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7 साल के बाद फिर गिद्धों से गुलजार हुआ पंजाब का ‘वल्चर रेस्टोरेंट’, 350 के करीब पहुंची संख्या; प्रजनन की स्थिति पर हो रहा अध्ययन

पठानकोट के चंडोला जंगल में एक बार फिर गिद्धों का सुरक्षित ठिकाना बन गया है। सात साल पहले यहां पर गिद्ध दिखाई देने बंद हो गए थे। यहां गिद्धों की तीन प्रजातियां हिमालयन ग्रिफन यूरेशियन ग्रिफन और वाइट-रंप्ड मौजूद हैं।

By Vinay KumarEdited By: Updated: Wed, 06 Jul 2022 08:32 AM (IST)
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चंडोला जंगल में वन्य जीव विभाग की ओर से बनाया ‘वल्चर रेस्टोरेंट। (सौ. वन्य जीव विभाग)
पठानकोट [राज चौधरी]। चंडोला जंगल सात साल बाद फिर गिद्धों का सुरक्षित ठिकाना बन गया है। सात साल पहले यहां गिद्ध दिखाई देना बंद हो गए थे। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि 2010 में यहां बनाया गया ‘वल्चर रेस्टोरेंट’ 2015 में फंड की कमी के कारण बंद हो गया था। वर्ष 2021 में 7.35 लाख रुपये का फंड मिलने पर फिर इसे शुरू किया गया तो वन्य जीव विभाग का प्रयास रंग लाया। अब यहां गिद्धों की संख्या 350 पहुंच गई है। यहां गिद्धों की तीन प्रजातियां हिमालयन ग्रिफन, यूरेशियन ग्रिफन और वाइट-रंप्ड मौजूद हैं।

विभाग ने इनके खानपान से लेकर इनकी अन्य गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए ‘वल्चर रेस्टोरेंट’ (खाने का बाड़ा) बनाया है। इसके साथ ही 20 फुट ऊंचा बर्ड हाइड भी बनाया जा रहा है, ताकि रिसर्च स्कालर व पक्षी संरक्षणकर्ता इनकी गतिविधियों पर करीब से नजर रख सकें और उन्हें गिद्धों के भोजन व नहाने तक की समस्त गतिविधियों व व्यवहार के प्रमाण मिल सकेंगे।

बारी-बारी करते हैं भोजन

वन्य जीव विभाग के अनुसार जब भी ‘वल्चर रेस्टोरेंट’ में गिद्धों के लिए भोजन रखा जाता है, तीनों प्रजातियों के गिद्ध अपनी-अपनी बारी के हिसाब से ही भोजन करते हैं। जब किसी एक प्रजाति के गिद्ध भोजन कर रहे होते हैं तो दूसरी दोनों प्रजातियों के गिद्ध इर्द-गिर्द बैठे रहते हैं। पहले एक गिद्ध भोजन की जांच कर कुछ संकेत देता है और बाकी सभी गिद्ध भी भोजन करने लगते हैं। भोजन करने के बाद यह जंगल से होकर बहती खड्ड (छोटी नदी) में नहाकर और पंखों को व चोंच को अच्छी तरह से साफ करते हैं। फिर उड़ान भरते हैं। रेंज अफसर सुखदेव सिंह ने बताया कि गिद्धों की प्रजनन की स्थिति पर भी नजर रखी जा रही है। इसके लिए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के विज्ञानी गीतांजलि कंवर और टीके राय इस पर अध्ययन कर रहे हैं।

मृत पशुओं के लिए 40 गांवों के सरपंचों की ली जा रही मदद

गिद्धों के लिए भोजन की व्यवस्था के लिए आसपास के 40 गांवों के सरपंचों की मदद ली जा रही है। जैसे ही किसी पशु की मौत होती है तो सरपंच वन्य जीव विभाग को सूचित करते हैं। इन गांवों में गुज्जर व सांसी समुदाय के अलावा अन्य लोग भी बड़ी संख्या में पशुपालन करते हैं। उनकी मदद से पशुओं की पशु चिकित्सकों से जांच करवाई जाती है।

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