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यदि आपका ब्‍लड ग्रुप भी है फेनोटाइप, तो हो सकती है मुसीबत, पढ़ें यह खबर

जालंधर के एक अस्पताल के ब्लड बैंक की टीम ने उत्तर भारत में पहली बार दुर्लभ पी-फेनोटाइप ब्लड ग्रुप की पहचान करने का दावा किया है। देश में इस तरह का यह दूसरा मामला है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Wed, 22 Aug 2018 08:58 AM (IST)
यदि आपका ब्‍लड ग्रुप भी है फेनोटाइप, तो हो सकती है मुसीबत, पढ़ें यह खबर
जालंधर (जेएनएन)। शहर के पटेल अस्पताल के ब्लड बैंक की टीम ने उत्तर भारत में पहली बार दुर्लभ पी-फेनोटाइप ब्लड ग्रुप की पहचान करने का दावा किया है। इसे पी-नल फेनोटाइप के नाम से भी जाना जाता है। देश में यह दूसरा मामला है। करीब तीन सप्ताह पहले कर्नाटक के मनिपाल स्थित कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज में देश में इस ब्लड ग्रुप वाले पहले व्यक्ति का पता चला था।

जालंधर में मिला दुर्लभ पी-फेनोटाइप ब्लड ग्रुप, देश में यह बस दूसरा ऐसा व्‍यक्ति मिला

इस ब्लड ग्रुप के किसी मरीज को अगर खून की जरूरत पड़ती है तो उसे इसी ग्रुप का खून देना पड़ता है। यदि इस ब्‍लड ग्रुप के किसी व्‍यक्ति को रक्‍त की जरूरत पड़ी तो इसकी उपलब्‍धता मुश्किल होेने से भारी मुसीबत हाे सकती है।

ऐसे लगा पता : 40 लोगों का भी खून मैच नहीं हुआ

पटेल अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. एसके शर्मा ने बताया कि ब्लड बैंक के प्रभारी डॉ. निशांत सैनी को एक कैंसर रोगी के लिए खून की डिमांड आई थी। मरीज के परिवार के सदस्यों सहित 40 अलग-अलग ब्लड डोनर के साथ भी ब्लड मैच नहीं हुआ। ब्लड बैंक ने इम्यूनो-हीमेटोलॉजिकल वर्कअप किया तो रेड ब्लड सेल के विरुद्ध प्राकृतिक रूप से बनने वाले यलो-एंटीबॉडी का शक पैदा हुआ।

तीन सप्ताह पहले मनिपाल के एक मेडिकल कॉलेज में सामने आया था पहला केस

उन्‍होंने बताया कि इसके बाद खून के सैंपल को इंटरनेशनल ब्लड ग्रुप रिफरेंस लैबोरेटरी (आईबीजीआरएल) ब्रिस्टल, इंग्लैंड में मूल्यांकन के लिए भेजा गया। यहां ब्लड में दुर्लभ पी-फेनोटाइप और एंटी पीपी-1 पीके एंटीबॉडी की होने की पुष्टि हुई।

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क्या है पी फेनोटाइप

पी-फेनोटाइप में पी, पी-1 और पीके एंटीजंस की अनुपस्थिति होना जरूरी है। यह ए4जीएलटी जीन में परिवर्तन के कारण होता है। एंटी पीपी-1 पीके एंटीबॉडी पी-फेनोटाइप ब्लड ग्रुप के व्यक्तियों में होती है। यह शक्तिशाली हीमोलिसिन भी होती है या लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करती है। इस कारण, अगर किसी मरीज को गलत खून चढ़ाया जाता है तो नुकसानदेह प्रतिक्रिया शुरू हो सकती है।

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एक हजार में एक में मिलता है दुर्लभ ब्लड ग्रुप

डॉ. निशांत सैनी ने बताया कि सामान्य ब्लड ग्रुप ए, बी, एबी, ओ और आरएच डी पॉजिटिव व नेगेटिव होते हैं। दुर्लभ ब्लड ग्रुप अन्य सभी ब्लड ग्रुप की तरह ही हैं। ये तब तक किसी समस्या का कारण नहीं बनते जब तक कि किसी को खून चढ़ाने की आवश्यकता न हो। ब्लड ग्रुप को दुर्लभ तब माना जाता है जब वह एक हजार लोगों में से एक या इससे कम में पाया जाता है।

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देश में दुर्लभ ब्लड डोनर का रिकॉर्ड नहीं

देश में राष्ट्रीय दुर्लभ ब्लड ग्रुप डोनर रजिस्ट्री नहीं होती है। इसलिए ब्लड बैंक के लिए सही डोनर खोजना एक बड़ी चुनौती होगी। अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. एसके शर्मा ने बताया कि जापान और चीन को छोड़कर एशिया में दुर्लभ ब्लड ग्रुप डोनर रजिस्ट्री कार्यक्रम अब तक स्थापित नहीं हुआ है।

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