Punjab History: करतारपुर में हुआ था श्री गुरु तेग बहादुर का विवाह, जानें कैसे मिला था उन्हें यह नाम
श्री गुरु अर्जुन देव जी ने करतारपुर को वर्ष 1594 में बसाया था। यहीं पर श्री गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी का विवाह हुआ था। इसी स्थान पर गुरुद्वारा विवाह स्थान (Gurdwara Vivah Sthan) गुरु तेग बहादुर व माता गुजरी जी स्थित है।
By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Mon, 16 Aug 2021 06:12 PM (IST)
दीपक कुमार, करतारपुर (जालंधर)। दोआबा के जिला जालंधर में ऐतिहासिक कस्बा करतारपुर पड़ता है। इसका पंजाब के इतिहास अपना अलग मुकाम है। पांचवीं पातशाही श्री गुरु अर्जुन देव जी ने करतारपुर को वर्ष 1594 में बसाया था। यहीं पर श्री गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी का विवाह हुआ था। इसी स्थान पर गुरुद्वारा विवाह स्थान (Gurdwara Vivah Sthan) गुरु तेग बहादुर व माता गुजरी जी स्थित है। यहीं पर श्री गुरु तेग बहादुर जी का विवाह भाई लाल चंद सुभिखी की बेटी माता गुजरी से 4 फरवरी, 1633 में हुआ था। इस समय कार सेवा वाले संत बाबा सेवा सिंह इस ऐतिहासिक स्थान की सेवा संभाल कर रहे हैं। यहां हर साल 30 सितंबर को श्री गुरु तेग बहादुर व माता गुजरी जी का विवाह पर्व धूमधाम व श्रद्धा से मनाया जाता है। करतारपुर जालंधर से कुछ ही दूरी पर है। जालंधर रेल और सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।
माता गुजरी के पिता लखनौर के रहने वाले थे (वर्तमान हरियाणा)। वे यहां माता गुजरी जी का विवाह करने के लिए करतारपुर आकर रबाब लारी वाली बाही में रहने लगे थे। विवाह की रस्में पूरी होने के बाद वापस लखनौर चले गए। यहां श्री गुरु तेग बहादुर जी का नाम रखा गया था। गुरु हरगोबिंद जी ने उनका नाम त्याग मल से बदल कर तेग बहादुर रखा था। यह भी तथ्य मिलते हैं कि श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के एक अन्य बेटे सूरज मल का विवाह भी यहां हुआ था।
युद्ध में दिखाया तेग का कमाल, इसलिए पिता ने दिया तेग बहादुर नाम1635 ईसवी में 26 से 28 अप्रैल तक यहां श्री हरगोबिंद साहिब ने मुगलों के खिलाफ चौथी जंग लड़ी थी। इस जंग में त्याग मल भी तेग लेकर जंग में गए थे। युद्ध के मैदान में उन्होंने दुश्मन फौजों को खदेड़ने के लिए अपनी तेग से युद्ध कला के ऐसे जौहर दिखाए कि गुरु हरगोबिंद साहिब बेहद खुश हुए। जंग में जीत हासिल करने के बाद उन्होंने अपने छोटे बेटे त्याग मल को पास बुलाया व उन्हें तेग का धनी होने का वर दिया। जंग में दिखाई बहादुरी के लिए उनका नाम त्याग मल से बदलकर तेग बहादर रख दिया।
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