धुन का पक्का एक ऐसा संत, जिसने दम तोड़ती नदी को फिर से कर दिया जीवित
पंजाब के कपूरथला जिले के सीचेवाल गांव से जो काम उन्होंने करीब चार दशक पहले अकेले शुरू किया था, आज उसकी रोशनी देश ही नहीं पूरी दुनिया में पहुंच रही है।
जालंधर [अविनाश कुमार मिश्र]। धुन का पक्का एक ऐसा संत, जिसने आस-पास के गांवों में सड़कें बनवाकर उनकी तस्वीर बदली तो पंजाब में दम तोड़ती नदी काली बेई को फिर से जीवित कर 93 गांवों के लोगों की उम्मीद को मरने से बचाया। पर्यावरण के प्रति इनके कार्यो को देखते हुए टाइम पत्रिका ने इन्हें दुनिया के 30 पर्यावरण नायकों की सूची में शामिल किया तो सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित। हम बात कर रहे हैं प्रख्यात पर्यावरणविद् संत बलबीस सिंह सीचेवाल की।
''मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बढ़ता गया...'' मजरूह सुल्तानपुरी का यह शेर सीचेवाल के संघर्ष और सफलता की कहानी को बाखूबी बयान करता है। पंजाब के कपूरथला जिले के सीचेवाल गांव से जो काम उन्होंने करीब चार दशक पहले अकेले शुरू किया था, आज उसकी रोशनी देश ही नहीं पूरी दुनिया में पहुंच रही है।
कई देशों के लोग यहां आकर उनके प्रयोगों के साक्षी बन रहे हैं तो कई देशों ने उन्हें अपने यहां बुलाया, ताकि वे भी उनके मॉडल का लाभ उठा सकें। बीते सप्ताह पंजाब सरकार द्वारा उन्हें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सदस्यता से मुक्त कर दिया गया था, जिससे वे एक बार फिर सुर्खियों में आए। हालांकि पंजाब सरकार को अपना यह कदम वापस लेना पड़ा।
आइए जानते हैं, पंजाब की मिट्टी में जन्मे संत सीचेवाल के शुरुआती संघर्ष से लेकर उनके अब तक के सफर को.. कपूरथला के गांव सीचेवाल में दो फरवरी 1962 को जन्मे बलबीर सिंह 1981 में कॉलेज छोड़ने के बाद से ही समाज सेवा में जुट गए। उनके गांव के रास्ते ऊबड़-खाबड़ थे। उन्होंने खुद फावड़ा लेकर रास्तों को समतल बनाना शुरू किया। फिर आई वर्ष 2000 की जालंधर की वह सभा जिसमें कई लोगों ने काली बेई नदी की बदहाली पर चिंता जताई।
इस नदी के तट पर स्थित कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी में सिखों के पहले गुरुनानक देव जी ने 14 साल बिताए थे, इसलिए इस नदी का खास महत्व है। 160 किमी. लंबी इस नदी के किनारों पर 93 गांवों की 50 हजार एकड़ से अधिक जमीन पर खेती होती थी, लेकिन छह से ज्यादा नगरों और 40 गांवों के लोग इसमें कूड़ा फेंकते थे। सभा में एक तरफ जहां लोग नदी के हालात पर चिंता जता रहे थे वहीं दूसरी तरफ संत सीचेवाल ने कहा कि सिर्फ चिंता करने से कुछ नहीं होगा। अगर सब लोग चाहते हैं कि इस मरती हुई नदी को जिंदा करना है तो सुबह से ही काम पर लगते हैं।
फिर क्या था अगले दिन वे अपना फावड़ा और ट्रैक्टर लेकर सहयोगियों के साथ काली बेई के तट पर पहुंच गए और सफाई में जुट गए। उनके प्रयासों को देख लोग इसे साफ करने में जुड़ते चले गए और पाक नदी एक बार फिर जीवित और पवित्र होती चली गई।
नदी तो साफ होने लगी पर एक सवाल संत सीचेवाल को परेशान करने लगा कि गंदे पानी का क्या किया जाएगा। इसके लिए उन्होंने सीचेवाल मॉडल तैयार किया, जो आज कई राज्य सरकारें लागू कर चुकी हैं। पर्यावरण को साफ रखने के लिए किए गए संघर्ष के लिए टाइम पत्रिका ने वर्ष 2008 में उन्हें दुनिया के 30 पर्यावरण नायकों की सूची में शामिल किया। इसके अलावा भारत सरकार ने जनवरी 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया।
संत सीचेवाल को पद्मश्री से सम्मानित करते तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी। (फाइल फोटो)
नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ने पर्यावरणविद् संत बलबीर सिंह सीचेवाल के कार्यो को देखते हुए हिमाचल प्रदेश और पंजाब के कुदरती जल स्रोतों की निगरानी कमेटी का चेयरमैन बनाया। पहले सरकारी विभाग एनजीटी से नदियों में प्रदूषण की बात छुपाते आ रहे थे, लेकिन सीचेवाल के चेयरमैन बनने के बाद सभी विभाग सक्रिय दिखे। उन्हीं की रिपोर्ट पर हाल ही में एनजीटी ने नदियों के प्रदूषण को देखते हुए पंजाब सरकार पर 50 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था।
संत सीचेवाल मॉडल देखने पहुंचे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम। (फाइल फोटो)
यह है सीचेवाल मॉडल
संत सीचेवाल ने काली बेई में सीवरेज के गंदे पानी को जाने से रोकने के लिए सीवर लाइन बिछाई। नदी के गंदे पानी को एक बड़े तालाब में जमा करना शुरू किया। तालाब में डालने से पहले पानी को तीन गड्ढों से गुजारा गया। देसी तरीके से बना यह सीवरेज प्लांट पूरी तरह सफल रहा। इस प्लांट के जरिये साफ हुए पानी का खेती में इस्तेमाल होने लगा।