगावत तेज हो गई है। बागी धड़े के नेताओं ने सोमवार को श्री अकाल तख्त साहिब पर पेश होकर पिछली अकाली-भाजपा सरकार के दस वर्षों में हुई गलतियों के लिए माफी मांगी थी।

श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह को अभी इस मामले में फैसला लेना है। क्या वह समूची लीडरशिप के लिए कोई आदेश जारी करेंगे या फिर सिर्फ उन्हीं को माफी मिलेगी जिन्होंने लिखित माफीनामा तख्त साहिब को सौंपा है।

अकाली दल कई बार टूटा पर टूटे हुए धड़े के हाथ रहे खाली

शिरोमणि अकाली दल का एक बड़ा धड़ा अलग होकर माफी के लिए श्री अकाल तख्त साहिब पर पहुंचा है।  इसलिए अभी किसी नई पार्टी की बात नहीं चल रही है।

बागी धड़ा कह रहा है कि यह शिअद को ही मजबूत करने की बात है। संभव है कि ऐसा इसलिए हो कि पहले कई बार अकाली दल टूटा है, लेकिन टूटे हुए धड़े के पल्ले कभी कुछ नहीं पड़ा।

यही स्थिति साल 1999 में भी थी जब खालसा पंथ की त्रैशताब्दी को लेकर प्रकाश सिंह बादल पर भाजपा और आरएसएस को समर्थन देने के आरोप लग रहे थे।

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एसजीपीसी के प्रधान गुरचरण सिंह टोहरा चाहते थे कि प्रकाश सिंह बादल सरकार का काम देखें और पार्टी की अध्यक्षता किसी और को दे दें। लेकिन वह सन् 1997 में भारी बहुमत से जीते। प्रकाश सिंह बादल की छवि लोगों में काफी अच्छी थी।

भाजपा को समर्थन देने वाले पहले थे प्रकाश बादल

यही नहीं, एसजीपीसी और सरकार पर भी उनका कब्जा था और तत्कालीन प्रधानमंत्री बिहारी वाजपेयी के करीबी थे। सन् 1996 में प्रकाश सिंह बादल पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को समर्थन देने की बात कही।

इसी कारण पार्टी का एक बड़ा धड़ा उनसे नाराज भी था। लेकिन बादल पीछे नहीं हटे। गुरचरण सिंह टोहरा एसजीपीसी की प्रधानगी छोड़कर अलग हो गए।

सरकार में उनके पांच करीबी मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया। इनमें सुरजीत सिंह कोहली, महेश इंद्र सिंह ग्रेवाल, हरमेल सिंह टोहरा, मनजीत सिंह कलकत्ता और इन्द्रजीत सिंह जीरा शामिल थे।

सभी ने सर्व हिंद अकाली दल बना लिया जो साल 2002 के विधानसभा चुनाव में जीत तो नहीं सका। लेकिन शिरोमणि अकाली दल की हार का कारण जरूर बना।

पंजाब पर कैप्टन की सत्ता

साल 2002 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सत्ता में आते ही जिस प्रकार से प्रकाश सिंह बादल सहित अन्य मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के केस दर्ज किए तो गुरचरण सिंह टोहरा फिर से बादल के समर्थन में आ गए। लेकिन उन्होंने प्रकाश सिंह बादल को श्री अकाल तख्त साहिब पर पेश होने के लिए मजबूर कर दिया था।

अब 25 साल बाद अब वक्त बहुत बदल गया है। सुखबीर सिंह बादल न तो प्रकाश सिंह बादल की तरह मजबूत हैं और न ही उनकी छवि आम लोगों में उतनी प्रभावशाली है। वह लगातार चार चुनाव हार गए हैं।

साल 2017 का विधानसभा, 2019 का लोकसभा, 2022 का विधानसभा और 2024 को लोकसभा चुनाव हारने के कारण सुखबीर बादल की लीडरशिप पर लगातार अंगुलियां उठ रही हैं।

पार्टी की हार के कारणों की जांच के लिए पूर्व विधायक इकबाल सिंह झूंदा की अध्यक्षता में बनाई गई झूंदा कमेटी ने भी पार्टी के सभी विंग भंग करके समूची लीडरशिप को बदलने की सिफारिश की है।

यही वजह है कि बागी धड़ा सुखबीर को श्री अकाल तख्त के सामने पेश होने, अपनी गलतियों को स्वीकार करने को लेकर मजबूर करने की कोशिश कर रहा है। यही नहीं, सुखबीर बादल न तो इस समय प्रदेश में सरकार में हैं और न ही केंद्र सरकार में उनकी कोई हिस्सेदारी है।

उनके पास अभी सिर्फ एसजीपीसी ही है। ऐसे में बागी धड़ा सुखबीर बादल को हटाने के लिए पूरा जोर लगाए हुए है। लेकिन जिस प्रकार से पार्टी का महिला विंग, यूथ विंग, एसीसी विंग, बीसी विंग और एसजीपीसी सदस्य उनके समर्थन में आ गए हैं, ऐसे में बागी धड़े को कितनी सफलता मिलेगी, इस पर आशंका ही है।

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