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Jagjit Singh Birthday: जालंधर से गजलों का सफर शुरू कर जगमोहन से बने ‘जगजीत सिंह’, यूं ही नहीं दुनिया हुई कायल

दिवंगत गायक जगजीत सिंह (Jagjit Singj Birth Anniversary) की आज 83वीं बर्थ एनिवर्सरी है। गजल सम्राट जगजीत सिंह का पंजाब से भी गहरा नाता रहा है। पंजाब के जालंधर (Jagjit Singh Death) ने जगजीत को न सिर्फ नाम दिया बल्कि एक नई पहचान भी दी थी। जब-जब जगजीत सिंह को याद किया जाता है। तब-तब जालंधर भी याद किया जाएगा। वो कैसे... आइए जानते हैं इसके बारे में।

By Ankit Sharma Edited By: Nidhi Vinodiya Updated: Thu, 08 Feb 2024 11:30 AM (IST)
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दिवंगत गायक जगजीत सिंह (Jagjeet Singj Birth Anniversary) की 83वीं बर्थ एनिवर्सरी
अंकित शर्मा, जालंधर। Jagjit Singh Birthday कोई फरियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे- तूने आंखों से कोई बात कही हो जैसे। जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे -जान बाक़ी है मगर सांस रुकी हो जैसे, चिट्ठी न कोई संदेश जाने वो कौन सा देश- जहां तुम चले गए, होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो... जैसी गजलों के असंख्य श्रोताओं के मन व जुबां पर अमिट छाप छोड़ चुके जगजीत सिंह का जालंधर से गहरा नाता रहा है। 

Jagjit Singh Birthday क्योंकि यहीं से उन्होंने अपनी गजल गायकी का सफर शुरू किया था। तभी वे विश्व भर में जगमोहन सिंह धीमान से गजल सम्राट जगजीत सिंह के रूप में विख्यात हुए। 1967 में जगजीत सिंह ने पत्नी चित्रा के साथ लायंस भवन में प्रस्तुति दी। वहीं 2009 में कॉलेज की एलुमिनाई मीट में भी आए थे। 

2010 में हुआ था निधन

उन्होंने कॉलेज गेट पर माथा टेक कर ही प्रवेश किया था। सभी के सम्मुख अपनी प्रस्तुति भी दी और यादें साझा करते हुए ये भी कहा था कि वे कालेज के कर्जदार हैं, क्योंकि उनका सफर यहीं से शुरू हुआ और इसी ने मुझे जगजीत सिंह बनाया। उन्होंने कालेज के ओपन एयर थिएटर को विकसित करने की भी गुजारिश रखी थी और उसके लिए हर संभव सहयोग देने का विश्वास दिलाया था। साथ ही उन्होंने कहा था कि वे प्रत्येक वर्ष एलुमिनाई मीट में आया करेंगे, मगर अगले ही साल यानी कि 2010 में उनका (Jagjit Singh Death) निधन हो गया।

रियाज में ज्यादा समय बिताते थे जगजीत सिंह

जगमोहन सिंह धीमान का जन्म (Jagjit Singh Birthday) आठ फरवरी 1941 में गंगानगर में अमर सिंह धीमान और बच्चन कौर के घर हुआ था। उनके चार भाई और दो बहनें थीं। शुरुआती शिक्षा गंगानगर में हासिल करने के बाद ग्रेजुएशन की शिक्षा डीएवी कॉलेज से ही हासिल की थी। पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे, मगर इनका शौक गायन में था। इसलिए वे कॉलेज में कक्षा में कम और रियाज में ज्यादा समय बिताते थे। कॉलेज के सभी कार्यक्रमों के साथ-साथ यूथ फेस्टीवलों में अपनी प्रस्तुतियां देते थे और कई पुरस्कार भी जीते। 

कॉलेज में हुई थी सुदर्शन फाकिर और जगजीत सिंह की दोस्ती

यहां तक की उन्होंने आल इंडिया रेडियो में भी म्यूजिक कंपोजर के तौर पर भी सेवाएं दीं। इस दौरान ही वे गजल गायन का प्रशिक्षण भी लेते रहे और 1965 में मुंबई चले गए और अपनी संख्य गजलों के साथ गजल सम्राट जगजीत सिंह बने। वे कहते हैं कि सुदर्शन फाकिर और जगजीत सिंह की दोस्ती भी कॉलेज में ही हुई थी। जब वो रियाज करते समय सुर मिलाते थे तो सुदर्शन सितार के जरिए उनके सुर में ताल मिलाते। यहां तक की वे आल इंडिया रेडियो में भी एक साथ थे।

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हॉस्टल के कमरा नंबर 169 में रहते थे जगजीत

प्रो. शरद मनोचा बताते हैं कि कॉलेज में वे 1959 से 1961 तक उनके पास पढ़ाई करते रहे हैं। उन्होंने कॉलेज में ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। वे कॉलेज के हॉस्टल नंबर में 169 नंबर में रहते थे। हालांकि वो पुराना होस्टल था और अब वर्किंग में नहीं हैं। उन्होंने बताया कि जगजीत अक्सर अपने सहपाठियों से अक्सर चैलेंज करते रहते थे कि चाहे कोई भी उपकरण (म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट) ले आओ वे आधे घंटे में उसे बजाकर दिखा देंगे। 

यहां तक जब उनके सभी सहपाठी सो रहे होते थे वे सुबह पांच बजे उठ कर रियाज करते थे। जिस वजह से उनसे दोस्त नाराज भी होते थे। यहां तक की वे अपनी हर नई गजल दोस्तों को सुनाकर साझा किया करते थे। जिसे सुनकर कई बार उनका दोस्तों ने मजाक भी बनाया। जिस पर वे हमेशा हंस कर यही कहते थे कि अभी उनकी गजलें सुन लें, बाद में टिकट लेकर सुननी पड़ेगी।

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