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कभी हिंदू बाहुल्य था पाकिस्तान स्थित श्री कटासराज मंदिर का क्षेत्र, जानें इसका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

पाकिस्तान के श्री कटासराज मंदिर का ज्ञात इतिहास 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। यह मंदिर निमकोट पर्वत शृंखला में स्थित है और इसके रास्‍ते के चारों तरफ सेंधा नमक की खदानें हैं जिसे भारत में व्रत के दौरान खाया जाता है और यहीं से आयात किया जाता है।

By Pankaj DwivediEdited By: Updated: Sat, 18 Dec 2021 07:13 AM (IST)
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पाकिस्तान स्थित श्री कटासराज मंदिर परिसर। फाइल फोटो
आनलाइन डेस्क, जालंधर। शुक्रवार सुबह करीब 110 श्रद्धालुओं का जत्था पाकिस्तान स्थित श्री कटासराज धाम मंदिर परिसर के लिए अटारी सीमा से रवाना हो गया। बहुत कम लोग जानते होंगे कि विभाजन से पहले श्री कटासराज मंदिर के आसपास का क्षेत्र हिंदू बाहुल्य हुआ करता था। हालांकि विभाजन के बाद सभी हिंदू विस्थापित हो गए। यहां पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान, तक्षशिला के अलावा अफगानिस्तान के हिंदू आकर माथा टेकते थे। पितरों का तर्पण करते थे। श्री कटासराज मंदिर लाहौरा-इस्लामाबाद मोटर-वे पर चकवाल जिले में स्थित है।    

मंदिर का ज्ञात इतिहास करीब 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। यह मंदिर निमकोट पर्वत शृंखला में स्थित है और इसके रास्‍ते के चारों तरफ सेंधा नमक की खदानें हैं, जिसे भारत में व्रत के दौरान खाया जाता है और यहीं से आयात किया जाता है। कटासराज में भगवान शिव का मंदिर है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां पार्वती जब सती हुईं तो भगवान शिव के आंखों से आंसू की दो बूंदें टपकी थी। एक कटासराज तो दूसरी पुष्कर में गिरी थी। इसी आंसू से यहां पवित्र अमृत कुंड का निर्माण हुआ था।

यहीं यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछे थे प्रश्न

यह भी मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने इन्‍हीं पहाड़ियों में अज्ञातवास काटा था। यहीं पर युधिष्ठिर-यक्ष संवाद हुआ था। कटासराज शब्द की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि माता सती के पिता दक्ष ने भगवान शिव पर कटाक्ष किए थे। इसी कारण इस मंदिर को कटासराज का नाम मिला है। 

भगवान श्री कृष्ण ने स्थापित किया था शिवलिंग

इस मंदिर के बारे में मान्‍यता है कि इसका निर्माण भगवान श्री कृष्‍ण ने स्वयं करवाया था। उन्होंने ही यहां पर शिवलिंग की स्‍थापना करके उसकी पूजा आरंभ की थी। मौर्य वंश के शासनकाल इस स्थान पर सम्राट अशोक ने बौद्ध स्‍तूप भी बनवाया थे। चौथी शताब्‍दी में भारत यात्रा पर आए चीनी यात्री फाहियान ने भी अपने यात्रा वृत्‍तांतों में इस स्‍थान का उल्‍लेख किया है। कहते हैं प्रथम सिख गुरु नानक देव जी भी यहां आए थे। मंदिर के पास में एक गुरुद्वारे के भी अवशेष मिलते हैं। 

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